ईसाइयत फैलाने का सबसे अच्छा माध्यम है, एज्युकेशन

1813 में हाउस ऑफ कॉमन्स (ब्रिटिश संसद) में यह प्रस्ताव लाया गया कि ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत मे ईसाइयत फैलाने का सबसे सशक्त माध्यम क्या हो ?

(पाखंड यह है कि इसके कई वर्षों बाद भारत के गुरुकुल मॉडल की शिक्षा को चुराकर उन्होंने अपने यहां जन सामान्य को शिक्षित किया जिसका नाम उन्होंने "एंड्रू एंड बेल्ल" एजुकेशन मॉडल का नाम दिया।)

तय यह हुवा कि #ईसाइयत_फैलाने_का सबसे अच्छा माध्यम #एजुकेशन (अर्थात सूचना या कुसूचना का प्रसारण ) हो सकता है।

कालांतर में मैकाले को अपने पिता को लिखा गया गुप्त पत्र इस बात को प्रमाणित करता है कि ब्रिटिश संसद की 1813 में ईसाइयत के प्रसार में एजुकेशन याणि कुसूचना के  प्रसारण ने   बहुत सफल रोल निभाया ।

उसके बाद शनैः शनैः इस योजना पर मिशनरियों और एडमिनिस्ट्रेशन ने काम किया।
ईसाइयत के प्रसार में कई तरह की योजनाएं अपनायी गयीं:
1- कपोल कल्पित कहानियों और कुसूचनाओं को विश्व स्तर पर प्रसारित करना। उंनको यूनिवर्सिटी के माध्यम से अंग्रेजी पढ़ने गए भारतीयों के मष्तिष्क में अकडेमिया के नाम पर ठूंसना।
आखिर आपके विचार कहाँ से जन्म लेते हैं ? जो सूचनाएं आप अपने पांच ज्ञानेंद्रियों से संग्रहित करते हैं, उन्हीं से न।  काम शास्त्र पढ़ने और गीता पढ़ने वालों के विचार भाव और व्यक्तित्व अलग अलग कैसे बनते हैं? ऐसे ही न।
जिसमे आर्यन द्रविड नामक अफवाह फैलाकर ईसाइयत के लिए आधार बनाया गया।

2- जो अंग्रेजी पढे भारतीय अपनी आइडेंटिटी क्राइसिस को पुष्ट करने के लिए इन कुसूचनाओ को प्रसारित करने में सहायता करें, उनके ऊपर ब्रिटिश सरकार का वरद हस्त रखकर उंनको प्रोत्साहित करना - जिसमे द्वारिका नाथ टैगोर, राजाराम मोहन राय, फुले, अम्बेडकर, पेरियार और नीरद सी चौधरी आदि आदि जैसे लोग थे - जिन्होंने ब्रिटिश दस्युयों की विरदवालियाँ गाई हैं।

3- वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था ने मुसलमानों के धर्म परिवर्तन के प्रसार के विरोध में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। क्योंकि जाति आज की कास्ट सिस्टम न होकर एक स्वतंत्र ऑटो रेगुलेटेड मैन्युफैक्चरिंग या सर्विस सेक्टर की यूनिट थी जिसको हर जाति के प्रमुख व्यक्ति नियंत्रित करते थे। उसी तरह वर्ण व्यवस्था में ब्रामहण प्रमुख भूमिका निभाते थे। इसलिए इन दोनों तत्वो को निशाने पर लेकर मिशनरियों ने इनको गरियाना शुरू किया और अकडेमिया के माध्यम से यह कुसूचना को एजुकेशन का अंग बनाकर अंग्रेजी पढ़ने वाले भारतीयों के मष्तिष्क में बैठाना शुरू किया। वहां से अनुवाद होकर यह कूड़ा वर्नाक्यूलर भाषा पढ़ने वाले लोगों में गया।

3- 1901 में तीन वर्णों ब्रामहण क्षत्रिय और वैश्य ( तथाकथित आर्य) को 3 ऊंची जातियों में तथा भारत के चौथे वर्ण, शूद्र की हजारों सर्विस प्रोवाइडर और मैन्युफैक्चरिंग रहीं समुदायों को निम्न जाति में बांटकर  सरकारी दस्तावेज और कानून का अंग बनाया गया।

4- ब्रिटिश संसद ने 1935 में गोवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट बनाया और बनवासी और गिरिवासी हिन्दुओ को ST तथा बाकी निम्न चिन्हित की गई 429 जातियों को SC घोसित किया।
5- ब्रिटिश एडुकेटेड इंडियन बरिस्टर्स ने ब्रिटिश संसद में ईसाइयत फैलाने की इस षड्यंत्र को देव कृत्य मानकर संविधान का अंग बनाया।
6- स्वतंत्रता के बाद 1989 में इसी को आधार मानकर ओबीसी का गठन किया।

अब जरा अपना राजनैतिक चोला उतारकर पूर्व काल का निरीक्षण कीजिये। ST और SC ही ईसाइयो के निशाने पर थे। लेकिन पिछले कुछ दशकों से ओबीसी इनके प्रमुख निशाने पर हैं।

विचार कीजिये।
गहन विचार कीजिये।

तभी कमेंट करने की कोशिश कीजिये।

#Expose_Christianity
#Expose_Missionary

#Expose_RSS_And_BJP too.

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