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तुलशी एक अमोध वरदान

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तुलसी जी की महिमा... पद्मपुराण के अनुसार नरा नार्यश्वच तां दृष्ट्वा तुलनां दातुमक्षमा:। तेन नाम्ना च तुलसीं तां वदन्ति पुराविद:॥ ‘स्त्री-पुरुष जिस पौधे को देखकर उसकी तुलना करने में समर्थ नहीं हैं, उसका नाम तुलसी है, ऐसा पुरातत्त्ववेता लोग कहते हैं।’ पुष्पों में अथवा देवियों में किसी से भी इनकी तुलना नहीं हो सकी इसलिए उन सबमें पवित्ररूपा इनको तुलसी कहा गया, इनका महत्व वेदों में वर्णित है। तुलसीजी, लक्ष्मीजी (श्रीदेवी) के समान भगवान नारायण की प्रिया और नित्य सहचरी हैं; इसलिए परम पवित्र और सम्पूर्ण जगत के लिए पूजनीया हैं। अत: वे विष्णुप्रिया, विष्णुवल्लभा, विष्णुकान्ता तथा केशवप्रिया आदि नामों से जानी जाती हैं। भगवान श्रीहरि की भक्ति और मुक्ति प्रदान करना इनका स्वभाव है। तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिये। केशवार्थं चिनोमि त्वां वरदा भव शोभने॥ त्वदंगसम्भवैर्नित्यं पूजयामि यथा हरिम्। तथा कुरु पवित्रांगि कलौ मलविनाशिनी॥ (पद्मपुराण सृ. ६३।११-१३) अर्थ:- ’तुलसी ! तुम अमृत से उत्पन्न हो और केशव को सदा ही प्रिय हो। कल्याणी ! मैं भगवान की पूजा के लिए तुम्हारे पत्तों को चुनती हूं,...