वह_महामानव_कौन_था_जिसने_भगत_सिंह_को_शहीदे_आज़म_भगत_सिंह_बना_दिया!!!

#वह_महामानव_कौन_था_जिसने_भगत_सिंह_को_शहीदे_आज़म_भगत_सिंह_बना_दिया!!!
❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣

पंजाब के जि़ला लायलपुर की धरती सचमुच वन्दनीय है, जिसने न जाने कितने ऐसे वीर पुत्रों को जन्म दिया, जिन्होंने हंसते-हंसते माँ भारती की स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी। इसी लायलपुर के एक गाँव बंगा में एक सिख परिवार रहता था, जिसने आगे चलकर अपनी क्रांतिकारी परम्पराओं से भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा। इसी परिवार में सरदार अर्जुन सिंह पैदा हुए थे। सरदार अर्जुन सिंह अपने ही ढंग के क्रांतिकारी थे। वे जाट सिख थे, परन्तु स्वामी दयानन्द जी से जब उनकी भेंट हुई तो वे आर्य समाज की ओर झुक गए। यह कहा जाता है कि स्वामी दयानन्द जी ने उन्हें स्वयं दीक्षा दी और अपने हाथ से उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया था।

यह सरदार अर्जुन सिंह जी ही थे, जिन्होंने अपने पोते भगत सिंह को क्रांतिकारी विचारों के संस्कार दिये। स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के कुछ ही दिनों के उपदेशों के प्रभाव से वे स्वाधीनता संग्राम और समाज-सुधार की क्रांति के अग्रदूत बन गए थे। उन्होंने अपने वंश को देश की आज़ादी के लिए बलिदान कर दिया।

सरदार अर्जुन सिंह और शिवाजी समारोह-१२ जून १८९७ को शिवाजी समारोह पर अध्यक्ष पद से बोलते हुए लोकमान्य तिलक ने जो भाषण दिया था वह भी सरदार अर्जुन सिंह के लिए प्रेरणा का स्रोत बना। वह भाषण इस प्रकार था-

‘‘क्या शिवाजी ने अफज़ल खान को मारकर कोई पाप किया था?’’

‘‘इस प्रश्र का उत्तर महाभारत में मिल सकता है। गीता में श्री कृष्ण जी ने अपने गुरुओं तथा बान्धवों तक को (यदि वे दुष्टों का सहयोग करते हैं) मारने का उपदेश दिया है। उनके अनुसार कोई व्यक्ति निष्काम भाव से कर्म करता है तो वह किसी भी तरह पाप का भागी नहीं बनता। श्री शिवाजी ने अपनी उदरपूर्ति के लिए कुछ नहीं किया था। बहुत ही नेक इरादे के साथ, दूसरों की भलाई के लिए उन्होंने अफजल खान का वध किया था। यदि घर में चोर घुस आये और हमारे अन्दर उसको बाहर निकालने की शक्ति न हो तो हमें बेहिचक उस चोर को दरवाजा बन्द करके जि़न्दा जला देना चाहिए। ईश्वर ने भारत के राज्य का पट्टा ताम्रपत्र पर लिखकर विदेशियों को तो नहीं दिया है। शिवाजी महाराज ने उनको अपनी जन्मभूमि से बाहर खदेडऩे का प्रयास किया। ऐसा करके उन्होंने दूसरों की वस्तु हड़पने का पाप नहीं किया। कुएँ के मेंढक की तरह अपनी दृष्टि को संकुचित मत करो, ताज़ीराते हिन्द की कैद से बाहर निकलो, श्रीमद्भगवद् गीता के अत्यन्त उच्च वातावरण में पहुँचो और महान् व्यक्तियों के कार्यों पर विचार करो।

’’ सरदार अर्जुन सिंह सिख परिवार के होते हुए भी संस्कारों से दृढ़ आर्य समाजी बन गए थे। वे जहाँ भी जाते, अपने साथ एक पोटली रखते थे, जिसमें यज्ञकुण्ड और यज्ञ सम्बन्धी सामान रहता था। वे प्रतिदिन यज्ञ करते थे। वे पूरी निष्ठा और गम्भीरता से महर्षि दयानन्द जी द्वारा रचित ‘सत्यार्थ प्रकाश’ का स्वाध्याय किया करते थे।

सरदार अर्जुन सिंह उन थोड़े लोगों में से थे जो जिस काम को हाथ में लेते थे, उसे पूरा करके दिखाते थे। साधारण व्यक्ति का जीवन एक ही लीक पर परवान चढ़ता है। जिस परिवार और परिस्थितियों में व्यक्ति उत्पन्न होता है वह आजीवन उन्हीं से चिपटा रहता है। यदि वह स्वतन्त्र चिन्तन करने का प्रयास करता है तो भी वह सीमित चारदीवारी के बीच में कैद रह कर ही रह जाता है। यदि वह चिन्तन के क्षेत्र में थोड़ा बहुत स्वतन्त्र चिन्तन प्रदर्शित करता भी है तब भी वह उसे व्यवहार में परिणत नहीं कर सकता, परन्तु सरदार अर्जुन सिंह तो स्वतन्त्र पथ के ऐसे पथिक थे जो न तो एक ही लीक पर चलने वाले थे और न ही एक चारदीवारी में कैद रहने वाले। वह ऐसे महामानव थे जिन्होंने अपने स्वतन्त्र चिन्तन को अपने जीवन के व्यवहार में उतारने में ही आनन्द का अनुभव किया था।

‘सत्यार्थ प्रकाश’ (आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के प्रमुख ग्रन्थ) के प्रति उनकी अपार श्रद्धा थी। उस ग्रन्थ से उन्होंने स्वराज्य प्रेम की प्रेरणा ली थी। यही स्वराज्य भावना उनके तीनों पुत्रों श्री किशन सिंह, श्री अजीत सिंह और श्री स्वर्ण सिंह में कूट-कूट कर भरी गयी थी। स्वराज्य के लिए तीनों पुत्रों ने कारावास भोगा, जेल की यातनाएं सहीं। जैसे ही भगतसिंह के पिता श्री किशन सिंह, चाचा अजीत सिंह तथा स्वर्ण सिंह जी के जेल से रिहा होने की खबर पहुँची, उसी दिन भगत सिंह का जन्म (२८ सितम्बर १९०७) हुआ था। उनकी दादी अर्थात् अर्जुन सिंह की पत्नी ने प्रसन्न होकर उन्हें (भागों वाला) भगत सिंह नाम दिया। बचपन से ही उनका पालन-पोषण दादा जी की छत्र-छाया में हुआ। भगत सिंह की दादी भी एक धार्मिक महिला थीं। यही संस्कार एवं परम्पराएँ भगत सिंह में भी आयीं। तीन वर्ष की अवस्था में भगत सिंह ने गायत्री मन्त्र स्मरण कर लिया था। भगत सिंह व उनके बड़े भाई जगत सिंह का यज्ञोपवीत संस्कार पं. लोकनाथ तर्कविद्यावाचस्पति जी ने कराया। इस अवसर पर भगत सिंह के दादा श्री अर्जुन सिंह जी ने अपने दोनों पोतों को बाहों में भरकर संकल्प किया, ‘‘मैं अपने दोनों वंशधरों को इस यज्ञवेदी पर खड़ा होकर देश के लिए दान करता हूँ।’’

सिख मत के अनुयायी होते हुए भी आर्य समाज के प्रबल समर्थक थे-गुरुद्वारा आन्दोलन में भाग लेने से पूर्व भगत सिंह न तो सिर पर केश रखते थे और न ही पगड़ी बाँधते थे। इसका कारण संभवत: उनके दादा सरदार अर्जुन सिंह का सिख होते हुए भी बहुत कुछ आर्य समाजी होना था। वे नियमित रूप से यज्ञ क रते थे और सत्यार्थ प्रकाश का स्वाध्याय भी करते थे। इस सम्बन्ध में श्री यशपाल जी ने ‘सिंहावलोकन’ में एक रोचक प्रसंग का उल्लेख किया है जिसका शब्दश: यहाँ उल्लेख किया जा रहा है। इससे सरदार अर्जुन सिंह जी की आर्यसमाज के प्रति आस्था अच्छी तरह स्पष्ट हो जायेगी।

‘‘सन् १९२५ के जाड़ों की बात है। सरदार किशन सिंह एक इंश्योरेंस कम्पनी की एजेन्टी कर रहा था। एजेंसी का यह दफ्तर हमारे लिए आराम का डेरा बना हुआ था। मैं उन दिनों लाहौर के नेशनल स्कूल में पढ़ रहा था। नेशनल कॉलेज समाप्त होकर नेशनल हाई स्कूल ही रह गया था। भगतसिंह अनिच्छा से थोड़ा बहुत समय करोबार में लगाता। शेष समय पढ़ता और संगठन के लिए भूमि को तैयार करने में लगा रहता। सुखदेव कभी लायलपुर अपने घर पर चला जाता। वहाँ उसके परिवार ने आटे की चक्की लगवा दी थी। लाहौर आता तो भगत सिंह के साथ ही बना रहता। हमारे सहपाठी झंडासिंह और जयदेव गुप्ता भी वहीं थे।

एक दिन स्कूल में छुट्टी थी। दूसरे लोग मकान पर मौजूद नहीं थे। मैं अपनी सनक में मेज़ पर बैठा कोई लेख या कहानी लिख रहा था। मेज़ के नीचे टीन की क्या चीज पड़ी है, वह ख्याल न कर उस पर जूते जमाकर रख दिये थे। संभव है अचेतन रूप से यह धारणा रही हो कि रद्दी की टोकरी के तौर पर कोई डिब्बा है। लिखते समय विचारों को ठेलने के लिए मेज़ के नीचे उस टीन की चीज़ को जूते से एड़ किए जा रहा था।

जीने पर भारी कदमों से धम-धम करते हुए एक सिख सज्जन अपने ग्रामीण वेश में ऊपर दफतर में आ गए। मैंने एक द$फा नजर उठाकर उनकी तरफ देखा और लिखने में तन्मय रहा। सरदार जी के ऐसे अनेक सम्बन्धी गाँवों से आते-जाते रहते थे। इस सज्जन की दाढ़ी खूब प्रशस्त, बर्फ की तरह श्वेत और चेहरा खूब तेजोमय गुलाबी रंग का था। मैंने उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया, आगन्तुक भी मुझसे आदर की प्रतीक्षा न कर एक कुर्सी खींचकर चुपचाप दीवार के पास बैठ गए। मैं मालिक बना बैठा लिखता रहा और मेज़ के नीचे टीन की चीज़ पर जूते की ठोकरें भी जमाता रहा।

अचानक वज़नी गालियों से भरी एक करारी डाँट सुनकर आँख उठाकर देखा कि वयोवृद्ध भव्यमूर्ति की आँखें लाल और चेहरा क्रोध से तमतमा उठा है और वे हाथ में थमी मोटी लाठी को फर्श पर ठोक रहे हैं।

‘‘गधा, उल्लू, नास्तिक, बदमाश, सिर तोड़ दूँगा।’’ उनके हाथ में लाठी मेरे सर पर पडऩा ही चाहती थी। वृद्ध ने अपने आवेश को कठिनता से वश में कर मेज़ के नीचे संकेत करते हुए फटकारा-‘‘उल्लू, यही तेरी तमीज़ है।’’

मेज के नीचे झाँककर देखा तो अपने जूतों के बीच पाया एक औंधा पड़ा हवनकुण्ड। सब कुछ समझ में आ गया। उपेक्षा के कारण पहचानने में भूल हुई थी। भगतसिंह से सुन रखा था कि दादा जी नित्य हवन करते हैं। जहाँ जाते हैं, पोटली में हवन कुण्ड और हवन सामग्री साथ बाँध ले जाते हैं।’’

इस घटना से यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि सरदार अर्जुनसिंह सिख धर्म के अनुयायी होते हुए भी आर्य समाज के प्रबल समर्थक थे।

सन् १९२३ में भगत सिंह नेशनल कॉलेज लाहौर के विद्यार्थी बने थे। जन-जागरण के लिए वे ड्रामा क्लब में भी भाग लेते थे। क्रांतिकारी अध्यापकों और साथियों से नाता जुड़ गया था। भारत को आज़ादी कैसे मिले, इस बारे में लम्बा-चौड़ा अध्ययन और बहसें जारी थीं। घर में दादा श्री अर्जुनसिंह जी ने पोते (भगतसिंह) के विवाह की बात चलाई। उनके सामने अपना तर्क न चलते देख पिताजी के नाम यह पत्र लिखा और घर छोड़ दिया। पिताजी के नाम लिखा गया भगतसिंह का यह पत्र घर छोडऩे संबन्धी उनके विचारों को सामने लाता है-

पूज्य पिताजी, नमस्ते।

मेरी जि़न्दगी मकसदे आला (उच्च उद्देश्य) यानि आज़ादी-ए-हिन्द के असूल (सिद्धान्त) के लिए वक्फ हो चुकी है। इसलिए मेरी जि़न्दगी में आराम और दुनियाबी ख्वाहिशात (सांसारिक इच्छाएँ) वायसे कोशिश (आकर्षण) नहीं है।

आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था तो बापू जी (दादा श्री अर्जुन सिंह जी) ने मेरे यज्ञोपवीत के वक्त ऐलान किया था कि मुझे खिदमते वतन (देश-सेवा) के लिए वक्फ (दान) कर दिया गया है। लिहाज़ा (अत:) मैं उस वक्त की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हू। उम्मीद है मुझे माफ करेंगे।

आपका ताबेदार (सेवक)
भगतसिंह

यह उपर्युक्त पत्र दर्शाता है कि भगतसिंह के दादा श्री अर्जुन सिंह जी ने अपनी संतानों में देश-प्रेम को कितना गहरे तक उतार दिया था।

सरदार अर्जुन सिंह जी के समय में आर्य समाज का जो रूप था, उसमें विद्रोह के तत्त्व अधिक थे। उस समय आर्य समाज का अर्थ था स्वदेशाभिमान। सम्भवत: इसी कारणवश लाला लाजपत राय, सूफी अम्बाप्रसाद और अर्जुनसिंह जी आदि सभी आर्य समाज से प्रभावित थे। अर्जुन सिंह सिख से आर्य समाजी बने, इससे पता चलता है कि वे किस सीमा तक स्वतन्त्र चिन्तक थे। वे आर्य समाज के इतने भक्त बन गये कि जहाँ से जितना भी आर्य समाज का साहित्य उन्हें मिला, वह सारा का सारा पढ़ डाला। उन्होंने आर्य समाज के मंच से भाषण देना भी प्रारम्भ कर दिया था।

सरदार अर्जुन सिंह के व्यक्तित्व में अद्भुत अन्तद्र्वन्द्व का समावेश हो गया था। वे परम्परा से बिल्कुल कटना नहीं चाहते थे, परन्तु आवश्यकता पडऩे पर परम्पराओं की धज्जियाँ उड़ाने में भी पीछे नहीं हटते थे। जो बात उनकी तर्क की तुला पर खरी नहीं उतरती थी, उसको त्यागने एवं नई राह खोजने और फिर उस पर चलने का साहस उनमें था। वह आर्य समाज के उस नियम ‘‘सत्य को ग्रहण करने और असत्य को त्यागने में सर्वदा उद्यत’’ रहते थे। यही बुनियादी तत्त्व उनको क्रान्तिकारी बना रहा था।

अर्जुन सिंह जी केवल विचारों से ही परिवर्तनवादी थे, ऐसी बात नहीं थी। जीवन में मुख्य निर्णय लेने में उन्होंने कभी विलम्ब नहीं किया। एक बार सरकार ने वनक्षेत्र को बसाने का निर्णय लिया कि जो लोग वहाँ बसना चाहेंगे, उन्हें सरकार २५ एकड़ भूमि प्रति-परिवार देगी। इस निमन्त्रण से आकृष्ट होकर वे बंगा गांव में आ बसे, जहाँ भगत सिंह का जन्म हुआ।

सरदार अर्जुन सिंह के दो भाई और थे- सरदार बहादुर सिंह और सरदार दिलबाग सिंह। दोनों ने ब्रिटिश सरकार की खूब चापलूसी की और बहुत अधिक धन कमाया। वे दोनों अर्जुन सिंह को मूर्ख समझते थे और कहा करते थे कि अर्जुन सिंह ने यदि दूरदर्शिता से काम नहीं लिया तो उन्हें एक दिन भीख माँगनी पड़ेगी, परन्तु सरदार अर्जुन सिंह पर ऋषि दयानन्द की छाप पड़ चुकी थी। वे ब्रिटिश सरकार की चापलूसी की बात तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे। उन्होंने आत्म सम्मान, निर्भीकता, स्पष्टवादिता और देशभक्ति के जिस मार्ग को चुना, आजीवन उसी मार्ग के पथिक बने रहे।

सरदार अर्जुन सिंह के यहाँ तीन पुत्र-सरदार किशन सिंह, सरदार अजीत सिंह और सरदार स्वर्ण सिंह उत्पन्न हुए। तीनों पिता की तरह वीर, निर्भीक, देशभक्त और स्पष्टवादी थे। तीनों पुत्र साक्षात् उन्हीं के प्रतिरूप थे। इनके परिवार पर अंग्रेजों का कहर टूटता ही रहता था। श्री अजीत सिंह स्वतन्त्रता के युद्ध को आगे बढ़ाने के लिए विदेश चले गए। वहाँ (ब्राजील) से वे सन् १९४७ ई. में ही लौट सके, परन्तु स्वतन्त्रता की पहली ही प्रात: (१५ अगस्त १९४७ ई.) को ४ बजे उन्होंने देश के विभाजन से दु:खी होकर किसी योगी की भाँति स्वेच्छा से शरीर त्याग दिया। भगत सिंह के दूसरे चाचा सरदार स्वर्ण सिंह भी अंग्रेज सरकार के अन्यायों से मात्र २३ वर्ष की आयु में चल बसे। सरदार किशन सिंह जी का क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस व करतार सिंह सराभा से निरन्तर सम्पर्क रहता था। इन तीनों भाइयों ने सूफी अम्बा प्रसाद, लाला हरदयाल, महाशय घसीटा राम, केदारनाथ सहगल आदि क्रान्तिकारियों के साथ मिलकर भारत माता सोसाइटी की स्थापना की। इनके उग्र भाषणों व कार्यों के कारण अंग्रेजी सरकार ने तीनों भाइयों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया।

सरदार अर्जुन सिंह जी ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के विरुद्ध कुछ न सुन सकते थे- सरदार अर्जुन सिंह जब ऋषि दयानन्द जी के सम्पर्क में आये, तो वे सर्वात्मना आर्य समाज के रंग में रंग गये। ऋषि दयानन्द जी द्वारा रचित ‘सत्यार्थ प्रकाश’ उनके लिए एक प्रकाश स्तम्भ बन गया। उन्होंने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ का पूरा अध्ययन कर लिया था। यदि कोई भी व्यक्ति सत्यार्थ प्रकाश की आलोचना करता था, तो वह उनसे सहन न होती थी। ऐसी ही घटना उनके जीवन में आई। एक बार सरदार अर्जुन सिंह जी अपने गाँव से ६० मील दूर किसी विवाह में सम्मिलित होने के लिए गये। विवाह के अवसर पर सिख पुरोहित ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के उदाहरण दे-देकर उसकी कटु आलोचना कर रहा था। अर्जुन सिंह जी ने देखा कि वह व्यक्ति झूठे उदाहरण सुना-सुना कर लोगों को भडक़ा रहा था। अर्जुन सिंह जी ने उसे टोकते हुए कहा कि आप लोगों को मिथ्या और कल्पित उदाहरण देकर सत्यार्थ प्रकाश के नाम पर सुना रहे हैं, ये बातें सत्यार्थ प्रकाश में नहीं हैं। आप सत्यार्थ प्रकाश को व्यर्थ बदनाम न करें। उसने कहा कि सत्यार्थ प्रकाश लाओ, मैं सारे उद्धरण दिखा दूँगा। उस समय कहीं-कहीं कोई-कोई पुस्तक मिलती थी। पुरोहित ने सोचा कि तेरी बात ऊपर रह जायेगी। यहाँ किसके पास सत्यार्थ प्रकाश मिलेगा? सत्यार्थप्रकाश के प्रति श्रद्धा रखने वाले श्री अर्जुन सिंह रात को ही ६० मील पैदल चलकर घर आये और सत्यार्थ प्रकाश लेकर सवेरे तक पैदल ही वापस विवाह स्थल पर पहुँच गये। जब पुरोहित को सत्यार्थ प्रकाश हाथ में थमाकर उद्धरण दिखाने के लिए कहा तो वह पुरोहित बगलें झाँकने लगा। अन्तत: पुरोहित ने अपनी भूल के लिए क्षमा माँग कर ही पीछा छुड़ाया।

जन्म से ही विद्रोही स्वभाव (वज्रादपि कठोराणि)- डॉ. सुभाष रस्तोगी जी ने अपनी पुस्तक ‘क्रान्तिकारी भगत सिंह’ में भी अर्जुन सिंह जी के विद्रोही स्वभाव की एक दृष्टान्त के द्वारा प्रस्तुति की है-

‘‘यह उनके क्रान्तिकारी व्यक्तित्व का एक ज्वलन्त उदाहरण है कि उन्होंने सरकार से मिली भूमि में तम्बाकू की खेती करने का निर्णय लिया, क्योंकि यह भूमि तम्बाकू की खेती के लिए सर्वोत्तम थी। आसपास के गाँवों में जहाँ सिख नहीं थे, वहाँ के लोग तम्बाकू की खेती से खूब धन अर्जन कर रहे थे। इसलिए उन्होंने भी तम्बाकू की खेती करने का निर्णय ले लिया, परन्तु क्योंकि सिख मत में तम्बाकू सेवन निषेध है, अत: पूरे गाँव में इनका न केवल विरोध हुआ बल्कि उनको बिरादरी से निकालने की बात के साथ-साथ उनका बिरादरी से आना-जाना और पानी बन्द हो गया, परन्तु सरदार जी चट्टान की तरह अपने निर्णय पर अटल रहे। तम्बाकू ऊँचे दामों में बिका और काफी धन घर में आ गया। अब सरदार अर्जुनसिंह जी ने दबंग स्वर में घोषणा की,‘‘गुरु जी ने उस युग की परिस्थितियों के अनुकूल तम्बाकू को शिष्यों में प्रचलन का निषेध करार दिया होगा, परन्तु यदि यह पाप है तो मैं अपना अपराध स्वीकार करता हू। अब वह घृणित वस्तु मैंने अपने घर से निकाल दी है। आप जिस तरह कहें मैं उसी तरह अपने मकान को शुद्ध करने के लिए तैयार हूँ।’’ इस घटना को किसी भी अर्थ में लिया जा सकता है, परन्तु इससे यह तथ्य तो उजागर होता है कि अर्जुन सिंह जी जन्म से ही विद्रोही स्वभाव के थे। भवभूति के शब्दों में उन्हें ‘‘वज्रादपि कठोराणि’’ की संज्ञा दी जा सकती है।’’

मृदूनि कुसुमादपि-३ मार्च १९३१ का दिन वह अन्तिम दिन था जिस दिन भगत सिंह अपने परिवार के सदस्यों से अन्तिम बार मिले। उस दिन भगत सिंह के पिता श्री किशन सिंह, माता श्रीमती विद्यावती, भाई कुलबीर, चाची और दादा श्री अर्जुन सिंह जी आये थे, जिन्होंने इस परिवार में ऋषि दयानन्द जी की प्रेरणा से क्रान्ति का बीज बोया था।

सरदार अर्जुन सिंह भगतसिंह के पास जैसे-तैसे साहस बटोरकर आये और भगतसिंह के सिर पर उसी प्रकार हाथ फेरने लगे जैसे बचपन में स्नहेवश फेरा करते थे। उन्होंने उस समय बोलने का पूरा प्रयास किया, परन्तु कण्ठ अवरुद्ध हो गया और मुख से एक भी शब्द न निकला। वे सोच रहे थे कि सम्भवत: इसके पश्चात् इस प्रिय भगतसिंह का मुख देखने का अवसर नहीं मिलेगा। वे परिवार से दूर जाकर खड़े हो गये। भगतसिंह ने देखा कि दादा जी जितना भी आंसुओं को छिपाने का प्रयास कर रहे थे, उतने ही वेग से वे निकल जाना चाहते थे। भगतसिंह ने स्वयं को संयत करते हुए कहा था-दादाजी! आपने तो मुझे बहुत समय पूर्व मेरे यज्ञोपवीत के समय राष्ट्र को दान कर दिया था, फिर आज उस दान दी हुई सम्पत्ति को अलग करने में यह मोह कैसा? आप जैसा व्यक्ति, जो वज्र की तरह कठोर है, वह आज मुरझाये हुए फूलों की तरह अच्छा नहीं लगता। मुझे लगता है कि अब आप बूढ़े हो गये हैं। क्योंकि आपके आँसु इस बुढ़ापे को दर्शा रहे हैं, परन्तु मुझे विश्वास है कि आप ऋषि दयानन्द के शिष्य हो। ऋषि दयानन्द जी ने मृत्यु से कुछ क्षण पूर्व कहा था, ‘‘हे ईश्वर! तेरी इच्छा पूर्ण हो, तूने अच्छी लीला की।’’ उनके शिष्य कभी घबराया नहीं करते। इस प्रकार परिवार का यह अन्तिम मिलन था उसके पश्चात् २३ मार्च १९३१ को इस शहीदे आजम भगतसिंह को फाँसी दे दी गई और अंग्रेज़ सरकार ने अपने नाम एक काला अध्याय और जोड़ दिया।

भगतसिंह अपनी प्रत्येक बात अपने दादा श्री अर्जुनसिंह से किया करते थे। १४ नवम्बर १९२१ को केवल १४ वर्ष की आयु का भगतसिंह अपने दादा श्री अर्जुनसिंह को एक पत्र लिखता है-परिवार का हाल-चाल जानने के पश्चात् वह अपनी सक्रियता को दादा जी के साथ किस प्रकार बाँटता है, उसका उदाहरण पत्र की ये पंक्तियाँ हैं-

मेरे पूज्य दादा साहब जी, नमस्ते।

‘‘आजकल रेलवे वाले हड़ताल की तैयारी कर रहे हैं। उम्मीद है कि अगले सप्ताह के बाद जल्दी शुरु हो जाएगी।’’

आपका ताबेदार (सेवक)
भगतसिंह

दादाजी को लिखे इस पत्र से पता चलता है कि उस समय चल रहे चर्चित असहयोग आन्दोलन का प्रभाव किस तरह जनता में जोर मार रहा था, जिसका प्रभाव भगतसिंह पर भी हुआ। वे उससे अनजान न रह सके। साथ ही दादा जी को भी यह बताए बिना न रह सके कि जल्दी आरम्भ होने वाली रेल-हड़ताल की भी उन्हें सूचना है। वे अपनी पूरी गतिविधि के बारे में अपने दादा श्री अर्जुन सिंह जी को अवगत कराते रहते थे। इससे सिद्ध होता है कि भगतसिंह के विचारों में क्रान्तिकारी परिवर्तन का कितना श्रेय सरदार अर्जुन सिंह जी को है। ये श्री अर्जुन सिंह जी ही हैं, जिन्होंने भगतसिंह को शहीदे आज़म भगत सिंह बना दिया था।

भगतसिंह के अनमोल वचन :


(1) “अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है जिसमे अंतत: प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है । लेकिन तब क्या हो जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं ? तभी हमें आत्म -बल को शारीरिक बल से जोड़ने की ज़रुरत पड़ती है ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमोकरम पर ना निर्भर करें ।” ~ भगत सिंह


“Non-violence is backed by the theory of soul-force in which suffering is courted in the hope of ultimately winning over the opponent. But what happens when such an attempt fail to achieve the object? It is here that soul-force has to be combined with physical force so as not to remain at the mercy of tyrannical and ruthless enemy.”


(2)“जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।“ ~ भगत सिंह


”Life is lived on its own…other’s shoulders are used only at the time of funeral.”


(3)“प्रेमी, पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं।“ ~ भगत सिंह


“Lovers, Lunatics and poets are made of same stuff.”


(4)“सूर्य विश्व में हर किसी देश पर उज्ज्वल हो कर गुजरता है परन्तु उस समय ऐसा कोई देश नहीं होगा जो भारत देश के सामान इतना स्वतंत्र, इतना खुशहाल, इतना प्यारा हो।” ~ भगत सिंह


“May the Sun in his course visit no land more free, more happy, more lovely, than this our own Country.”


(5)“सूर्य विश्व में हर किसी देश पर उज्ज्वल हो कर गुजरता है परन्तु उस समय ऐसा कोई देश नहीं होगा जो भारत देश के सामान इतना स्वतंत्र, इतना खुशहाल, इतना प्यारा हो।” ~ भगत सिंह


“May the Sun in his course visit no land more free, more happy, more lovely, than this our own Country.”


(6)“यह एक काल्पनिक आदर्श है कि आप किसी भी कीमत पर अपने बल का प्रयोग नहीं करते, नया आन्दोलन जो हमारे देश में आरम्भ हुआ है और जिसकी शुरुवात की हम चेतावनी दे चुके हैं वह गुरुगोविंद सिंह और शिवाजी महाराज, कमल पाशा और राजा खान, वाशिंगटन और गैरीबाल्डी, लाफयेत्टे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है।”~ भगत सिंह


“The elimination of force at all costs is Utopian and the new movement which has arisen in the country and of whose dawn we have given a warning is inspired by the ideals which Guru Gobind Singh and Shivaji, Kamal Pasha and Reza Khan, Washington and Garibaldi, Lafayette and Lenin preached.”


(7) “मनुष्य/इन्सान तभी कुछ करता है जब उसे अपने कार्य का उचित होना सुनिश्चित होता है, जैसा की हम विधान सभा में बम गिराते समय थे। जो मनुष्य इस शब्द का उपयोग या दुरुपयोग करते हैं उनके लाभ के हिसाब के अनुसार इसे अलग-अलग अर्थ और व्याख्या दिए जाते हैं।”~ भगत सिंह


“Man acts only when he is sure of the justness of his action, as we threw the bomb in the Legislative Assembly.”


(8)“राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।“ ~ भगत सिंह


“Every tiny molecule of Ash is in motion with my heat I am such a Lunatic that I am free even in Jail.”


(9)“यदि बहरों को सुनना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा। जब हमने बम गिराया तो हमारा धेय्य किसी को मारना नहीं थ। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था । अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए और उसे आज़ाद करना चहिये।” ~ भगत सिंह


“If the deaf are to hear, the sound has to be very loud. When we dropped the bomb, it was not our intention to kill anybody. We have bombed the British Government. The British must quit India and make her free.”


(10)“किसी को ‘क्रांति’ शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते हैं।”~ भगत सिंह


“One should not interpret the word “Revolution” in its literal sense. Various meanings and significances are attributed to this word, according to the interests of those who use or misuse it.”


(11)“कोई भी व्यक्ति जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए तैयार खड़ा हो उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमे अविश्वास करना होगा और चुनौती भी देना होगा।” ~ भगत सिंह


“Any man who stands for progress has to criticize, disbelieve and challenge every item of the old faith.”


(12)“किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।”~ भगत सिंह


“It is easy to kill individuals but you cannot kill the ideas. Great Empires crumbled, while the ideas survived.”


(13)“जरूरी नहीं था कि क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था।“ ~ भगत सिंह


”Revolution did not necessarily involve sanguinary strife. It was not a cult of bomb and pistol.”


(14)“आम तौर पर लोग जैसी चीजें हैं उसके आदी हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की जरूरत है।”~ भगत सिंह


”The people generally get accustomed to the established order of things and begin to tremble at the very idea of a change. It is this lethargical spirit that needs be replaced by the revolutionary spirit.”


(15)“जो व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी।“ ~ भगत सिंह


”Any man who stands for progress has to criticize, disbelieve and challenge every item of the old faith.”


(16)“मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि मैं महत्त्वाकांक्षा , आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ। पर मैं ज़रुरत पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूँ, और वही सच्चा बलिदान है।”~ भगत सिंह


“I emphasize that I am full of ambition and hope and of full charm of life. But I can renounce all at the time of need, and that is the real sacrifice.”


(17)“अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है जिसमे अंतत: प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है । लेकिन तब क्या हो जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं ? तभी हमें आत्म -बल को शारीरिक बल से जोड़ने की ज़रुरत पड़ती है ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमोकरम पर ना निर्भर करें ।” ~ भगत सिंह


“Non-violence is backed by the theory of soul-force in which suffering is courted in the hope of ultimately winning over the opponent. But what happens when such an attempt fail to achieve the object? It is here that soul-force has to be combined with physical force so as not to remain at the mercy of tyrannical and ruthless enemy.”


(19)“किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग ना करना काल्पनिक आदर्श है और  नया आन्दोलन जो देश में शुरू हुआ है और जिसके आरम्भ की हम चेतावनी दे चुके हैं वो गुरु गोबिंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान , वाशिंगटन और गैरीबाल्डी , लाफायेतटे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है।” ~ भगत सिंह


“The elimination of force at all costs is Utopian and the new movement which has arisen in the country and of whose dawn we have given a warning is inspired by the ideals which Guru Gobind Singh and Shivaji, Kamal Pasha and Reza Khan, Washington and Garibaldi, Lafayette and Lenin preached.”


(20)“इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है , जैसाकि हम विधान सभा में बम फेंकने को लेकर थे।” ~ भगत सिंह


“Man acts only when he is sure of the justness of his action, as we threw the bomb in the Legislative Assembly.”


(21)“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।” ~ भगत सिंह


…by crushing individuals, they cannot kill ideas.”


(22)“क़ानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक की वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे।” ~ भगत सिंह


“The sanctity of law can be maintained only so long as it is the expression of the will of the people.”


(23)“क्रांति मानव जाती का एक अपरिहार्य अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का एक कभी न ख़त्म होने वाला जन्म-सिद्ध अधिकार है। श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है।” 

~ भगत सिंह


“Revolution is an inalienable right of mankind. Freedom is an imperishable birth right of all. Labour is the real sustainer of society.”


(24)“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।” ~ भगत सिंह


“Merciless criticism and independent thinking are the two necessary traits of revolutionary thinking.”


(25)“मैं एक मानव हूँ और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है।“ ~ भगत सिंह


”I am a man and all that affects mankind concerns me.” Bhagat Singh


(26)“किसी ने सच ही कहा है, सुधार बूढ़े आदमी नहीं कर सकते । ते तो बहुत ही बुद्धिमान और समझदार होते हैं । सुधार तो होते हैं युवकों के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से, जिनको भयभीत होना आता ही नहीं और जो विचार कम और अनुभव अधिक करते हैं ।”~ भगत सिंह


"Someone has said the truth, the old man can not improve. They are very intelligent and intelligent. Improvement is done by the hard work, courage, sacrifice and loyalty of the youth, who do not have to be fearful and those thoughts less and experience more. "Bhagat Singh


(27)“हम नौजवानों को बम और पिस्तौल उठाने की सलाह नहीं दे सकते । विद्यार्थियों के लिए और भी महत्त्वपूर्ण काम हैं । राष्ट्रीय इतिहास के नाजुक समय में नौजवानों पर बहुत बड़े दायित्व का भार है और सबसे ज्यादा विद्यार्थी ही तो आजादी की लड़ाई में अगली पांतों में लड़ते हुए शहीद हुए है । क्या भारतीय नौजवान इस परीक्षा के समय में वही संजीदा इरादा दिखाने में झिझक दिखाएंगे ।”~ भगत सिंह


"We can not advise youth to raise bombs and pistols. There is more important work for the students. In the delicate time of national history, there is a heavy burden on young people and most students are martyred while fighting in the next phase of freedom. Will the Indian youth have the same hesitation in showing the same intentions during this test? "Bhagat Singh


(28)“हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी, जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा है । चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति हों या अंग्रेजी शासक या सर्वथा भारतीय ही हों, उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी रखी हुई है । चाहे शुद्ध भारतीय पूंजी-पतियों के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा हो, तो भी इस स्थिति में कोई अंतर नहीं पड़ता ।”~ भगत सिंह


"We want to say that war is raging and this fight will continue till the powerful people have kept their monopoly on the means of income of the Indian people and workers. Whether such an Englishman is a bourgeoisie or an English ruler or an entire Indian, he is continuing a loot together. Even if the blood of the poor is sucked out by the pure Indian capitalists, there is no difference in this situation. "Bhagat Singh


(29)“जहां तक हमारे भाग्य का संबंध है, हम बड़े बलपूर्वक आपसे यह कहना चाहते हैं कि अपने हमें फांसी पर लटकाने का निर्णय कर लिया है, आप ऐसा करेंगे ही, आपके हाथों में शक्ति है और आपको अधिकार भी प्राप्त हैं, परंतु इस प्रकार आप ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला’ सिद्धांत ही अपना रहे हैं और आप उस पर कटिबद्ध है । हमारे अभियोग की सुनवाई इस वक्तव्य को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि हमने कभी कोई प्रार्थना नहीं की और अब भी हम आपसे किसी प्रकार की दया की प्रार्थना नहीं करते । हम केवल आपसे यह प्रार्थना करना चाहते हैं कि आपकी सरकार के ही एक न्यायालय के निर्णय के अनुसार हमारे विरुद्ध युद्ध जारी रखने का अभियोग है, इस स्थिति में हम युद्ध-बंदी हैं, अत: इस आधार पर हम आपसे मांग करते हैं कि हमारे साथ युद्ध-बंदियों जैसा ही बर्ताव किया जाए और हमें फांसी देने के बदले गोली से उड़ा दिया जाए ।”~ भगत सिंह


"As far as our destiny is concerned, we want to force you to say that we have decided to hang ourselves, you will do it, there is power in your hands and you also have the rights, but in this way you Whose sticks are adopting its buffalo theory and you are committed to it. Our trial of hearing is sufficient to prove that we have never prayed and even now we do not pray for any kind of mercy from you. We only want to pray to you that in the case of a court of your government, there is a pledge to continue the war against us, in this situation we are prisoners of war, therefore, on this basis we ask that you with us Be treated like prisoners of war and let them be shot in the flanks instead of hanging them. "Bhagat Singh


(30)“यह बात प्रसिद्ध है कि मैं एक आतंककारी (टेररिस्ट) रहा हूं परंतु मैं आतंककारी नहीं हूं । मैं एक क्रांतिकारी हूं जिसके कुछ निश्चित विचार और निश्चित आदर्श हैं और जिसके सामने एक लंबा प्रोग्राम है । मुझे यह दोष दिया जाएगा, जैसा कि लोग रामप्रसाद बिस्मिल को भी देते थे कि फांसी की काल कोठारी में पड़े रहने से मेरे विचारों में भी कोई परिवर्तन उग गया है, परंतु ऐसी बात नहीं । मेरे विचार अब भी वही हैं, मेरे हृदय में अब भी उतना ही और वैसा ही उत्साह और वही लक्ष्य है जो जेल से बाहर था, पर मेरा यह दृढ़-विश्वास है कि हम बम से कोई लाभ प्राप्त नहीं कर सकते । यह बात हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के इतिहास से भी आसानी से मालूम पड़ती है । बम फेंकना न सिर्फ व्यर्थ है, अपितु बहुत बार हानिकारक भी है । उसकी आवश्यकता किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही पड़ती है, हमारा मुख्य लक्ष्य मजदूर और किसानों का संगठन होना चाहिए ।”~ भगत सिंह


"It is well known that I am a terrorist (Terrorist) but I am not a terrorist. I am a revolutionary with certain ideas and definite ideals and there is a long program in front of it. I would be blamed, as people also used to give Ram Prasad Bismil that the death of hanging in Kothari has also caused any change in my thoughts, but this is not the case. My thoughts are still the same, my heart still has the same enthusiasm and the same goal that was out of the prison, but I firmly believe that we can not get any benefit from the bomb. This thing is easily understood from the history of the Hindustan Socialist Republican Army. Throwing a bomb is not only useless, but also very harmful. It is necessary only under certain circumstances, our main goal should be the organization of workers and farmers. "Bhagat Singh


(31)“यदि आप सोलह उगने के लिए लड़ रहे हैं और एक आना मिल जाता है, तो वह एक आना जेब में डालकर बाकी पंद्रह उगने के लिए फिर जंग छेड़ दीजिए । हिन्दुस्तान के माडरेटों की जिस बात से हमें नफरत है, वह यही है कि उनका आदर्श कुछ नहीं है । वे एक आने के लिए ही लड़ते हैं और उन्हें मिलता कुछ भी नहीं ।”~ भगत सिंह


"If you are fighting for the rising of sixteen and one gets to come, then put one in the pocket and then stir up the battle for the remaining fifteen to grow. What we hate the madrats in India is that their ideal is nothing. They fight only for one and they do not get anything. "Bhagat Singh


(32)“समझौता कोई ऐसी हेय और निंदा योग्य वस्तु नहीं, जैसा कि साधारणत: हम लोग समझते है, बल्कि समझौता राजनीतिक संग्रामों का एक अत्यावश्यक अंग है । कोई भी कौम जो किसी अत्याचारी शासन के विरुद्ध खड़ी होती है, यह जरूरी है कि वह आरंभ में असफल हो और अपनी लंबी जद्‌दोजहद के मध्यकाल में इस प्रकार के समझौते के जरिए कुछ राजनीतिक सुधार हासिल करती जाए, परंतु पहुंचते-पहुंचते अपनी ताकतों को इतना संगठित और दृढ़ कर लेती है और उसका दुश्मन पर आखिरी हमला इतना जोरदार होता है कि शासक लोगों की ताकतें उस वक्त तक यह चाहती हैं कि उसे दुश्मन के साथ कोई समझौता कर लेना चाहिए ।”~ भगत सिंह


"The agreement is not a kind and condemnable thing, as we generally understand, but the compromise is an integral part of political engagement. Any community that stands against any tyrannical rule, it is necessary that he initially fail and in the medieval period of his long struggle to achieve some political reform through this kind of agreement, but reaching his reach, Organized and strengthened, and the last attack on his enemy is so strong that the power of the ruling people, by that time, wants him to have an agreement with the enemy Should get it. "~ Bhagat Singh


(33)“हमारे दल को नेताओं की आवश्यकता नहीं है । अगर आप दुनियादार हैं, बाल-बच्चों और गृहस्थी में फंसे है, तो हमारे मार्ग पर मत आइए । ‘आप हमारे उद्‌देश्य में सहानुभूति रखते हैं तो और तरीकों से हमें सहायता दीजिए । नियंत्रण में रह सकने वाले कार्यकर्ता ही इस आदोलन को आगे ले जा सकते हैं ।”~ भगत सिंह


"Our party does not need leaders. If you are worldly, are stuck in childhood and household, then do not go on our way. If you have sympathy for our purpose, then give us help in other ways. Only the workers who can remain in control can take this movement forward. "~ Bhagat Singh


(34)“समझौता भी ऐसा हथियार है, जिसे राजनीतिक जद्‌दोजहद के बीच में पग-पग पर इस्तेमाल करना आवश्यक हो जाता है जिससे एक कठिन लड़ाई से थकी हुई कौम को थोड़ी देर के लिए आराम मिल सके और वह आगे के युद्ध के लिए अधिक ताकत के साथ तैयार हो सके, परंतु इन सारे समझौतों के बावजूद जिस चीज को हमें भूलना न चाहिए वह हमारा आदर्श है जो हमेशा हमारे सामने रहना चाहिए । जिस लक्ष्य के लिए हम लड़ रहे हैं उनके संबंध में हमारे विचार बिल्कुल स्पष्ट और दृढ़ होने चाहिए ।”~ भगत सिंह


"The compromise is also such a weapon that it is necessary to use it in the middle of the political battle, due to which a tired party can be rested for a while with a tough fight and with greater power for further war Can be ready, but in spite of all these agreements, what we should not forget is our ideal which should always be in front of us. Our thoughts should be very clear and firm in relation to the goal we are fighting for. "Bhagat Singh


(35)“भारत की वर्तमान लड़ाई ज्यादातर मध्य श्रेणी के लोगों के बलबूते पर लड़ी जा रही है, जिसका लक्ष्य बहुत सीमित है । कांग्रेस दुकानदारों और पूंजीपतियों के जरिए इंग्लैंड पर आर्थिक दबाव डालकर कुछ अधिकार ले लेना चाहती है, परंतु जहां तक देश के करोड़ों मजदूरों और किसान जनता का ताल्लुक है, उनका उद्धार इतने से नहीं हो सकता । यदि देश की लड़ाई लड़नी हो, तो मजदूरों, किसानों और सामान्य जनता को आगे लाना होगा, इन्हें लड़ाई के लिए संगठित करना होगा । नेता उन्हें अभी तक आगे लाने के लिए कुछ नहीं करते, न कर ही सकते है । इन किसानों को विदेशी हुकूमत के जुए के साथ-साथ भूमिपतियों और पूंजीपतियों के जुए से भी उद्धार पाना है ।”~ भगत सिंह


"The current battle of India is being fought mostly on middle-class people whose goal is very limited. Congress wants to take some rights by putting financial pressure on England through shopkeepers and capitalists, but as far as the country's crores of workers and peasants are concerned, their salvation can not be so much. If the country has to fight, then workers, farmers and the general public will have to bring forward, they have to be organized to fight. The leaders do not do anything to bring them far ahead, they can not. These farmers have to get rid of the gambling of foreign rule as well as the gambling of the landlords and the capitalists. "~ Bhagat Singh


जय हिंद

वंदेमातरम

जय #आर्यवर्त🚩🚩



Comments

Popular posts from this blog

मुगलो का हिन्दू महिलाओं पर अमानुषी अत्याचार!!!

शुकर दन्त वशीकरण सिद्धि प्रयोग

अय्यासी मुहम्मद का सच....