मंत्र क्या है ?

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

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मंत्र

☀☀☀☀☀☀☀☀☀"वक्रतुण्ड महाकाय , सूर्यकोटि समप्रभ ! निर्विघ्नं कुरु मे देव , सर्व कार्येषु सर्वदा" !!☀☀☀☀☀☀☀☀☀

मंत्र क्या है ?

मंत्र शब्दों का संचय होता है, जिससे इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और अनिष्ट बाधाओं को नष्ट कर सकते हैं । मंत्र इस शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन और मनन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है ।

अगले स्तर पर मंत्र अर्थात जिसके मनन से व्यक्ति को पूरे ब्रह्मांड से उसकी एकरूपता का ज्ञान प्राप्त होता है । इस स्तर पर मनन भी रुक जाता है मन का लय हो जाता है और मंत्र भी शांत हो जाता है । इस स्थिति में व्यक्ति जन्म-मृत्यु के फेरे से छूट जाता है ।

मंत्रजप के अनेक लाभ हैं, उदा. आध्यात्मिक प्रगति, शत्रु का विनाश, अलौकिक शक्ति पाना, पाप नष्ट होना और वाणी की शुद्धि।

मंत्र जपने और ईश्वर का नाम जपने में भिन्नता है । मंत्रजप करने के लिए अनेक नियमों का पालन करना पडता है; परंतु नामजप करने के लिए इसकी आवश्यकता नहीं होती । उदाहरणार्थ मंत्रजप सात्त्विक वातावरण में ही करना आवश्यक है; परंतु ईश्वर का नामजप कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है ।

मंत्रजप से जो आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है उसका विनियोग अच्छे अथवा बुरे कार्य के लिए किया जा सकता है । यह धन कमाने समान है; धन का उपयोग किस प्रकार से करना है, यह धन कमाने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है ।

मंत्र का मूल भाव होता है- मनन। मनन के लिए ही मंत्रों के जप के सही तरीके धर्मग्रंथों में उजागर है। शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।

यहां मंत्र जप से संबंधित कुछ जरूरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं, जो गुरु मंत्र हो या किसी भी देव मंत्र और उससे मनचाहे कार्य सिद्ध करने के लिए बहुत जरूरी माने गए हैं- - मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।

- मंत्र जप के लिए सही वक्त भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी तकरीबन 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।

- अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।

- मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें।

- एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें। - मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है।

- कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें।

- किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।

- मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें। - मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें।

- मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे- कोई मंदिर या घर का देवालय।

- मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए।

- माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली का उपयोग करें।

- माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए। मंत्र क्या है .....

‘मंत्र’ का अर्थ

‘मंत्र’ का अर्थ शास्त्रों में ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ के रूप में बताया गया है, अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। वेदों में शब्दों के संयोजन से ऐसी ध्वनि उत्पन्न की गई है, जिससे मानव मात्र का मानसिक कल्याण हो। ‘बीज मंत्र’ किसी भी मंत्र का वह लघु रूप है, जो मंत्र के साथ उपयोग करने पर उत्प्रेरक का कार्य करता है। यहां हम यह भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बीज मंत्र मंत्रों के प्राण हैं या उनकी चाबी हैं

जैसे एक मंत्र-‘श्रीं’ मंत्र की ओर ध्यान दें तो इस बीज मंत्र में ‘श’ लक्ष्मी का प्रतीक है, ‘र’ धन सम्पदा का, ‘ई’ प्रतीक शक्ति का और सभी मंत्रों में प्रयुक्त ‘बिन्दु’ दुख हरण का प्रतीक है। इस तरह से हम जान पाते हैं कि एक अक्षर में ही मंत्र छुपा होता है। इसी तरह ऐं, ह्रीं, क्लीं, रं, वं आदि सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी हैं। हम यह कह सकते हैं कि बीज मंत्र वे गूढ़ मंत्र हैं, जो किसी भी देवता को प्रसन्न करने में कुंजी का कार्य करते हैं

मंत्र शब्द मन +त्र के संयोग से बना है !मन का अर्थ है सोच ,विचार ,मनन ,या चिंतन करना ! और "त्र " का अर्थ है बचाने वाला , सब प्रकार के अनर्थ, भय से !लिंग भेद से मंत्रो का विभाजन पुरुष ,स्त्री ,तथा नपुंसक के रूप में है !पुरुष मन्त्रों के अंत में "हूं फट " स्त्री मंत्रो के अंत में "स्वाहा " ,तथा नपुंसक मन्त्रों के अंत में "नमः " लगता है ! मंत्र साधना का योग से घनिष्ठ सम्बन्ध है......

मंत्रों की शक्ति--

मंत्रों की शक्ति तथा इनका महत्व ज्योतिष में वर्णित सभी रत्नों एवम उपायों से अधिक है।

मंत्रों के माध्यम से ऐसे बहुत से दोष बहुत हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं जो रत्नों तथा अन्य उपायों के द्वारा ठीक नहीं किए जा सकते।

ज्योतिष में रत्नों का प्रयोग किसी कुंडली में केवल शुभ असर देने वाले ग्रहों को बल प्रदान करने के लिए किया जा सकता है तथा अशुभ असर देने वाले ग्रहों के रत्न धारण करना वर्जित माना जाता है क्योंकि किसी ग्रह विशेष का रत्न धारण करने से केवल उस ग्रह की ताकत बढ़ती है, उसका स्वभाव नहीं बदलता। इसलिए जहां एक ओर अच्छे असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनसे होने वाले लाभ भी बढ़ जाते हैं, वहीं दूसरी ओर बुरा असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनके द्वारा की जाने वाली हानि की मात्रा भी बढ़ जाती है। इसलिए किसी कुंडली में बुरा असर देने वाले ग्रहों के लिए रत्न धारण नहीं करने चाहिएं।

वहीं दूसरी ओर किसी ग्रह विशेष का मंत्र उस ग्रह की ताकत बढ़ाने के साथ-साथ उसका किसी कुंडली में बुरा स्वभाव बदलने में भी पूरी तरह से सक्षम होता है। इसलिए मंत्रों का प्रयोग किसी कुंडली में अच्छा तथा बुरा असर देने वाले दोनो ही तरह के ग्रहों के लिए किया जा सकता है।

साधारण हालात में नवग्रहों के मूल मंत्र तथा विशेष हालात में एवम विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए नवग्रहों के बीज मंत्रों तथा वेद मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।

मंत्र जाप- 

मंत्र जाप के द्वारा सर्वोत्तम फल प्राप्ति के लिए मंत्रों का जाप नियमित रूप से तथा अनुशासनपूर्वक करना चाहिए।

वेद मंत्रों का जाप केवल उन्हीं लोगों को करना चाहिए जो पूर्ण शुद्धता एवम स्वच्छता का पालन कर सकते हैं।

किसी भी मंत्र का जाप प्रतिदिन कम से कम 108 बार जरूर करना चाहिए। सबसे पहले आप को यह जान लेना चाहिए कि आपकी कुंडली के अनुसार आपको कौन से ग्रह के मंत्र का जाप करने से सबसे अधिक लाभ हो सकता है तथा उसी ग्रह के मंत्र से आपको जाप शुरू करना चाहिए।

बीज मंत्र-

एक बीजमंत्र, मंत्र का बीज होता है । यह बीज मंत्र के विज्ञान को तेजी से फैलाता है । किसी मंत्र की शक्ति उसके बीज में होती है । मंत्र का जप केवल तभी प्रभावशाली होता है जब योग्य बीज चुना जाए । बीज, मंत्र के देवता की शक्ति को जागृत करता है ।

प्रत्येक बीजमंत्र में अक्षर समूह होते हैं । उदाहरण के लिए – ॐ, ऐं,क्रीं, क्लीम्

ॐ कार मंत्र जैसे दूसरे २० मंत्र और हैं |

उनको बोलते हैं बीज मंत्र |

उसका अर्थ खोजो तो समझ में नही आएगा लेकिन अंदर की शक्तियों को विकसित कर देते हैं |

सब बिज मंत्रो का अपना-अपना प्रभाव होता है |

जैसे ॐ कार बीज मंत्र है ऐसे २० दूसरे भी हैं |

ॐ बं ये शिवजी की पूजा में बीज मंत्र लगता है |

ये बं बं.... अर्थ को जो तुम बं बं.....जो शिवजी की पूजा में करते हैं|

लेकिन बं.... उच्चारण करने से वायु प्रकोप दूर हो जाता है |

गठिया ठीक हो जाता है | शिव रात्रि के दिन सवा लाख जप करो

बं..... शब्द, गैस ट्रबल कैसी भी हो भाग जाती है |

खं.... हार्ट-टैक कभी नही होता है | हाई बी.पी., लो बी.पी. कभी नही

होता | ५० माला जप करें, तो लीवर ठीक हो जाता है |

१०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का प्रभाव चला जाता है | खं शब्द |

ऐसे ही ब्रह्म परमात्मा का कं शब्द है | ब्रह्म वाचक | तो ब्रह्म

परमात्मा के ३ विशेष मंत्र हैं | ॐ, खं और कं |

ऐसे ही रामजी के आगे भी एक बीज मंत्र लग जाता है -

रीं रामाय नम:||

कृष्ण जी के मंत्र के आगे बीज मंत्र लग जाता है -

क्लीं कृष्णाय नम: ||

तो जैसे एक-एक के आगे, एक-एक के साथ मिंडी लगा दो तो १०

गुना हो गया |

ऐसे ही आरोग्य में भी ॐ हुं विष्णवे नम: | तो हुं बिज मंत्र है |

ॐ बिज मंत्र है | विष्णवे..., तो विष्णु भगवान का सुमिरन |

ये आरोग्य के मंत्र हैं |

महामृत्युंजय मंत्र : पूर्ण मंत्र एवम विधि-

(मूल संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद सहित)

कहा जाता है कि यह मंत्र भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी असीम कृपा प्राप्त करने का माध्यम है… इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप करने से आने वाली अथवा मौजूदा बीमारियां तथा अनिष्टकारी ग्रहों का दुष्प्रभाव तो समाप्त होता ही है, इस मंत्र के माध्यम से अटल मृत्यु तक को टाला जा सकता है… हमारे चार वेदों में से एक ऋग्वेद में महामृत्युंजय मंत्र इस प्रकार दिया गया है… ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।

इस मंत्र को संपुटयुक बनाने के लिए के लिए इसका उच्चारण इस प्रकार किया जाता है…

ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।। ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

इस मंत्र का अर्थ है : हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं… उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए… जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाए!!!

मंत्र, भगवन्नाम और गुरुमंत्र में क्या फर्क है ?

मंत्र, भगवन्नाम और गुरूमंत्र

मंत्र, भगवन्नाम और गुरुमंत्र में क्या फर्क है ? कई प्रकार के मंत्र होते हैं। मनोरथपूर्ति के लिए भी कई तरह के मंत्र जपे जाते हैं और जरूरी नहीं है कि मंत्र भगवान का ही नाम हो। मानों, पाचन-तंत्र कमजोर है और खाना पचाना है तो यह मंत्र हैः

अगस्त्यं कुंभकर्णं च शनिं च वडवानलम्।

आहारपरिपाकार्थं स्मरेद भीमं च पंचमम्।।

इससे आपका खाना पचेगा, पक्की बात है।

नींद नहीं आती है तो सोने के समय ‘शुद्धे शुद्धे महायोगिनी महानिद्रे स्वाहा।‘ ऐसा जप करें तो नींद आ जायेगी। नींद की गोली ले-लेकर भी जिन्हें नींद नहीं आयी, उन्हें भी इस मंत्र से नींद आने लगी। तो इस लोक अथवा परलोक की कुछ सुविधा पाने का मंत्र होता है। ऐसे ही शादी-विवाह का, विघ्न-बाधाओं को टालने का, कार्यसाफल्य, रोगनिवृत्ति, शत्रु-दमन व अकाल मृत्यु टालने का भी मंत्र होता है।

दूसरा होता है भगवन्नाम। मंत्र में तो जापक की श्रद्धा, मंत्र के आंदोलन और मंत्र जप की विधि काम करती है किंतु भगवन्नाम में इनके साथ-साथ भगवान की अहैतुकी करूणा-कृपा भी सहयोग करती है। भगवन्नाम और मंत्र में यह फर्क है कि मंत्र जापक की मेहनत एवं श्रद्धा का फल लाता है तथा भगवन्नाम भगवान की कृपा से फल को सुहावना बनाता है। भगवन्नाम में भगवान की विशेष कृपा भी काम करती है।

अगर भगवन्नाम गुरु के द्वारा गुरूमंत्र के रूप में मिलता है और उसे अर्थसहित जपते हैं तो वह सारे अनर्थों की निवृत्ति तथा परम पद की प्राप्ति कराने में समर्थ होता है। गुरु जब मंत्रदीक्षा देते हैं तो अपने परब्रह्म-परमात्म स्वरूप में एकाकार होते हैं। जैसे रामकृष्ण परमहंस ने नरेन्द्र को कहाः “तुझे ईश्वर के प्रति रूचि है, ईश्वर को पाना ही है ?”

नरेन्द्र बोलेः “हाँ।”

रामकृष्ण उन्हें कमरे में ले गये। बोलेः “कमीज उतार दो।” मंत्र दीक्षा देने के लिए कमीज उतरवाना कोई जरूरी नहीं है लेकिन नरेन्द्र दार्शनिक है, तार्किक है, इसमें श्रद्धा है कि नहीं देखने पड़ेगा। कमीज उतारी। रामकृष्णदेव ने परखा कि श्रद्धा है तथा ध्यानस्थ होकर देख लिया कि कौन से केन्द्र में नरेन्द्र के मन और प्राण रहते हैं। वहाँ स्पर्श कर दिया और स्पर्श दीक्षा दे दी। कुछ ही समय में नरेन्द्र को अलौकिक अनुभूतियाँ होने लगीं। वे घबराये और सोचा कि “इन पागल बाबा ने क्या कर दिया है ? कभी मुझे हँसी आती है, कभी रोना आता है, कभी क्रियाएँ होती हैं, कभी क्या-क्या होता है ! अब दुबारा दक्षिणेश्वर नहीं जाऊँगा।” किंतु गुरु की स्पर्शदीक्षा का प्रभाव ऐसा कि न जाने का इरादा कराने वाले नरेन्द्र अपने को रोक नहीं पाये और स्वामी विवेकानन्द बनने तक की यात्रा कर ली। यह ईश्वरकृपा-गुरुकृपा का सुमेल है।

मरने के बाद भी तीन चीजें आपका पीछा नहीं छोड़तीं – पुण्य आपको स्वर्ग ले जाता है, पाप आपको नरक में ले जाता है और भगवन्नाम गुरुमंत्र जब तक भगवत्प्राप्ति नहीं हुई, तब तक मरने के बाद भी आपको यात्रा कराके भगवान तक ले जाता है। यह गुरुमंत्र की महिमा है। मंत्रदीक्षा ली व जापक ने कुछ वर्ष या कुछ महीने मंत्र जपा और फिर किसी पाप से, किसी कुसंग से उसकी श्रद्धा टूटी एवं उसने मंत्र छोड़ दिया तो मंत्रत्यागात् दरिद्रता…. गुरुमंत्र का त्याग करने से दरिद्रता आती है।

देवाधीनं जगत्सर्वं मंत्राधीनश्च देवता।

‘समस्त जगत देव के अधीन है और देव मंत्र के अधीन है।’

गुरुमंत्र को साधारण न समझें। प्रीतिपूर्वक, आदरपूर्वक, अर्थसहित नियमित जपते जायें। यह आपको परमात्मदेव में, परमात्मसुख में प्रतिष्ठित कर देगा।

मंत्रसिद्धि की चार बातें

मंत्रसिद्धि की चार बातें जितने अंश में ठीक से पाली जायेंगी, ठीक से होंगी उतने ही अंश में उसका अलौकिक, चमत्कारिक लाभ महसूस होगा।

एक तो है शब्द-उच्चारण का ध्वनि विज्ञान। इस विज्ञान की जानकारी शिष्य को नहीं हो तो गुरु को होनी ही चाहिए। सामनेवाला भावप्रधान है, श्रद्धाप्रधान है या विचारप्रधान है यह देखना पड़ता है। किसी की रूचि है शिवजी में और उसको मंत्र थमा दें ‘हरि ॐ’, किसी की रूचि है माता जी में और मंत्र थमा दें शिवजी का तो यह ध्वनि विज्ञान के विपरीत है। जिस देव में शिष्य की श्रद्धा प्रीति हो उनका मंत्र देने से उसको विशेष लाभ होगा। गुरुमंत्र-दीक्षा के समय मंत्र का अर्थ भी समझाने वाले को समझा देना चाहिए।

दूसरी बात हैः संयम, प्राणशक्ति, मानसिक एकाग्रता। जैसे अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी, पर्व आदि के दिनों में संसार व्यवहार करने से ज्यादा हानि होती है। बाकी के दिनों में भी एक दूसरे से शारीरिक सुखभोग करने का प्रयत्न करना यह असंयमी व्यक्ति की पहचान है।

तीसरी बात हैः उपासना की सामग्री – तुम्हारा यह भौतिक शरीर जितना स्वस्थ होगा, उतनी उपासना में बरकत आयेगी।

चौथी बात हैः भावना, श्रद्धा विश्वास और आपका लक्ष्य-उद्देश्य जितना ऊँचा होगा, उतना ही नाम-कमाई से ऊँचा फल आएगा। नाम तो भगवान का है लेकिन आप पुत्र को पास कराने के लिए जप रहे हैं तो फल छोटा आयेगा। यदि आप परमात्मप्राप्ति के उद्देश्य से भगवन्नाम मंत्र जपते हैं तो ऊँचा फल आयेगा। दृढ़ता से लगे रहो तो अवश्य-अवश्य परमात्मप्राप्ति हो जायेगी। भगव्तप्राप्ति के उद्देश्य से किये हुए जप दोषों को मिटाते हैं। जप से धारणा भी होने लगती है, ध्यान भी होने लगता है, समाधान भी होने लगता है। परमात्म-तत्त्व का ज्ञान भी सहज उपदेशमात्र से स्थित हो जाता है।

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