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Showing posts from September, 2018

अघोर क्या है ?

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llआदेश ll अघोर क्या है ? ❣❣❣❣❣❣❣❣❣ अघोर जिसे कोई डर ना हो जेसे, एक बच्चा या शिशु l जेसे एक बच्चे की देखभाल उनके माता-पिता करते है उसी प्रकार एक अघोरी पर हमेशा महाकाली -महाकाल (काली शिव की शक्ति है l) की नज़र रहती है वो अपने बच्चे का ध्यान रखते है पर सबसे कठिन है वो बच्चा बनना जो सच्चा अघोरी हो सके संसार के सार को समझ सके और खुद को अपने असली माँ-बाप के हवाले कर निश्चिंत हो सके l अब बात.आती है वो बच्चा केसे बना जाए ? जिस तरह हर धर्म और कार्यशाला केअपने नियम होते है और उनका पालन करके ही उसे आत्मसात किया जा सकता है वेसे ही अघोर के भी नियम होते है l जेसे :- किसी भी वस्तु व्यक्ति और जीव मे कोई भेद नही करना    सब अच्छा है कुछ बुरा या त्याज्य नही होता जो संसार के लिए हीन और बेकार है उसे भी अघोरी उतना ही महत्वपूर्ण मानता है जितना कि बाकि सब चिजे अघोरी के लिए दिन-रात सुंदर-कुरुप स्त्री-पुरुष महल-झोन्पडी और इसी तरह बाकी चिजो मे भी कोइ फर्क नही होता वो हर जगह मस्त रहता है अपने ईष्ट मे l अघोर मे एक स्त्री का भी उतना ही महत्व है वो बात अलग है कि कुछ धुर्तो ने अघोर मे स्त्री को बदनाम कर रखा है

तारा पीठ

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बंगाल के इतिहास में अघोर परम्परा का प्रसिद्ध स्थल तारापीठ 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 ।।आदेश।। बंगाल के इतिहास में वीरभूमि जिला एक विख्यात जिला है। हिन्दुओं के ५१ शक्तिपीठों में से पाँच शक्ति पीठ वीरभूमि में ही हैं। इसी कड़ी में उनीस्वी शताब्दी में वीरभूमिकी पवित्रता साधक वामा खेपा ने एक बार फ़िर बढाई।   राजा दशरथ के कुल पुरोहित वशिष्ठ मुनि ने भी वीरभूमि से जुड़ कर इतिहास में इस भूमि की शान बढाई। इसलिए वीरभूमि जिला हिंदू वाम मर्गियों का महा तीर्थ बना। यहाँ पर स्थापित वशिष्ठ मुनि के सिंघासन पर अनेको साधको ने अपनी सिद्धिया प्राप्त की। जिनमें से प्रमुख महाराज राजा राम कृष्ण परमहंस, आनंदनाथ, मोक्ष्दानंद , वामा खेपा के नाम आते है।       इस स्थान पर दक्ष यज्ञ विध्वंश के पश्चात मोहाविष्ट शिव जी के कंधों से शिव भार्या दाक्षायणी, सती की आँखें भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र ने काट कर गिराया था। यह शक्तिपीठ बन गया और इसीलिये इसे तारापीठ कहते हैं । मातृ रुप माँ तारा का यह स्थल तांत्रिकों, मांत्रिकों, शाक्तों, शैवों, कापालिकों, औघड़ों आदि सब में समान रुप से श्रद्धास्पद, पूजनीय माना जाता है ।        शताब्द

भैरवी साधना और ये काल।

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।।आदेश।। भैरवी साधना और ये काल। तंत्र में अगर एक महिला है तो भैरवी बनेगी और उसका मार्ग संभोग से हो कर जाता - ये वो ज्ञान जो आज कल हर नई साधिका से दी जाती है। परंतु ये अर्ध सत्य है, या ये बोला जाए कि ये सत्य से काफ़ी दूर है। आज साधना के विषय मे कुछ गुड़ रहस्य बताता हूँ। कौन सा साधक भैरवी साधना कर सकता है? १. जिससे वज्रोली साधना आती हो। २. जो काम नही साधना भाव से भैरवी साधना कर पाए। भैरवी को तीन तरीके से सिद्ध किया जा सकता है। १. माँ के रूप में। २. कुमारी या बेटी के रूप में। ३. अर्धग्नि या लाता भैरवी के रूप में। जब भैरवी के 3 स्वरूप है ।तो लोग उसे माँ या बेटी के स्वरूप में क्यों नही अपनाते।उनको लता भैरवी ही क्यों चाहिए।मतलब वो अपनी काम के रूप में  उपयोग  ही करना चाहते है । लता भैरवी साधना 12 पहर यानी 36 घंटे की साधना है जिसमे भैरव और भैरवी दोनों उच्य कोटि के साधक होने चाहये। भैरव का काम होता है साधना पर ध्यान देना और भैरवी का काम है इस प्रक्रिया में सहायक होना। एक भी बीच मे साधना छोड़ नही सकता  । कोई नई कन्या लता भैरवी नही बन सकती। और कोई साधक जो वज्रोली न जानता हो वो भैरव नह

मंत्र क्या है ?

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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ❀ ================================== मंत्र ☀☀☀☀☀☀☀☀☀"वक्रतुण्ड महाकाय , सूर्यकोटि समप्रभ ! निर्विघ्नं कुरु मे देव , सर्व कार्येषु सर्वदा" !!☀☀☀☀☀☀☀☀☀ मंत्र क्या है ? मंत्र शब्दों का संचय होता है, जिससे इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और अनिष्ट बाधाओं को नष्ट कर सकते हैं । मंत्र इस शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन और मनन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है । अगले स्तर पर मंत्र अर्थात जिसके मनन से व्यक्ति को पूरे ब्रह्मांड से उसकी एकरूपता का ज्ञान प्राप्त होता है । इस स्तर पर मनन भी रुक जाता है मन का लय हो जाता है और मंत्र भी शांत हो जाता है । इस स्थिति में व्यक्ति जन्म-मृत्यु के फेरे से छूट जाता है । मंत्रजप के अनेक लाभ हैं, उदा. आध्यात्मिक प्रगति, शत्रु का विनाश, अलौकिक शक्ति पाना, पाप नष्ट होना और वाणी की शुद्धि। मंत्र जपने और ईश्वर का नाम जपने में भिन्नता है । मंत्रजप करने के लिए अनेक नियमों का पालन करना पडता है; परंतु नामजप करने के लिए इसकी आवश्यकता नहीं होती । उदाहरणार्थ मंत्रजप सात्त्विक वातावरण में ही करना आवश्यक है; परंतु ईश्वर का नामजप कहीं भी

सुप्रभातम शुभ रात्रि शुभ संदेश

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*"प्रेम" या "सम्मान" का भाव सिर्फ उन्हीं के प्रति रखिएगा।* *"जो आपके "मन" की भावनाओं को समझते हैं।* *"कहते है कि*---- *जलो वहाँ , जहाँ जरूरत हो।* *"उजालों" में "चिरागों" के मायने नहीं होते।*                   🙏🙏  सुप्रभातम मित्रो🙏🙏 📯📯📯📯📯📯📯🚩📯📯📯📯📯📯

ईसाइयत फैलाने का सबसे अच्छा माध्यम है, एज्युकेशन

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1813 में हाउस ऑफ कॉमन्स (ब्रिटिश संसद) में यह प्रस्ताव लाया गया कि ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत मे ईसाइयत फैलाने का सबसे सशक्त माध्यम क्या हो ? (पाखंड यह है कि इसके कई वर्षों बाद भारत के गुरुकुल मॉडल की शिक्षा को चुराकर उन्होंने अपने यहां जन सामान्य को शिक्षित किया जिसका नाम उन्होंने "एंड्रू एंड बेल्ल" एजुकेशन मॉडल का नाम दिया।) तय यह हुवा कि #ईसाइयत_फैलाने_का सबसे अच्छा माध्यम #एजुकेशन (अर्थात सूचना या कुसूचना का प्रसारण ) हो सकता है। कालांतर में मैकाले को अपने पिता को लिखा गया गुप्त पत्र इस बात को प्रमाणित करता है कि ब्रिटिश संसद की 1813 में ईसाइयत के प्रसार में एजुकेशन याणि कुसूचना के  प्रसारण ने   बहुत सफल रोल निभाया । उसके बाद शनैः शनैः इस योजना पर मिशनरियों और एडमिनिस्ट्रेशन ने काम किया। ईसाइयत के प्रसार में कई तरह की योजनाएं अपनायी गयीं: 1- कपोल कल्पित कहानियों और कुसूचनाओं को विश्व स्तर पर प्रसारित करना। उंनको यूनिवर्सिटी के माध्यम से अंग्रेजी पढ़ने गए भारतीयों के मष्तिष्क में अकडेमिया के नाम पर ठूंसना। आखिर आपके विचार कहाँ से जन्म लेते हैं ? जो सूचनाएं आप अपने पां