जैन धर्म मर शासन देव - देवियो का महत्व
जिनागम में शासन देव-देवियों का महत्व -जीवन प्रकाश जैन अर्हन्तो मंगलं कुर्यु:, सिद्धा: कुर्युश्च मंगलम्। आचार्या: पाठकाश्चापि, साधवो मम मंगलम्।। जिन शासन यक्षी की प्रतिमा शास्त्रों के स्वाध्याय से ज्ञान मिलता है। ज्ञान से सन्मार्ग मिलता है। सच्चे देव, शास्त्र, गुरु पर दृढ़ श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। सम्यग्दर्शन के आठ अंग हैं-नि:शंकित, नि:कांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढ़दृष्टि, उपगूहन, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना। जिनेन्द्रदेव द्वारा कथित तत्त्व यही है, ऐसा ही है, अन्य कुछ नहीं है और अन्य रूप भी नहीं है। तलवार की धार पर रखे हुए जल के सदृश ऐसा अचलित श्रद्धान करना और मोक्षमार्ग में संशय सहित रुचि का होना नि:शंकित अंग है। बीसवीं सदी में प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज, प्रथम पट्टाचार्य चारित्रचूड़ामणि आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज एवं उनकी परम्परा के समस्त आचार्य, साधुगण आगम के अनुसार चर्या करने वाले थे और आज भी हैं। वर्तमान में जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी, वर्तमान के सभी साधुओं में सबसे प्राचीन दीक्षित आर्यिका, युगप्रवर्तिका, गणिनीप्रमुख श्री ज्ञान...