जैसे संस्कार वैसा जीवन

जैसे संस्कार वैसा जीवन कौन व्यक्ति कैसा है यह इसकी सही पहचान उसके रंग-रूप-जाति से नहीं, वरन उसके जीवनगत संस्कार से होती है। व्यक्ति के संस्कार ऊँचे हो तो छोटा होकर भी उच्च आदर्श को स्थापित कर जायेगा । यदि व्यक्ति पर संस्कार निम्न है तो उसके ऊँचे कुल में पैदा होकर भी कुलिनता पर व्यंग ही होगा। नजरिया बदलना होगा—सही नजरिये के लोग चमड़ी के रंग या फैसन पर ध्यान नहीं देते वे सदा गुण और संस्कारों को ही महत्व देते है।जीवन संस्कारों से संतुलित होता है। सुखी और व्यवस्थित होता है। व्यक्ति की पहचान :- कौन कैसा भी यदि यह पहचान करनी है तो उसके संस्कारों को जानो।संस्कार व्यक्ति का सही मूल्यांकन करवाता है। संस्कार जीवन की नीव है जीने की संस्कृति है यही व्यक्ति की मर्यादा ओर उसकी गरिमा है। संस्कारों ने व्यक्ति को सदा सुखी ही किया और जो संस्कारों को महत्व नहीं देता है । उसे अन्नत: पछताना ही पड़ा है। संस्कारों का सम्बन्ध :- संस्कारों का व्यक्ति के साथ ऐसा सम्बन्ध है जैसा जल का जमीन के साथ। व्यक्ति के कुछ संस्कार तो उसके अपने होते है। हम जीवन को उसकी गहराई तक जाकर देखते है तो बोध होता है कि ...