नग्नता, मैथुन और कला - एक घुटन


नग्नता, मैथुन और कला – एक घुटन : भारत एक खोज

कला और संस्कृति के विकास में और ईश्वर के अजय आस्तित्व में वस्त्र पहनना या ढँकना यह कदापि निहित नहीं है|

पूरी दुनिया में देवी देवताओं की नग्न मूर्तियाँ बनायीं गयी हैं| भारत में भी देवी देवताओंकी और उनके अवतारोंकी नग्न मूर्तियाँ और चित्र बनानेकी परंपरा ग्रीक काल के पहले से चली आ रही है| इतना ही नहीं, दुनियामें भारतका ‘सनातन’ धर्म – जिसे अब ‘हिन्दू’ कहते है, एकमात्र ऐसा धर्म होगा जिस में योनी और लिंग पूजा का विशेष महत्त्व है|

एक इस्लाम धर्म को छोड़कर दुनिया के बाकी सारे धर्म नग्नता को सम्मान और दिव्य शक्ति का प्रतिक मानते हैं| प्रबोधन काल के पश्चात कई ग्रीक देवताओं के नग्न शिल्प तथा ईसाईं धर्म के नग्न और अर्ध नग्न चित्र देखने को मिलते हैं|

भारत के अनेक मंदिरों में योनी और लिंग पूजा, शक्ति और शिव पूजा मानी गयी है| यह भारतीय जीवन का अविभाज्य हिस्सा है| 

एम्. एफ. हुसेन जी के देवी सरस्वती का नग्न चित्र बनाने पर हिन्दू मूलतत्ववादियों ने चिल्लाना शुरू कर दिया कि यह उनकी संस्कृति पर आक्रमण है| इसके दो कारण हैं – एक तो चित्रकला, शिल्पकला सम्बंधित विचार, उसकी अनाटोमी – anatomy – यानी शरीरशास्त्र समझने के लिये मूलतत्ववादी तैयार नहीं थे, दूसरा कारण, इन सबको एम्. एफ. हुसेन मुस्लिम होने की बात अचानक पता चली हो|

‘मकबूल फ़िदा हुसेन’ पंढरपुर में जन्मे, भारतीय संस्कृति की सही जानकारी रखनेवाले, महान कलाकार थे| एक हजार वर्ष तक इस्लाम की गुलामी में रहे भारत को इस्लामी संस्कृति की हार लड़ाई में सिर्फ ५० प्रतिशत हो सकती है और बची खुची हार उनको (मुसलमानों को) अपने जैसा बनाने में है; हम उनके जैसा बनने में नहीं है| यह महत्वपूर्ण बात भारत के लोग भूल गये|

‘इस्लाम’ यह धर्म ऐसा है कि जिसमें होली बुक (कुरआन – ए – शरीफ) पर प्रश्न पूछना, विवाद उत्पन्न करना, या अपने मतानुसार इसका अर्थ लगाना आदि बातों के लिये मौत की सजा है| इसे ईश्वर से सम्बंधित अथवा पवित्र बातों की निंदा करना यानी धर्मनिंदा (blasphemy) माना जाता है|

‘चार्ली हेब्दो’ मासिक में प्रेषित महमद के नग्न चित्र कई बार छापे गये हैं| डेन्मार्क में किसी व्यंग्य चित्रकार ने प्रेषित महमद का व्यंग्य चित्र छाप दिया था| दुनिया भर के मुस्लिमों ने इन सबको मौत के घाट उतार दिया|

‘चार्ली हेब्दो’ मासिक के संपादक ‘स्टेफेन चार्ब’ ने इन धमकियों से बिना डरे, महम्मद के नग्न चित्र मासिक में छापना जारी रखा| इसके कारण इस मासिक पर ‘पेरिस’ में हमला कर के संपादक के साथ कईयों को, मुस्लिम जिहादियों ने मार डाला| 

‘सैतान के वचन’ (Satanic Verses) कुरान और महम्मद का अपमान है ऐसा समझकर ‘सलमान रश्दी’ जैसे लेखक को कई साल पहले मौत की सजा सुनाई गयी थी|

इस लेख के लेखक ने खुद ‘चार्ली हेब्दो’ मासिक के कार्टून, ट्वीटर से ‘स्टेफेन चार्ब’ की मौत की बाद, श्रद्धांजली के तौर पर प्रसारित किये थे| वे लेखक के ‘टाइम लाइन’ पर पीछे जा कर पाठक देख सकते है|

‘तसलीमा नसरीन’ ने भी कुरआन, मुस्लिम महिलाओंकी हालत, उनका शोषण, लिंग और योनी को अपवित्र मानकर, ढँककर रखेने के प्रवृत्ति के विरुद्ध लिखा| इसके कारण उनपर अपने ही देश से निष्कासित होने की नौबत आयी| इस्लाम ऐसा धर्म है जिसमे एक ही समय सेक्स मेनिया – विषयासक्ति और सेक्स का दमन दोनों साथ साथ चलते हैं|

शायद ये दोनों एक दूसरे पर अवलंबित है| मनुष्य को उसकी जिज्ञासा होती है, जो ढँका हुआ है| कला को ढँका नहीं जा सकता, उसे दिखाना पड़ता है| उदाहरण के लिये बुर्का धारण करने वाली महिला के चित्र में कला प्रकट करना असंभव है| कई बार धर्म और कला का उदय साथ साथ होता है| मुख्य रूप से सम्बंधित धर्म के ईश्वरी अवतार और देवी देवताओं के चित्र, शिल्प इनमें से कला का अविष्कार, हर धर्म में, संस्कृति, में हर प्रदेश में होता है| ‘मायकेल आन्जेलो, लिओनार्दो द विन्ची’ से लेकर ‘एम्. एफ. हुसेन तक अनेक कलाकारोंने अपने अपने धर्म की अथवा दूसरे धर्म की व्यक्ति उनको जैसे दिखाई देते है, उसी प्रकार चित्रित किये है| उन के शिल्प भी उसी प्रकार बनाए गये हैं|

जब आप मानवीय रूप में ईश्वरी अवतार दिखाते हो, चाहे वह चित्र हो या शिल्प, तब उस की अनाटोमी – शरीर रचना सबसे महत्वपूर्ण होती है| यह अनाटोमी डॉक्टर की तरह चित्रकार और शिल्पकार इन्हें भी कुशलता से सीखनी पड़ती है| इसलिये नैतिक तथा अनैतिक यह विचार कलाकार नहीं कर सकता, वह ननैतिक – नैतिकता निरपेक्ष  होता है|

इस्लाम में मूर्तिपूजा निषिद्ध है| किसी भी मानवीय रूप में ईश्वर के अंश को चित्रित करना मना है| प्रेषित महम्मद और उनकी वारिसों के चित्र बनाना या उनकी पूजा करना मना है| इस अपराध को सजा – ए – मौत मिलेगी| मुसलमान पैगम्बर का आदर करता है, पर इबादत वह सिर्फ अल्लाताला की करता है, जो उनके लिए अमूर्त है| प्रेषित महम्मद अल्लाह का दूत है, वह ईश्वर या ईश्वरी अवतार नहीं| ईश्वरी दूत होने के कारण वे सर्वोच्च आदरणीय है| इस्लाम महिलाओं में दैवी अंश को नहीं मानता|

इस्लाम में स्त्री देवता नहीं| पैगम्बर की पत्नी अथवा बेटी इनकी और सम्मान से देखा जाता है; पर उन्हें देवताओं के आस पास भी स्थान नहीं दिया जाता| इस्लाम में स्त्री ‘पुरुष की जागीर’ है|  विशिष्ट दायरे में उसे कुछ हक़ भी दिए हैं| मुसलमान जोर शोर से यह दावा करते हैं कि उन्होंने स्त्री को मानवीय हक़ से भी कुछ जादा दिया है| वह सब झूठ है| हिजाब,बुर्का और जो पुरुष उसे प्राप्त हुआ है उसकी सेवा, यही इस्लामी स्त्रियों की मर्यादा है|

इस पृष्टभूमि को देखते हुए इस्लाम किसी देवी या देवता का नग्न अथवा अर्ध नग्न शिल्प बनाना असंभव ही है| सजा ए मौत की बारे में न सोचा जाय, फिर भी चित्र, शिल्प, नग्नता, अर्ध नग्नता धर्म का आधार न लेते हुए दिखानी पड़ेगी| जिस की सजा वास्तवता से सम्बंधित न होकर भी ‘चार्ली हेब्दो’ की तरह, सजा ए मौत ही मिलेगी| 

ध्यान देने लायक बात तो यह है कि प्रेषित महम्मद का चित्र, कार्टून अथवा उस सन्दर्भ में नग्नता किसी ने बनाने की सोची तो सारा मामला काल्पनिक होगा| मूल रूप में ऐसे चित्र, कल्पना से बनाये चित्र धर्म में उपलब्ध नहीं है, क्यों कि वे निषिद्ध है| मैडोना, वीनस, खजुराहो के चित्र, कामाख्या मंदिर के नग्न जगन्माता का शक्तिस्थल, इन सारे और दूसरे धर्मोंकी संकल्पना के साथ इस्लाम का दूर दूर का रिश्ता भी नहीं|

मकबूल फ़िदा हुसेन जी ने श्री गणेश के कुछ अप्रतिम चित्र बनाये है| उन्हें भारतीय संस्कृति का, हिन्दू धर्म का सही ज्ञान था| प्राचीन मंदिरों में हम देवी देवताओं की पूजा करते हैं| वे शिल्प पत्थर में तराशे गये नग्न शिल्प है| भारत में देवी को जगन्माता कहा जाता है| माता और बच्चे में तो नग्नता का सवाल ही उठ खड़ा नहीं होता| अगर ऐसा हुआ तो यूँ माना जाय कि सवाल खड़ा करने वाले के मन में माता सम्बन्धी कामुकता को लेकर दोष है|

भारत के अनेक देवताओं को – चाहे वह पुरुष देवता हो या स्त्री देवता; सुबह का स्नान कराने के समय देवताओं की मूर्तियाँ नग्न होती हैं| पंडित – पूजा करने वाला अपने हाथों से दूध, इत्र – फुलेल, पानी, घी, दही, पंचामृत से उन्हें नहलाता है|

बाद में उन देवताओं को वस्त्र चढ़ाया जाता है| कुछ मूर्तियाँ जो अर्वाचीन कालसे हैं, उन पर मूर्तिकार ने ही वस्त्र चढाने की कारीगरी की है| पर ये वस्त्र चढाने से पहले चित्रकार या शिल्पकार को देव या देवी की एनाटोमी – शरीर रचना , सुन्दर दिखाने हेतु, मूर्ति, चित्र, के नग्न स्वरूप को सोचना पड़ता है|

कलाकार नैतिक या अनैतिक नहीं होता| वह ‘ननैतिक’ – नैतिकता निरपेक्ष(amoral) होता है| कलाकार पुजारी नहीं होता| हुसेन जी ने सरस्वती का नग्न चित्र बनाया, यह हजारों साल की परंपरा थी| “इसी प्रकार वे मुस्लिम धर्म में कुछ कर दिखायें” ऐसा उनसे कहना यह बेवकूफी की हद है| उपरोक्त कहे के अनुसार मुस्लिम धर्म इस प्रकार के मानवीय कला विचारों से अनभिज्ञ है, अनजान है| उनके शिल्प, वास्तु शास्त्र में, इमारत में दिखाई देते हैं| जिस कला को सहजता से मानवीय मूल्य या मानवीय चेहरा नहीं होता, उसे कलात्मक पिछडापन कहा जा सकता है|  

भारत में कलेण्डर(दिन दर्शिका) और शिला प्रेस के लिये व्यापार करने की परंपरा राजा रविवर्मा जैसे चित्रकार ने शुरू की| राजा रविवर्मा उत्कृष्ट चित्रकार था| पर कला तत्वज्ञान की अनुसार वह ढोंगी था| पुराने विचार रखता था| उस ने अनेक देवता, ह्यूमन मॉडेल का इस्तेमाल कर, उन्हें कपडे पहनाकर प्रचलित किया| शिला प्रेस में छापे मॉडेल्स, देवी देवताओं के चित्र हिदुओं के घर घर लगाये गये| इस से यह भ्रम फैला कि देवी देवताओं को कपडे पहनाना कलाकार के लिये बंधनकारक है| वास्तव तो यह है कि जिस समाज में देव और देवी का असाधारण लैंगिक आविष्करण शिल्प और चित्रों से व्यक्त होता था, वहाँ प्रबोधन युग की जगह अँधेरा छा गया|

कामाख्या देवी हिन्दुओंका सबसे बड़ा शक्ति स्थल है| कामाख्या मंदिर में योनी पूजा अति पवित्र और इस से बहने वाला खून शक्ति बीज माना जाता है|

महादेव शंकर के बारे में लिंग पूजा भारतीय जीवन का अविभाज्य हिस्सा है|

नग्नता का डर और परहेज यह हिन्दू धर्म में नहीं था| इस्लाम की इस प्रकार की मान्यताएं उदारचेता लोगों के खिलाफ थी| हिन्दू मूलतत्ववादी लोगों ने भारत में हिन्दुओं की विजय और इस्लाम की हार इस कदर मानी कि इस्लाम की बंद संस्कृति हिन्दू संस्कृति की उदारता में और ननैतिकता में(amorality) विलीन करने के बजाय हम भी उनकी तरह कट्टर बने| इस मूर्खता की सोच ने कट्टर हिन्दू अपने मूल नग्न और अद्भुत अविष्कार की शाश्वत ईश्वरी कला को कपडे पहनाने लगे और बुर्के भी|

आजकल मूर्ति बनाते समय शिल्पकार उस पर कपड़ों का आवरण चढ़ाता है| चित्रकार भी वही करता है| नग्नता से वे ही डरते है, जिन के मनमें नग्नता और कामुकता का फर्क स्पष्ट नहीं हुआ है|    

देवी को हम जगन्माता मानते है, शक्ति स्थल मानते है| अपनी संस्कृति से हमें यह सीख मिली है कि उसे के और हमारे बीच में बेटे का रिश्ता है| जब माँ बेटे को और बेटा माँ को नग्न देखता है, तब दोनों का जन्म होता है| 

कामाख्या मंदिर के शक्ति देवी की मूर्ति योनी पूजा और शक्ति स्थल की नाम से भारत भर में विख्यात है| भारत में इस देवी का और मंदिर का महत्व अनन्य साधारण है| 
कामाख्या देवी के मंदिर को शक्ति स्थल मानकर योनी पूजा करते वक्त उस के योनी का रक्त(प्रतिक की रूप में) हम सर पर धारण करते है, तब वह स्थल कामुक है, ऐसा हम सोचते है क्या? या वह अपनी संस्कृति है?

हुसेन जी ने सरस्वती का नग्न चित्र बनाया, उस से अत्यंत कलात्मक और अष्ट सात्विक भाव प्रकट होता था| इस के विपरित कलात्मक नजरिये को लेकर भारत माता का जो चित्र हम सदैव देखते है, उसे लम्बी साड़ी पहनायी हुई होती है| ऐसा लगता है कि हल्दी – कुमकुम समारोह में कोई सुहागिन आई हो, जिसके केश खुले है| उस चित्र का परिणाम देखते हुए वह अखंड भारत है ऐसा भी नहीं लगता, या किसी की माता है ऐसा भी नहीं लगता| कला का पिछडापन और अर्थहीनता उस साड़ी पहने हुए भारत माता के चित्र से प्रतीत होती है| अब किसी कर्मठ सिरफिरे ने आपके गले पर छुरी रख कर उसे ही भारत माता मानने के लिये बाध्य किया तो भी, प्राचीन, अर्वाचीन और ‘पोस्ट मॉडर्ननिजम’ से वह एक बनावटी,सामान्य चित्र है|

हजारों साल के इस्लाम के आक्रमण के पश्चात भी हम उन्हें अपने जैसे नहीं बना पाये, बल्कि हम उनके जैसे हो गये| यही हमारी सांस्कृतिक नग्नता है| महत्वपूर्ण समस्या तो यहीं है कि इस नग्नता को कैसे छिपाया जाय? 

धर्म के अन्दर नग्नता त्याज्य नहीं, सनातन धर्म में तो बिलकुल ही नहीं| इस्लाम और विक्टोरियन काल यह नग्नता ढँकने वाला पाखंडी काल माना गया है| धर्म का सच्चा अर्थ प्रकृति है, और प्रकृति शाश्वत – ननैतिक होती है|  

वस्त्र और नैतिकता का क्या सम्बन्ध? मिसाल के तौर पर कहा जाय, तो उष्ण प्रदेश – विषुववृत्त रेखा में रहने वाले लोग सादे और नाजुक – पतले वस्त्र पहनते हैं| शीत प्रदेश के लोग ऊनी कपडे, विविध आवरणों से बने वस्त्र पहनते हैं| इस का मतलब क्या यह है कि जादा कपडे पहनने वाले लोग ज्यादा नैतिक होते हैं?

अगर वस्त्र नैतिकता का निदर्शक है तो जादा कपडे पहनने वाले लोग नैतिक माने जाने चाहिये| जिसे से हमें डर लगता है, उसे हम ढँक देते हैं, और यह भय हमारे मन में विद्यमान है|

इस्लाम धर्म भय पर आधारित है| कुछ अब्राहमनिक (Abrahamanic) धर्म भय पर आधारित ही है| पर भारत में निर्माण धर्म, भय की आधार पर खड़े नहीं है|

जैन लोगों में दिगम्बर पंथ है| क्या उस पंथ को भी अश्लील माना जाय?

अनेक स्तूप, मंदिर और अनेक शिल्प के देवी देवता नग्न रूप में उस काल के कलाकारों ने तराशे हैं| आज के जैसे कट्टर लोग उस समय भारत में मौजूद नहीं थे| इस कारण वे अपनी कला को पूर्ण रूप में व्यक्त कर सके|

देव, अवतार ये ईश्वर के अंश होते है, ईश्वर नहीं| ईश्वर जन्म नहीं लेता, ईश्वर की मृत्यु भी नहीं आती, ईश्वर का अंश जिस में बड़ी मात्रा में होता है, उनको हम अवतार मानते हैं|

कई साधू और साध्वी, मन्त्र साधना करने वाले साधू या साध्वी अथवा नाग पंथीय साधू वस्त्र विहीन होते हैं|

अश्लीलता से उनका कोई वास्ता नहीं|

हुसेन जी मुस्लिम होने के कारण वे हिन्दू देवताओं का जान बूझ कर अपमान करते है; वे इस्लाम के साथ इस तरह बर्ताव करेंगे क्या, ऐसा पूछना नीरी बुद्धि हीनता है| इस्लाम कोई धर्म नहीं, वह तो राजनीतिक ‘कल्ट’ यानी जीवन शैली है, जिस की दूसरी अहमियत धर्म है| मानवीय आस्तित्व का सफ़र एक खोज है, जिस में अनेक कलाएँ हैं, संगीत है, विज्ञान है| क्रमशः वे निम्न लिखित है –

१.      ज्ञान योग 

२.      अवतार/ प्रेषित

३.      धर्म

४.      धर्म का संगठन

५.      धर्म के नाम से काम करते है ऐसा बताने वाले राजनितिक/अराजनीतिक संगठन 

सच्चा कलाकार ज्ञान, प्रेषित और धर्म के आस्तित्व में अनेक स्तरपर कार्यरत होता है| उसे धर्म के संगठन (उदा. शंकराचार्य के न्यास, खिलाफत, वैटिकन, वक्फ बोर्ड इत्यादि) इन सबसे कोई लेना देना नहीं होता| उस प्रकार वह काम ही नहीं कर सकता| धर्म के संगठन के नीचले स्तर पर, धर्म के संगठन के नाम पर राजनीतिक/अराजनीतिक (निजी) संगठन काम करते हैं| कोई भी सच्चा कलाकार उन्हें कोई भी स्पष्टीकरण नहीं दे सकता| और उसने देना भी नहीं चाहिये| दोनों की भाषा एक दूसरे की समझ में नहीं आती| संख्या के बल पर कलाकार निष्प्रभ होता है, हारता है, पर उसका कहना प्राकृतिक और अमर होता है| उसे हराने वाले का बोलना झूठ, कामुकता लिये हुए और ढोंग से ओतप्रोत होता है| हुसेन जी, चार्ली हेब्दो, तसलीमा नसरीन की साथ क्या क्या हुआ होगा यह बात ध्यान में आ सकती है|

देवी देवताओं के चित्र और शिल्प दुनियाभर की सारी संस्कृतियों में (अर्वाचीन भारतीय संस्कृति को लेकर) केवल नग्न रूप में चित्रित और तराशे हुए नहीं हैं|

हर एक धर्म में कुछ अपवाद छोड़ दे तो देवी देवताओं की अनगिनत मैथुन चित्र और शिल्प बने है और वे दैवी माने जाते हैं| सहजता से तथा ज्ञान के स्तरपर मैथुन यही निर्मिती की आरंभिक और आखरी सीमा होती है| वही मैथुन अलग अलग रूप में पुनर्निर्मित करनेकी दैवी प्रतिभा कलाकार को प्राप्त होती है| यह बात जिनकी समझ में नहीं आती ये कलाकार की हत्या करनेका मौका ढूंढते है| ऐसे लोग सारी संस्कृतियों, सारी जगहों पर छिपे बैठे हैं| वे सिर्फ मैथुन का, नग्नता का विरोध नहीं करते बल्कि निर्मिती की, प्रकृति की और ज्ञान की हत्या करते हैं| इनका पक्ष लेने वाली सरकार जब अलग अलग देशों में बनती है तब तब उस देश का, प्रान्त का और संस्कृति का पतन शुरू होता है|

नैतिकता का प्रकृति से, सृजन से, ज्ञान से कोई वास्ता नहीं| ज्ञान, प्रकृति ननैतिक(amoral) है| नैतिकता कानून है, इस प्रकार लाखो विरोधी नैतिक कानून नग्नता और मैथुन के सन्दर्भ में है, बल्कि हर बात के सन्दर्भ में है| अगर विषय बदल कर उदाहरण दिया जाय तो – संजय दत्त ने हथियार रखने के कारण भारत में पांच साल जेल की सजा काटी| जो ब्रिटिश कालीन कानून की तहत थी| इस प्रकार हथियार रखना अमरिका में अपराध नहीं है बल्कि एक सहज घटना है| भारत में कानून के अनुसार सजा काटने के कारण उसके लिये अब अमरीका के दरवाजे बंद हैं| सजा की संकल्पना या रूप बदलता रहता है| उसका परिणाम दूर तक होता है| यह दिखाने के लिये यहाँ यह उदाहरण कुछ हटकर दिया गया है|

दुनिया भर के चित्रकारों और शिल्पकारों ने नग्नता के सन्दर्भ में कई प्रयोग किये है| उसमें भारत का स्थान प्रथम है| 

खजुराहो जैसे मंदिर, अजंता एलोरा जैसे शिल्प भारतीय संस्कृति की धरोहर है| धर्म के नाम पर अगर चित्रकारों ने देवी देवताओं की नग्न और मैथुन शिल्प बनाना बंद कर दिया तो हमें अपनी चार पांच हजार साल पहले की पुरानी कला संस्कृति और शिल्प संस्कृति को नकारना पड़ेगा|

जैनिज़म, बुद्धिज़म, हिन्दू सनातन धर्म ने कलाकार को शिल्प या चित्र बनाते समय नग्नता अथवा मैथुन शिल्प बनाना नैतिक नियमों को लेकर त्याज्य नहीं किया था|

प्राचीन महर्षियों ने ज्ञान और दैवी अंश के स्तरपर सृजन को देखा था| नैतिकता के नियम और कानून एक जैसे है| सीमा पर कायदा बदलता है| केवल देश की ही नहीं अपितु राज्य की सीमा की अनुसार भी बदलता है| महाराष्ट्र में बीफ पर प्रतिबन्ध है, केरला में नहीं| गुजरात में शराब बंदी है पर महाराष्ट्र में नहीं| इसका अर्थ यही है कि गुजरात में शराब पीना अपराध है अथवा महाराष्ट में गोमांस खाना माना है, आस पास के राज्यों में नहीं| भारत में बिना परमिट के हथियार रखना अपराध है, पर अमरीका में नहीं| अनेक प्रजातियों में आज भी एक से जादा पत्नियाँ या एक से जादा पति रखने का रिवाज जारी है| ऐसी रीतियाँ भारत में कई स्थानों पर है| कई मुक्त भटकने वाली प्रजातियों में है, वैसे आधुनिक दुनियाँ में भी है|  

भारत में विक्टोरियन काल के गुलामी के काल खंड में रानी विक्टोरिया का साम्राज्य विश्व भर में फैला था| जब उस पर हमेशा सूरज चमकता था तब विक्टोरियन मैनरिज़म नामक कोड ऑफ़ कंडक्ट – व्यवहार की नीति प्रचलित हुई, जिस से महिलाओं ने पूरा बदन ढँक जाये ऐसे कपडे पहनना, पुरुषों ने खाना खाते समय विशिष्ट पद्धति से कपडे पहनना, काँटा और चम्मच इस्तेमाल करना, अभिजात्य संस्कृति का लक्षण माना जाने लगा|

जेम्स कामेरून(James Cameron) की ‘टायटानिक’ फिल्म के कुछ दृश्यों में विक्टोरियन मैनारिज़म – रीती रिवाज के उदहारण देखने को मिलते है| फिल्म में एक जगह पर, बाद में महान कहलाया गया चित्रकार, पिकासो का उल्लेख भी सामान्य, अति साधारण के रूप में मिलता है| प्रथम श्रेणी के विक्टोरियन अभिजात्य वर्ग में जो वातावरण था, उसका गुलाम भारतीय प्रजा पर, दीर्घ काल तक नकारात्मक असर रहा| विक्टोरिया रानी और ब्रिटिश साम्राज्य की हार के बाद, ब्रिटन अमरीका और ब्रिटिशों का अमल जिस पर था, वे राष्ट्र कुल देश इस वर्चस्व से परे हट गये| कला और संस्कृति के, नैतिकता के, झूठे नियम उन्होंने त्याग दिये|

विक्टोरियन काल में, जिस ने मूल कम्प्युटर की खोज की, जिस ने नाझी का कूट सन्देश(encrypted message decode) पढ़ने की विधि को इजाद किया, वह एलन टूरिंग सम लैंगिक होने की कारण अपराधी माना गया| उसे हार्मोनल उपचार अथवा जेल जैसा विकल्प दिया गया| आगे चलकर उस ने आत्महत्या की| सम लैंगिकता कोई बीमारी नहीं थी| एलन टूरिंग आगे कम्पूटर का पितामह साबित हुआ| उसकी खोज की कारण हिटलर की विरोध में हुआ युद्ध दो साल पहले समाप्त हुआ| इंग्लैंड की रानी ने टूरिंग को मृत्यु के उपरांत माफ़ी दे दी| 

पर इसके विपरीत प्राचीन भारतीय संस्कृति में सम लैंगिकता को किसी भी प्रकार के बीमारी की भावना से नहीं देखा जाता था| 

आधुनिक आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर जी ने ११ दिसम्बर २०१३ को रात को १० बजकर ७ मिनट पर ट्वीटर पर ट्विट कर के बताया था कि सम लैंगिकता को अपराध नहीं माना जा सकता, बल्कि उनकी मतानुसार भगवन अयप्पा भी हर – हरा की प्रतीकात्मक सम लैंगिकता की निर्मिती मानी जाती है|

भारत में विक्टोरियन वैचारिकता का परिणाम गहरी गुलामी में हुआ| भारतीय साहित्य( उदा. गीत गोविन्द) भारतीय प्राचीन कला, इतिहास, शिल्प, पत्थर पर की गई खुदाई या नक्काशी, कालिदास से लेकर राधा गोविन्द तक शृंगारिक लिखना, वात्स्यायन का कामशास्त्र पाश्चिमात्य लोगों ने सराहा| स्वतन्त्र भारत का बहु संख्य हिन्दू, कला में विक्टोरियन बनने के लिये, हाथ पैर मारने लगा| खानदानी मालिक का गुलाम जैसा बर्ताव करता है, ठीक उसी प्रकार भारत की वैचारिकता बन गयी| इसी समय भारत का ज्ञान और सृजन, कला और कल्पना का स्थान, धर्म संस्था और धर्म के नाम पर चलने वाली संस्था से ऊपर था| स्वतंत्रता के पश्चात् गुलामी मानसिकता के हिन्दू, मुस्लिम,  ख्रिश्चन, सिक्ख, जैन और बौद्ध कट्टर वादियों ने, अपने पैरों पर खड़ी कला को, सिर के बल खड़ा किया, अर्थात वे कला की सारी धारणाएँ और मान्यताओं को, विपरीत दिशा में ले गये|

स्वतंत्रता प्राप्ति के काल में कुछ कलाकारों ने अभिजात मूलभूत संस्था से रिश्ता जोड़ने के लिये ‘बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप’ की स्थापना की| इस में एफ.एन. सुजा, एस.एच. रझा, एम्.एफ. हुसेन, के.एच. आरा और एच.ए. गडे ये चित्रकार और एकमात्र शिल्पकार एस.के. बाकरे थे| बाद में इस ग्रुप में मनीष डे, राम कुमार, अकबर पदमसी, और तय्यब मेहता शामिल हुए| १९५० में वासुदेव गायतोंडे,क्रिशन खन्ना, मोहन सामंत( आगे चलकर ये अमरीका में रहने लगे) भी शामिल हुए| उनका यह ग्रुप केवल चित्रकला ही नहीं, तो शिल्पकला और कला विचार के बारे में, सृजन का और कला का, राजनितिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विद्रोह था| इसे भारत के हजारों साल की मुग़लों और १५० साल की ब्रिटिश गुलामी की परंपरा, १९४७ साल में हुआ भारत का विभाजन, और उसके बाद का अमानुष नर संहार, यह पृष्ठभूमि थी| इस ग्रुप ने उसका विवरण इस प्रकार दिया था| 

“Paint with absolute freedom for content and technique. Almost anarchic, save that we are governed by one or two sound elemental and eternal laws, of aesthetic order, plastic co–ordination and color composition.”

1956 में यह ग्रुप बिखर गया| फिर भी, भारत के मूल कलात्मक सृजनता से जुड़ने वाला विद्रोह, भारतीय कला विश्व के (लेख हो या चित्र या शिल्प) गुलामगिरी से मुक्त करने वाली कोशिशों से लिखा गया| कोई भी धर्म, धार्मिक संस्था, किसी धार्मिक कट्टरवादी संगठन, सरकार या प्रतिगामी, गुलामी विचार करने वाले गुट, कलाकार की स्वतंत्रता में दखल अंदाजी नहीं कर सकते क्यों कि स्वतंत्रता अभिजात और प्राकृतिक है| लगभग १२०० साल पहले टूटा हुआ सम्बन्ध इस विद्रोह ने भारत के साथ जोड़ दिया|

इस समुदाय के ‘एफ.एन. सुझा’ ने अनेक नग्न चित्र अलग अलग रचनाओं में बनाये है| जन्म से वे कैथलिक थे| दुनियाभर के चित्रकारों ने मूल भारतीय परंपरा में निहित दैवी नग्नता चारों ओर फैलायी| भारत के मूल नग्न रूप के चित्र और शिल्प, गुलामी की आवरण के नीचे कपडे पहनाकर, कैलेन्डर पर राजा रवि वर्मा ने बनाये| राजा रविवर्मा और दीनानाथ दलाल (दलाल भी मशहूर चित्रकार थे) के कैलेन्डर के देवी देवता अथवा शिला प्रेस से छपकर आये देवी देवता, हमें पूजनीय लगे| वह अपने अपवृशीय दैवी परम्पराओं का और कलाकारों का नीचला स्तर था| सच देखा जाय तो राजा रविवर्मा और दीनानाथ दलाल से पहले भी, प्राचीन काल में, मंदिर में, शिल्पों को पथरीला वस्त्र पहनाने की प्रथा, अपवादात्मक रूप से थी, पर यह मुख्य शर्त नहीं थी|

खिलाफत, वक्फ बोर्ड, शंकराचार्य के न्यास, वैटिकन वगैरा धार्मिक संस्थाओं को कला में दखल अंदाजी करने का हक़ कभी भी नहीं था| यह बात आधुनिक कला परम्पराओं ने भी बार बार जतायी है| इस आधुनिक परंपरा की जननी प्रबोधन काल के पश्चात पूरक साबित हुई| वास्तव में भारत में यह हजारो साल पहले हुआ था| उपरोक्त किये गये उल्लेख के अनुसार, इस्लाम ने मनुष्य रूप में अथवा सगुण रूप में, देवी या देवता की कल्पना न मानने के कारण, उनके देव देवता नग्न या भग्न कैसे दिखाये जा सकते है?

सच्चा मुसलमान अल्ला की इबादत(भक्ति) करता है, ना ही प्रेषित महम्मद की| मुस्लिम धर्म में प्रेषित महम्मद का चित्र उपलब्ध नहीं| वह पूजनीय देवता है, जैसी कल्पना भी उपलब्ध नहीं| पाश्चिमात्य देशोंने आज प्रेषित महम्मद का कार्टून डेन्मार्क में बनाया अथवा ‘चार्ली हेब्दो’ में छपा, वह केवल कार्टूनिस्ट की कल्पना थी| उसका महम्मद से कोई सम्बन्ध नहीं था| इस से जो हिंसा उत्पन्न हुई, वह धर्म के नाम पर चलने वाली संस्थाओं की अपनी जरुरत थी| इस से उन्हें, अपनी धाक कायम करने का कारण मिला| मुस्लिम संस्कृति का इस से, रत्तीभर भी सम्बन्ध नहीं| परिणाम स्वरूप, मुस्लिम चित्र और शिल्प परंपरा में, राजा महाराजा, मस्जिद मीनारें, महलों और इमारते बनाने में, शानदार ऐश्वर्यपूर्ण प्रगति हुई, परन्तु इसका मानवीय चेहरा नहीं था| 

इस्लाम अपवादात्मक उदाहरण है, जहाँ स्त्री का कोई चेहरा नहीं| देवता का चेहरा नहीं, प्रेषित का चेहरा नहीं, जिसकी प्रार्थना या भक्ति करनी है वह तो पूर्ण रूप से निर्गुण निराकार है| किसी भी कलाकार की यह समस्या है कि स्वर्गीय नग्नता अथवा स्वर्गीय मैथुन के दैवी तत्व मुस्लिम धार्मिक इतिहास का सहारा लेकर निर्माण करना असंभव है| परिणाम स्वरूप, ऐसी नग्नता या मैथुन चित्र या मानवीय शारीरिक संबंधों का कलात्मक निरोगी अविष्कार, मुस्लिम समाज में नहीं है| समूचे मुस्लिम समूह की मानसिकता पर, उसका निरोगी आध्यात्मिक असर न पड़ने के कारण, सारे धार्मिक मुल्ला मौलवियों से इबादत के बाद, सेक्स विषयक कौन कौन से फायदे मर्दों को मिलने वाले हैं, वे भी केवल भौतिक दुनिया में नहीं, बल्कि मौत के बाद, यही बार बार मनपर मुहर किया जाता है| भौतिक जग में कितनी औरतों को भोगा जा सकता है? कितने सेक्स गुलाम रखे जा सकते है, इस से लेकर मौत के बाद ७२ हूरें कैसे प्राप्त की जा सकती है, उसकी तरकीबें, उपायों के इर्द गिर्द ही मुस्लिम मानस फिरता है| इस का मतलब नग्नता, मैथुन शिल्प,नग्न चित्र, देवी देवताओं के शारीरिक संबंधों का वर्णन और उनके अभिजात कला की अभिव्यक्ति किसी धर्म में नहीं होगी, तो उस धर्म में कामुकता नष्ट होने के बदले बढती है| सारी सीख अचानक ‘सेक्स’ इस एक ही विषय की आसपास मंडराँने लगती है| (वह अगर मूल धर्म में निहित न हो, तो भी) यह इसका उत्तम उदाहरण है|

इस उदहारण से यही साबित होता है कि नग्नता और कामुकता, मैथुन के प्रकट होने पर पाबन्दी, मनुष्य को मुक्त नहीं कर सकती| वह मनुष्य को निरोगी कामुक न बनाकर गलत तरीके से कामुक बनाती है| कई इस्लामी जिहादी मृत्यु के बाद कुमारी ७२ हूरोंका उपभोग करने हेतु आतंकी जत्थे में शामिल होते है| सुसाइड बॉम्बर बनते है| जब एम्. एफ. हुसेन को कट्टर हिन्दुओं ने ललकारा “आप ने हिन्दू देवी देवताओं की नग्न चित्र बनाये, वैसे मुसलमानों की भी बनाइये|” तो इसका जवाब वे क्या देते? श्रेष्ठ कलाकार, लेखक, बुद्धिमान, तत्वज्ञ, समाज द्वारा किया छल बर्दाश्त करे, चुप चाप अपना काम करे, और सारे धर्मों के शातिर बदमाश, कट्टर, अज्ञानी लोगों को जवाब देने में अपना समय व्यर्थ न गवाएँ| यह अभिजात्य होने का सबूत है| यही काम हुसेन जी ने किया|

(मध्य प्रदेश की भोजशाला के सरस्वती देवी माता की संगेमरमर की मूर्ति – यह मूर्ति कर्ज़न वायली ने लूट ली|)

सरस्वती के बारे में संक्षेप में कहा जाय तो – हिन्दू पुराणों के अनुसार(मत्स्य पुराण) सरस्वती ब्रह्मा की बेटी थी| उसकी निर्मिती होने की बाद, ब्रह्मा को उसका कामुक आकर्षण निर्माण हुआ और उसने उसके  साथ शादी रचायी| इस अपराध (Incest – एक ही परिवार की सदस्यों से अथवा नजदीकी रिश्तेदारों से लैंगिक सम्बन्ध रखना) की सजा उसे दिलाने के लिये, शिव जी ने ब्रह्मा का एक सर काट दिया| चित्र का अगला हिस्सा, हुसेन अगर चित्रित करते तो उनका क्या होता, यह ब्रह्मा ही जानता है| सरस्वती देवी के सम्पूर्ण नग्न या अर्ध नग्न शिल्प जो भारतीय संस्कृति में निर्माण हुए थे, वे कट्टर वादी लोगों को पता नहीं है| उन में से कुछ लार्ड कर्ज़न ब्रिटन ले गया|

केवल भारत में ही नहीं अपितु, प्रबोधन काल के पूर्व, यूरोप और पाश्चिमात्य जगत में नैतिकता, अध्यात्म, कला और विज्ञान सम्बन्धी, मूर्खता की कल्पनाएँ जन्म लेती थी| उसे यूरोप में ‘डार्क एज’ कहा जाता है| प्रबोधन (Renaissance) के उपरांत, यूरोप और पाश्चिमात्य देश, इस मूर्खता भरी कल्पनाओं से थोड़े मुक्त हुए| भारत के हिंदूवादी संगठन, कलावादी विचार, कला का तत्वज्ञान, उत्तुंग प्रतिभा और अलौकिक बुद्धि का स्पर्श न होने के कारण, मुस्लिम आक्रमण के काल में, स्त्री को जादातर ढँक कर रखनेकी पुरानी रीती, ( जो आगे चलकर विक्टोरियन काल में जारी रही) नैतिक और दैवी मानी गयी| ऐसे विचार फैले, उन्होंने जोर पकड़ा| प्रतिभावान, वैज्ञानिक और कलाकार इस की बलि चढ़ गये|

आज हम देवी देवताओं की पूजा करते हैं| चाहे वह भवानी माता हो या अम्बा माता, विष्णु हो या शंकर| ये सारी मूर्तियाँ प्राचीन काल में नग्न स्वरूप में बनायीं गयी| हिन्दू धर्म के अनुसार, देव और देवी को जगत्पिता और जगन्माता मानते है| बालक और माता, बालक और पिता इनके बीच नग्नता कामुकता से सम्बंधित नहीं होती, ऐसा धार्मिक संकेत होता है| इन संकेतों के विरोध में, आज के धार्मिक संगठन कार्यरत है| महाभारत में, माँ और बच्चे में, वस्त्र को अहंकार और अज्ञान का प्रतिक माना जाने की, कहानी मिलती है|

अपने अंध पति के लिये गांधारी ने, आँखों पर पट्टी बांधकर, आखों की प्रकाश उर्जा बंद कर के रखी थी| महाभारत के युद्ध से पहले, उस उर्जा से, गांधारी अपने बड़े बेटे के सम्पूर्ण शरीर की सुरक्षा करना चाहती थी| उस ने दुर्योधन को निर्वस्त्र होने को कहा| आधुनिक युग की तरह, कट्टर धार्मिक सोच रखने वाले संगठनों की तरह, विचार करने वाले दुर्योधन ने, गांधारी माता की बात सुनकर, अपना गुप्तांग और जंघा ढँक जायेगी इतनेही कपडे बदनपर रखे, बाकी शरीर खुला रखा| गांधारी ने अपने आखों की पट्टी खोलकर जब बेटे के शरीर पर अपने नजरें गडायी तब दुर्योधन का रूप देखकर उसने दुःख पूर्ण आह भरी| उसके नेत्रों की उर्जा कवच की सुरक्षा दुर्योधन के शरीर को प्राप्त हुई| उसके अज्ञान और अहंकार के वस्त्रों के कारण, आच्छादित जांघ और गुप्तांग को, माँ के नेत्रों के प्रकाश उर्जा का सुरक्षा कवच प्राप्त न हो सका| “नग्न यानी पूर्ण रूप से नग्न ऐसा मैंने तुमसे कहा था” – गांधारी ने कहा| महाभारत के अंत में, दुर्योधन के नग्न न हुए, वस्त्राच्छादित इन्द्रिय, भीम ने गदा प्रहार कर के तोड़े और दुर्योधन का अंत हुआ|

One of the Shiva Statue Image , Ling Pooja was very common in ancient India.

‘नग्नता’ निर्मिती की अंतिम सीढ़ी है, और मैथुन सृजन की अंतिम अवस्था| इस से अभिजात शास्त्र और अभिजात कला, नैतिक, अनैतिक नहीं होते| वे, ननैतिक मतलब नैतिकता निरपेक्ष (amoral) होते है| डॉक्टर या कलाकार को, ढँके शरीर की नैतिकता सीखाने से, उस पर इन विचारों की दहशत ज़माने से, व्यक्ति के, समाज के, देश के, समूचे मानव जाति के, आस्तित्व की, सेहत की और सांस्कृतिक नींव की, हानि होती है| केवल हानि ही नहीं बल्कि तोड़ मरोड़ या अध:पतन होता है|

इन सबका सम्बंधित समाज पर गंभीर नकारात्मक असर होता है| समाज और समाज मन निरोगी नहीं रहता| पेड़, पानी, पशुपक्षी और अत्यंत दुर्लभ वन्य विमुक्त जन जातियों की नग्नता में सहजता होती है| इस से, मन निरोगी बनकर उस से, कामुकता और हिंसाचार निर्माण नहीं होता| आदिवासियों में बलात्कार, अपवादात्मक रूप में भी नहीं मिलते|

इसके विपरीत शहरी समाज में, घर में ही, दुर्बल घटकों पर, स्त्रियों पर, घर के सशक्त और बड़े लोग, अत्याचार और बलात्कार करते हैं| इस के समाचार छपते हैं| जो घर में होता है, वही समाज में होता है| फिर हम समस्या कहाँ से शुरू होती है, इसका विचार न करते हुए, कानून को और सख्त बनाने की मांग करते है| कानून कितने भी सख्त क्यों न हो, संख्या शास्त्र बताता है कि अत्याचार और बलात्कार की मात्रा कम नहीं होती|

इसका मूल कारण है, धार्मिक समुदायों ने अभिजात सृजनशील कलाकार पर और बुद्धिमानों पर, लगाये गये ढोंगी झूठे बन्धन| यह सच है, लेकिन राजनितिक दृष्टिकोण से यह सुविधाजनक नहीं है| इसे समझे बगैर, हम, अभिजात शास्त्र, अभिजात कला और सबसे अंत में, सच्चे अर्थ में अभिजात अध्यात्म (ढोंगी साधू और बाबा नहीं) और अभिजात ज्ञान निर्माण नहीं कर सकते| 

उपनिषद में ज्ञान को लेकर एक सुन्दर बोध कथा है| ज्ञान अग्नि समान है| वह अज्ञान रूपी घास को जलाता है, उसके बाद अग्नि का भी अस्तित्व नहीं रहता| अज्ञान समाप्त होने पर, ज्ञान का भी विलय होता है| इस से, अभिजात ज्ञान का अहंकार शेष नहीं बचता| यह इस बोध कथा का अर्थ है|

जिस भूमि में उपनिषद् निर्माण हुए, उस भूमि में, अज्ञान रूपी घास उग आई है| यह केवल सांस्कृतिक, सामाजिक दृष्टी से धोखा ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत और राजनितिक दृष्टी से भी, घुटन पैदा करने वाला है|

हुसेन के चित्र के साथ जो घटना हुई, वैसी ही घटना सलमान रश्दी और तसलीमा नसरीन के किताब को लेकर हुई| इस में सरकार सहभागी थी, सरकार का मतलब किसी एक पक्ष की सरकार नहीं| जो सत्ता में होगी वह सरकार| लेखक क्या लिखे, चित्रकार कौनसे चित्र बनायें, लेखक और कलाकार, किस प्रकार धर्म से याचना करें, बात सत्य होने पर भी असंख्य लोग जिस के विरोध में है, वह सत्य भी चित्रित ना करें अथवा ना लिखे, यह सब सरकार तय करने लगी| धार्मिक समुदाय, चाहे वह मुस्लिम हो या ईसाई, हिन्दू हो चाहे किसी और धर्म का हो, उनकी भावनाएं कभी नाटक, कभी चित्र, कभी किताबें, कभी शीत पेय, कभी खाद्य सामग्री, कभी ध्येय, कभी नारे लगने के कारण, आहत होने लगी| इस प्रकार की अनेक स्वतन्त्र प्रवृत्तियों पर, पाबन्दी लगाने की परंपरा, उस तत्वज्ञ, लेखक, बुद्धिमान, इत्यादि कईयों को पीड़ा देने की परंपरा, कम्युनिस्ट, इस्लामिक और तानाशाही देश में मौजूद है| वहां का प्रचार और प्रसार, ‘pro people’ यानी लोगों के लिये है, ऐसा कहा जाता है| भारत का संविधान नागरिकों को, बड़ी मात्रा में, स्वतंत्रता प्रदान करता है| जो तर्कसंगत है या अभिजात है, ऐसा कोई भी काम जो संविधान के अनुसार है, कोई भी भारतीय नागरिक कर सकता है| भावनाओं को ठेस पहुँचाना यह एक भ्रामक कल्पना है| भावनाएँ किसी भी बात से आहत हो सकती है|

हाल ही में, भाजपा सरकार के सत्ता में आने पर, ईसाईयों की भावनाएँ आहत हुई| मुंबई में किसी नाटक पर पाबन्दी लगा दी गयी, उसी समय बिहार में नितिशकुमार की सरकार ने शराब पर पाबन्दी लगा दी| महाराष्ट्र में गोमांस खाने पर पाबन्दी लगी| तेंदुलकर जी के ‘सखाराम बाईडर’ से लेकर ‘घाशीराम कोतवाल’ तक लोगों का विरोध सहना पड़ा| सब से जादा बीफ की निर्यात करने वाला देश भारत है| एम्. एफ. हुसेन जी को भारत का पिकासो कहा जाता है| देश में शराब से जादा लोग ‘बैगोन’ पीकर मरते हैं; पर ‘बैगोन’ पर पाबन्दी नहीं| किसान फांसी लगा लेता है, पर फांसी पर पाबन्दी नहीं| चित्रकला के छात्र और छात्राएं, कला महाविद्यालय में, बाकायदा नग्न स्त्री पुरुष को सामने सुलाकर, एनाटोमी की पीरियड में, न्यूड रेखा चित्र बनाते हैं| वह उनके शास्त्र का, अध्ययन का हिस्सा है| कला महाविद्यालय में, मॉडल के तौर पर, एनाटोमी के पीरियड में, नग्न स्त्री और पुरुष पोजेस देते हैं, और ये छात्र छात्राएं उनके रेखा चित्र बनाते हैं| डॉक्टरी शिक्षा लेते वक्त, नग्न स्त्री पुरुष के शरीर के आधार पर, इसी एनाटोमी का अध्ययन, आगे बनने वाले डॉक्टर करते हैं| इन सबसे, उन छात्र छात्राओं में अथवा मॉडल में, कामुकता की मात्रा बढ़ गयी है ऐसा नहीं दिखाई दिया| अगर वे ऐसा न करे तो समाज को अच्छे डॉक्टर, चित्रकार नहीं मिल सकते| ये सीखाने वाले डॉक्टर या सीखाने वाले चित्रकारों को “तुम्हारी माँ – बहनों को ऐसी पोज देने के लिये कहोगे क्या, या उनपर ऐसा प्रयोग करोगे क्या?” जैसे प्रश्न कोई भी धार्मिक संगठन पूछते हुए नहीं दिखाई देता|   

उपरोक्त बातें परस्पर विरोधी हैं| ये बातें यहाँ लिखने का कारण, किसी भी प्रकार का मॉरल पोलिसिंग करना, पिछड़ी मानसिकता का लक्षण है| देश में ब्रिटिश कानून आने बाद, मॉरल पोलिसिंग को सरकारी समर्थन मिला| ब्रिटिश चले गये, उन्होंने उनके देश के कायदे कानून भी बदल दिये| 

१९५२ में, जब चुनाव लड़कर भारतीय सरकार सत्ता में आयी, तब से लेकर आजतक, मॉरल पोलिसिंग, कलाकार, बुद्धिमान लोगों की उपेक्षा, गिरफ़्तारी, बड़ी मात्रा में बढ़ गयी है| इन दिनों तो उसे, हर राज्य में समर्थन प्राप्त हो रहा है| राजनितिक पक्ष कोई भी हो, वोट प्राप्त करने के लिये लोगों की याचना, समस्याओं का अध्ययन न करते हुए उत्तर देने की उद्दंडता, मनमानी करने वाले जातिय और धार्मिक समुदाय, उन्नीसवीं सदी का ब्रिटिश कानून, इन सब ने मिलकर, देश की अभिजात्यता और बुद्धिमानी समाप्त कर दी है| भारत राजनितिक समूह या पार्टियों का देश है|   उसे सख्त(Draconian) ब्रिटिश कानून का आधार है| 

आज, कोई वात्स्यायन कामशास्त्र लिखेगा, हजारो शिल्पकार मिलकर खजुराहो जैसे नग्न शिल्प बनायेंगे, चाहे जो खायेंगे, चाहे तब सोमरस प्राशन करेंगे – किसी भी पक्ष की सरकार हो, इन सब बातों को सरकार की राजमान्यता मिलेगी ऐसी कल्पना कर देखें, यह प्रश्न स्वयं को पूछकर देखे| किसी भी प्रकार का दमन, जन तंत्र को मान्य नहीं| इसका कारण है, दमन प्रवृत्ति का(मूल भावना का) शमन न करते हुए, वह प्रवृत्ति भड़काता है| आज भी अपने समाज में ‘सम लैंगिकता पर इलाज करेंगे’ जैसा दावा किया जाता है, उन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा भी प्राप्त है|

एम्. एफ. हुसेन जी, उनके उम्र की अंतिम दिनों, भारत छोड़कर चले गये| एक बार उनसे बातचीत करते समय, मुझे एक अलग बात मालूम पड़ी| कट्टर लोगों के समुदाय को टक्कर देते देते, यह कलाकार उब गया था| पर इसके लिये उन्होंने देश नहीं छोड़ा| भारतीय कर पद्धति, कर अधिकारी मेरे चित्रों की कीमतें पूछते हैं| कहते हैं, ‘एक ही आकार के दो चित्रों की कीमतें अलग अलग क्यों? या कम ज्यादा क्यों? इसका जवाब तर्क के आधार पर, मैं नहीं दे सकता – इस से कर अधिकारी, मेरे साथ अपराधियों जैसा बर्ताव करते हैं| यह चक्र अखंड चलता रहता है| इस पीड़ा के कारण उब गये, एम्. एफ. हुसेन जी को कतार देश ने आमंत्रित किया| एम्.एफ. हुसेन ने कतार में आश्रय लिया| पंढरपुर में जन्मे, किसी समय फिल्मों के पोस्टर रंग कर गुजारा करने वाले, इस महान कलाकार ने अपने चित्रों के बलपर कमाए हुए पैसों से, दुबई में ‘लम्बोर्गिनी’ गाडी खरीदी, जो भारत में कभी संभव ही नहीं था| उनकी मृत्यु की बाद, उनका दफ़न (निधर्मी) लन्दन में हुआ|

अनेक स्तरों पर, अनियंत्रित प्रजातंत्र, राज्य और सरकार की मेलजोल से, अलग अलग धर्मों की और जातियों की सहायता से झुण्ड बनाकर, अलौकिक प्रतिभावान, कलाकार, लेखक और बुद्धिजीवी लोगों की उपेक्षा, स्वतंत्रता के बाद, १५ अगस्त १९४७ से लेकर आजतक चल रही है| इसे रोकने के लिये, कोई भी व्यक्ति, संगठन, राजनितिक पक्ष या कोई अलौकिक नेतृत्व प्रयास करते हुए नहीं दिखता| यह घुटन किसी दिन ज्वालामुखी बनकर, सारे समाज को विनाश के गर्त में ले जायेंगी| ढोंगी, पाखंडियों को, ऑक्सीजन सिलिंडर मिलते हैं, और सत्य को घुटन की काल कोठरी| तब हड्डी को छेदने वाला, चीरने वाला, तेजाब लिखना पड़ता है| इसकी एकही बूँद, गहरा जख्म बनायेगी| जहाँ ये जख्म करेगा, वह अश्वत्थामा की सिर की जख्म की तरह, बहता रहेगा, कभी ठीक न हो सकेगा|  उस जख्म पर लगाने के लिये, तेल मांगने का समय भी, अब निकल गया है|

शायद मैं सपना देख रहा हूँ, एक दिन आप सब मेरे साथ होंगे| हम उलटे खड़े होंगे, जहाँ बुद्धिमान का सिर ऊपर होगा और गुंडों के पैर उसके सामने काँपेंगे| 

साभर - राजू परुलेकर के ब्लॉग से....

#आर्यवर्त

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