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Showing posts from January, 2018

आज भी अज्ञात है, ये चार शक्तिपीठ!!!

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आज भी अज्ञात है, ये चार शक्तिपीठ!!! ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ हिन्दू धर्म के शास्त्रों के अनुसार जहां-जहां देवी सती के अंग के टुकड़े  , धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ भी अस्तित्व में आए। इन शक्ति पीठों की संख्या अलग-अलग धर्म ग्रंथों में अलग-अलग दी गई है। जहां देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है वही देवी भागवत में 108, देवी गीता में 72 और तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। हालांकि मुख्य तौर पर देवी के 51 शक्तिपीठ ही माने गए है। लेकिन क्या आप जानते हैं, 51 शक्तिपीठों में से 4 ऐसे भी हैं जो आज भी अज्ञात हैं। वे आज कहां और किस रूप में हैं, यह बात कोई नहीं जान पाए।   रत्नावली शक्ति पीठ (Ratnavali Shakti Peeth) मां सती के इस शक्तिपीठ को लेकर कहा जाता है कि यहां देवी मां का कंधा गिरा था। मान्यता है कि यह अंग मद्रास की आस-पास गिरा, लेकिन सही स्तिथि ज्ञात नहीं है। कालमाधव शक्ति पीठ (Kalmadhav Shakti Peeth) कहते है यहां देवी सती कालमाधव और शिव असितानंद नाम से विराजित हैं। मान्यता है यहां मां सती का बाएं कूल्हे गिरे थे। यह स्थान भी आज तक अज्ञात है। लंका शक्ति पी

सिद्ध शाबर मन्त्र

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सिद्ध शाबर मन्त्र ●●●●●●●●●● शीघ्र फल-दायक सिद्ध शाबर मंत्र ~~~~~~~~~~~~~~~~~ ‘साबर’ का प्रतीक अर्थ होता है ग्राम्य, अपरिष्कृत । ‘साबर-तन्त्र’ – तन्त्र की ग्राम्य-शाखा है । इसके प्रवर्तक भगवान् शंकर प्रत्यक्ष-तया नहीं है, किन्तु जिन सिद्धों ने इसका आविष्कार किया, वे परम-शिव-भक्त अवश्य थे । गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछन्दर नाथ ‘साबर-मन्त्र’ के जनक माने जाते हैं । अपने तप-प्रभाव से वे भगवान् शंकर के समान पूज्य माने जाते हैं । अपनी साधना के कारण वे मन्त्र-प्रवर्तक ऋषियों के समान विश्वास और श्रद्धा के पात्र हैं । ‘सिद्ध’ और ‘नाथ’ सम्प्रदायों ने परम्परागत मन्त्रों के मूल सिद्धान्तों को लेकर बोल-चाल की भाषा को मन्त्रो का दर्जा दिया गया । ‘साबर’-मन्त्रों में ‘आन’ और ‘शाप’, ‘श्रद्धा’ और ‘धमकी’ दोनों का प्रयोग किया जाता है । साधक ‘याचक’ होता हुआ भी देवता को सब कुछ कहता है, उसी से सब कुछ कराना चाहता है । आश्चर्य यह है कि उसकी यह ‘आन’ भी काम करती है । ‘आन’ का अर्थ है – सौगन्ध । शास्त्रीय प्रयोगों में उक्त प्रकार की ‘आन’ नहीं रहती । बाल-सुलभ सरलता का विश्वास ‘साबर मन्त्रों का साधक मन्त्र के देवत