परशुरामकृतं दुर्गास्तात्रम्

परशुरामकृतं दुर्गास्तात्रम् ब्रह्मवैवर्त पुराण में गणपति खण्ड से उद्धृत इस स्तोत्र का स्तवन परशुराम ने श्रीहरि के निर्देश पर माता दुर्गा (शिवा) को प्रसन्न करने के लिए किया था। परशुराम अपने गुरु शिव का आशीर्वाद लेने के लिए अन्त:पुर जाना चाहते थे। गणेश द्वारा रोके जाने पर दोनों में युद्ध हुआ जिसमें परशुराम ने शिव प्रदत्त फरसा चला दिया जिससे गणेश जी का एक दाँत टूट गया था (एक दंत पडा)। इससे कुपित होकर पार्वती परशुराम को मारने के लिए उद्यत हो गई। उसी समय भगवान् विष्णु बौने ब्राह्मण-बालक के रूप में उपस्थित हुए। उन्होंने पार्वती को समझाया तथा परशुराम को उनकी स्तुति करने का निर्देश दिया। परशुराम उवाच श्रीकृष्णस्य च गोलोके परिपूर्णतमस्य च:आविर्भूता विग्रहत: पुरा सृष्ट्युन्मुखस्य च॥ सूर्यकोटिप्रभायुक्ता वस्त्रालंकारभूषिता। वह्निशुद्धांशुकाधाना सुस्मिता सुमनोहरा॥ नवयौवनसम्पन्ना सिन्दूरविन्दुशोभिता। ललितं कबरीभारं मालतीमाल्यमण्डितम्॥ अहोऽनिर्वचनीया त्वं चारुमूर्ति च बिभ्रती। मोक्षप्रदा मुमुक्षूणां महाविष्णोर्विधि: स्वयम्॥ मुमोह क्षणमात्रेण दृ त्वां सर्वमोहिनीम्। बालै: सम्भूय सहसा सस्मित...