श्री दत्तात्रेय बावनी

श्री दत्तात्रेय बावनी

जय योगेश्वर दत्त दयाल
तू ही एक जग में प्रतिपाल
अत्रि-अनसूया कर निमित्त
प्रगटा है जग कारण निश्चित~~1

ब्रह्मा-हरि-हर का अवतार
शरणागत का तारनहार
अंतर्यामी सत्-चित् सुख
बहार सदगुरू द्विभुज सुमुख~~2

झोली अन्नपूर्णा है कर में
शांति कमंडल सोहे कर में
कहीं चतुर्भुज षङभुज सार
अनंत बाहू तूं आधार~~3

आया शरण में बाल अजान
उठिए दिगंबर निकले प्राण
सुनी अर्जुन की आर्त पुकार
दर्शन देकर किया उद्धार~~4

दी योंॠद्धिसिद्धि अपार
अंत में मुक्ति महापद सार
किया आज ये कैसा विलंब?
तेरे बिना मुझको ना आलंब~~5

विष्णु शर्म द्विज का उद्धार
किया भोज लख प्रेम अपार
जंभ दैत्य से त्रासिक देव
किया नाश,ही शांति ततखेव~~6

विस्तारी माया दिता सुत
किया वध इन्द्र कर से तूर्त
ऐसी लीला कहीं पर तेरी
कौन कर सका वर्णन सारी?~~7

दौङ कर आयुसुत के काम
किये पूर्ण सारे निष्काम
बोध दिया यदु से परशुराम
साध्यदेव प्रल्हाद अकाम~~8

ऐसी तेरी कृपा अगाध
क्यों न सुने मेरी आवाज़
देख न अंत,दौङा अनंत
आधे में न हो शिशु का अंत~~9

देख कर द्विज स्त्री का स्नेह
बना पुत्र उसका तू निःसंदेह
स्मर्तगामी कलितार कृपाल
किया उद्धार धोबी गंवार~~10

पेटपीङ से किया मुक्त विप्र
बाह्मण सेठ की रक्षा क्षिप्र
क्यों ब करे अब मेरा उद्धार
लक्ष्य देकर फिर एक बार~~11

शुष्क झाङ पर पात उगाये
क्यों उदासीन आन भाये?
जर्जर बांझ स्त्री का स्वपन
किया सुफल यों सुत का कृत्स्न~~12

दूर कर बाह्मण का कोढ़
किया पूर्ण उसका 'कोड' '(मनोरथ)'
बाझं भैंस , की दुहती देव
हर लिया दरिद्र ही तंतखेव~~13

खाकर भाजी तूं तृप्त हुआ
सुवर्णघट यों सप्रेम दिया
बाह्मण स्त्री का मृत भरतार
करके जीवित दिया आधार~~14

पिशाच पीङा की यों दूर
विप्र पोत्र को उठाया शूर
हरि विप्रमद अंत्यज हाथ
रक्षित भक्त त्रिविक्रम तात~~15

निमिष मात्र से 'तंतुक' एक
पहुँचाया श्री शैल देख
एक साथ में आठ स्वरूप
धरे देव बहुरूप अरूप~~16

संतोष पाये भक्त सुजात
देकर प्रचीति यों साक्षात
यवनराज की टाली पीङ
जातपात की तुझे न चीढ़~~17

रामकृष्ण रूप में अवतार
लीलाएं की थी बारंबार
पत्थर गणिका व्याधोद्धार
पशुपक्षी पर कृपा अपार~~18

अधमोध्दारक तेरा नाम
गाते ही पूरे हो सब काम
आधि-व्याधि उपाधि सारी
टल जाये सुमिरन से सारी~~18

मूठ चोट न लगती जान
स्मरण से नर पारे निर्वाण
डाकण साकण,महिषासुर
भूत पिशाची,जन्द असुर~~20

करे मूठ का नाश ही तूर्त
'दतधुन' सुनते ही मूर्त
करे धूप जो, गाये ऐसे
'दत्त बावनी' सप्रेम से~~21

सुधरे उअनके तीनोंलोक
रहे न उनको कभी शोक
दासी सिद्धि उनकी होय
दुःख दरिद्र उनका जाय~~22

पावन गुरूवार नित्य नियम
करे पाठ जो बावन सप्रेम
यशावकाश में नित्य नियम
करे न दंडित उनको यम~~23

अनेक रूप में यही अभंग
भजते , न लगे माया रंग
सहस्त्रनाम, पर नामी एक
दत्त दिगंबर असंग एक~~24

वंदन तुझको बारंबार
वेद, श्वास तेरा आधार
वर्णन करते, थके जहां शेष
कौन मैं हूँ ? बहुकृत वेष~~25

अनुभव तृप्ति का उदगार
सुना हो जिसने , खाये मार
तपस्वी तत्त्वमसि यह देव
बोलो जय जय श्री गुरूदेव~~26

॥ अवधूत चिंतन श्री गुरूदेव॥

#आर्यवर्त

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