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राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥ – श्रीरामरक्षास्तोत्रम्

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राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥ – श्रीरामरक्षास्तोत्रम् जिस प्रकार भगवान् वेद निरस्त समस्तपुंदोषशंकापंककलंकावकाश तथा भगवन्निश्वास होने से भ्रम, प्रमाद, विप्रलिप्सा, करणापाटव आदि दूषणों से सर्वथा दूर तथा भगवान् की सत्ता में परमप्रमाण  और भगवद्रूप ही हैं उसी प्रकार वेदार्थ के उपबृंहण रूप पुराण, संहिता एवं रामायण, महाभारत में कहे हुए मंत्रद्रष्टा महर्षियों के वाक्य भी वेद ही की भाँति परम प्रामाणिक हैं। इतना अन्तर अवश्य है कि वेदों में स्वतः प्रामाण्य है तथा स्मृति, पुराण, इतिहास आदि में परतः प्रामाण्य है अर्थात् स्मृति आदि का प्रामाण्य वेदसापेक्ष है और वेदों के प्रामाण्य में किसी की कोई अपेक्षा नहीं है। पर जैसे वेद स्वयं की कृपा से ही समझ में आ सकते हैं उन पर मानव की बुद्धि का कोई बस नहीं चलता उसी प्रकार पुराण आदि भी अपनी बुद्धि के बल पर नहीं समझे जा सकते। वे तो अपनी अहैतुकी अनुकम्पा से ही साधकों को कभी-कभी अपना मर्म बता देते हैं। इसका एक अनुभव मुझे अभी-अभी अर्थात् ८-९-९८ की ब्रह्मवेला में हुआ। श्रीरामरक्षास्तोत्र का प्रायः बहुतेरे आस्तिक जन...

भैरवी साधना और ये काल।

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।।आदेश।। भैरवी साधना और ये काल। तंत्र में अगर एक महिला है तो भैरवी बनेगी और उसका मार्ग संभोग से हो कर जाता - ये वो ज्ञान जो आज कल हर नई साधिका से दी जाती है। परंतु ये अर्ध सत्य है, या ये बोला जाए कि ये सत्य से काफ़ी दूर है। आज साधना के विषय मे कुछ गुड़ रहस्य बताता हूँ। कौन सा साधक भैरवी साधना कर सकता है? १. जिससे वज्रोली साधना आती हो। २. जो काम नही साधना भाव से भैरवी साधना कर पाए। भैरवी को तीन तरीके से सिद्ध किया जा सकता है। १. माँ के रूप में। २. कुमारी या बेटी के रूप में। ३. अर्धग्नि या लाता भैरवी के रूप में। जब भैरवी के 3 स्वरूप है ।तो लोग उसे माँ या बेटी के स्वरूप में क्यों नही अपनाते।उनको लता भैरवी ही क्यों चाहिए।मतलब वो अपनी काम के रूप में  उपयोग  ही करना चाहते है । लता भैरवी साधना 12 पहर यानी 36 घंटे की साधना है जिसमे भैरव और भैरवी दोनों उच्य कोटि के साधक होने चाहये। भैरव का काम होता है साधना पर ध्यान देना और भैरवी का काम है इस प्रक्रिया में सहायक होना। एक भी बीच मे साधना छोड़ नही सकता  । कोई नई कन्या लता भैरवी नही बन सकती। और कोई साधक जो वज्रोली न जानता...

नागा साधु का इतिहाश नागा साधु बनने के नियम......

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नागा साधु का इतिहाश नागा साधु बनने के नियम...... सभी साधुओं में नागा साधुओं को सबसे ज्यादा हैरत और अचरज से देखा जाता है।  यह आम जनता के बीच एक कौतुहल का विषय होते है।  यदि आप यह सोचते है की नागा साधु बनना बड़ा आसान है तो यह आपकी गलत सोच है। नागा साधुओं की ट्रेनिंग सेना के कमांडों की ट्रेनिंग से भी ज्यादा कठिन होती है, उन्हें दीक्षा लेने से पूर्व खुद का पिंड दान और श्राद्ध तर्पण करना पड़ता है।  पुराने समय में अखाड़ों में नाग साधुओं को मठो की रक्षा के लिए एक योद्धा की तरह तैयार किया जाता था। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा की मठों और मंदिरों की रक्षा के लिए इतिहास में नाग साधुओं ने कई लड़ाइयां भी लड़ी है।  आज इस लेख में हम आपको नागा साधुओं के बारे में उनके इतिहास से लेकर उनकी दीक्षा तक सब-कुछ विस्तारपूर्वक बताएंगे। नाग साधुओं के नियम :- वर्त्तमान में भारत में नागा साधुओं के कई प्रमुख अखाड़े है।  वैसे तो हर अखाड़े में दीक्षा के कुछ अपने नियम होते हैं, लेकिन कुछ कायदे ऐसे भी होते हैं, जो सभी दशनामी अखाड़ों में एक जैसे होते हैं। 1- ब्रह्मचर्य का पालन- कोई भी आम...

श्रीकृष्णसहस्त्र नामावली

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#श्रीकृष्णसहस्रनामावली ●●●●●◆◆◆◆◆●●● श्रीकृष्‍ण के एक हजार नाम..….. आप पूर्ण परमेश्वर वासुदेव श्री कृष्ण के शायद ही इतने नाम से परिचित होंगे। भगवान श्री कृष्ण को 1000 नामसे पहिचाना जाता है। आपके सामने वो 1000 नाम प्रस्तुत कर रहा हु।   श्रीकृष्ण के एक हजार नामों द्वारा पूर्व प्रज्वलित अग्निकुंड में आहुति प्रदान करवाने के लिए आचार्य तिल, चंदन का चूरा, शकर, शाकल्य, कमलगट्टा, मखाना, जौ, इन सभी वस्तुओं को गोघृत में पूर्णतः मिलाकर या मात्र खीर द्वारा कृष्णजी के प्रत्येक नाम मंत्रों से अग्नि में आहुति प्रदान कराएं- 1. ॐ हरये स्वाहा 2. ॐ देवकीनंदनाय स्वाहा 3. ॐ कंसहन्त्रे स्वाहा 4. ॐ परात्मने स्वाहा 5. ॐ पीताम्बराय स्वाहा 6. ॐ पूर्णदेवाय स्वाहा 7. ॐ रमेशाय स्वाहा 8. ॐ कृष्णाय स्वाहा 9. ॐ परेशाय स्वाहा 10. ॐ पुराणाय स्वाहा 11. ॐ सुरेशाय स्वाहा 12. ॐ अच्युताय स्वाहा 13. ॐ वासुदेवाय स्वाहा 14. ॐ देवाय स्वाहा 15. ॐ धराभारहर्त्रे स्वाहा 16. ॐ कृतिने स्वाहा 17. ॐ राधिकेशाय स्वाहा 18. ॐ परस्मै स्वाहा 19. ॐ भूवराय स्वाहा 20. ॐ दिव्यगोलोकनाथाय स्वाहा 21. ॐ सुदाम्नस्तथाराधिकाशापहेतवे स्वाहा 22. ॐ घृ...

राम शब्द का अर्थ

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राम शब्द का अर्थ ••••••••••••••••••• राम का अर्थ है, मेरे भीतर प्रकाश, मेरे हृदय में प्रकाश |  Ram means the light within me, the light in my heart राम का अर्थ है ‘प्रकाश’। किरण एवं आभा (कांति) जैसे शब्दों के मूल में राम है। ‘रा’ का अर्थ है आभा (कांति) और ‘म’ का अर्थ है मैं, मेरा और मैं स्वयं। राम का अर्थ है मेरे भीतर प्रकाश, मेरे ह्रदय में प्रकाश। निश्चय ही ‘राम’ ईश्वर का नाम है, जो इस धरती पर 7560 ईसा पूर्व अर्थात 9500 वर्ष पूर्व अवतरित हुए थे। रामनवमी पूरे भारत में मनाई जाती है। यह बहुत पवित्र दिन है। यदि रामायण की अवधि 7500 ईसा पूर्व है, तो महाभारत का काल क्या है? महाभारत लगभाग 5,110 वर्ष हुआ। कृष्ण का देहावसान 5110 वर्ष पूर्व हो गया था। कृष्ण के शरीर छोड़ने की सही तिथि भी उपलब्ध है। उससे कुछ समय पूर्व ही महाभारत घटित हुआ था। राम नाम तथा रामायण का प्रचलन  |  Prevalance of name Ram    and Ramayana भगवान् राम का सम्बन्ध सभी एशियाई महाद्वीपों से है। इंडोनेशिया, मलेशिया और कम्बोडिया का पूरा बेल्ट रामायण से जुड़ा हुआ है। यह बेहद पुराना महाकाव्य/ग्रन्थ है। इसका प्रभ...

संस्कृत श्लोक

#संस्कृत_श्लोक ••••••••••••••••••• #सँजोकर_रखने_लायक_लेख!!!!! पाठक व्रंद आपके लिए  संस्कृत के कुछ श्लोक हिन्दी अर्थ के साथ पाठकों की रुचि के अनुरूप पलब्ध कराने का प्रयास किया है। यदि आप भी समें कोई श्लोक जोड़ना चाहें तो आपका स्वागत है। सभी से प्राथना है ,अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी या संस्कृत  को वरीयता दें लेख लम्बा है ,संजोकर रखें /  विवाह के अवसर पर राजेश-ऋचा विवाह अनुबन्धम्। शुभं भवतु ॠषि कृत प्राचीन प्रबन्धम्।। प्राचीन भारतीय ॠषियों द्वारा अनुप्रणीत सामाजिक प्रबन्धन के अनुसार विशेष और स्नेहा का विवाह शुभ और कल्याण प्रद हो। (इसमें राजेश-ऋचा की जगह नवविवाहित जोड़े का नाम दिया जा सकता है) खलु भवेत् नव युगल जीवने सत्यं ज्ञान प्रकाशः। वर्धयेन्नित्यं परस्परं प्रेम त्याग विश्वासः। काम क्रोध लोभ संमोहाः प्रमुच्येत् भव बन्धम्।। हम परमपिता ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि नव दम्पति का जीवन सदैव सत्य और ज्ञान के प्रकाश से परिपूर्ण हो और दोनों में दिन-प्रतिदिन परस्पर प्रेम त्याग और विश्वास बढ़ता रहे। आप काम क्रोध लोभ मोह आदि बन्धनों से मुक्त होकर अपने जीवन के रम लक्ष्य को प्राप्त क...

कल मैं मुसलमान बनूँगा

कल मैं मुसलमान बनूँगा सन्त एकनाथ जी सरल शब्दों में धर्म को लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रसिद्ध थे।  500 वर्ष पुरानी बात है।तबतक देश में मुसलमान आक्रांता आ चुके थे और इस्लाम की दावत का चलन जोरों पर था।  उनकी प्रसिद्धि से आसपास के मुल्ला मौलवी जलते थे। किसी को विचार आया कि अगर कोई विद्वान मौलवी इनको ही कलमा पढ़ाकर मुसलमान बना ले तो आसपास के कई गाँव मुसलमान हो जाएंगे।  एक होशियार मौलवी को गाँव में लाया गया और उसने धीरे धीरे इनकी सभी शिक्षाओं को समझने और उनके शब्दों में अपने लिए तर्क के बिन्दु खोजने लगा।  कुछ दिनों में अपने अनुभव से वह मानने लगा कि अब इनको मुसलमान बनाने लायक सभी विषय इकट्ठे हो गए हैं।  एकदिन वो एकनाथजी महाराज के सामने आया और बातचीत प्रारम्भ की-  - आप कहते हैं कि जीव ईश्वर का अंश है? - बिल्कुल, सत्य है। -हमारा इस्लाम भी यही कहता है। -ठीक कहता है तुम्हारा इस्लाम। -संसार मिथ्या है और हमारे कर्मों का लेखाजोखा ईश्वर के पास है? - सत्य है मौलाना, तुम ठीक कहते हो? - सभी मनुष्य ईश्वर के बनाए गए हैं अतः सभी बराबर हैं और सबको उसी ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए जि...