बाबा बालकनाथ जी का सिद्ध स्त्रोत
बाबा बालकनाथ जी का सिद्ध स्त्रोत
बाबा बालकनाथ जी का सिद्ध स्त्रोत
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी ।
ऊंचा है पर्वत गिरनार का,
था हुआ जन्म जहाँ सरकार का ।
पिता वैष्णव और माँ लक्ष्मी,
आ गोदी में खेले जिन के हरि ॥ १ ॥
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी ।
लगी बचपन में सच्ची लगन,
लिया नाम हरि का और हुए मगन|
माया पांच तत्वों की झूठी लगी ,
प्रीति प्रभु से जा सच्ची करी ॥ २ ॥
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी ।
कीनी तपस्या जा कैलास पे ,
चमके ज्यूँ , चंदा आकाश पे ।
प्रेम में लीन हो भक्ति करी ,
शंकर भोले की तार हिली ॥ ३ ॥
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी ।
दिआ शिवशंकर जी ने वर आपको
दिआ योग, किआ अमर जात को ।
जाना न भूल यह हमारी कही ,
जा कलयुग में होगी महिमा बड़ी ॥ ४ ॥
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी ।
काटे थे संकट आ माता के,
हँसते थे माता के हर बात पे ।
बन कर रत्नो के पाली हरी,
पूरे साल बारां, की नौकरी ॥ ५ ॥
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी ।
चर्चा जो फैला तेरे नूर का ,
गया हिल दिल फिर हर हूर का ।
कानो में जब तेरी शोभा पड़ी
संगी बना तेरा आ भतृहरि ॥ ६ ||
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी ।
खेतों में खेले अजब खेल जो ,
लोगों ने कहा बुरा मात को ।
सुनकर न रत्ती भर देर करी,
खेतों में खेती आ कीनी हरी ॥ ७ ॥
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी ।
दिखा दी माता को भी रोटियां ,
और लस्सी की भरी वहीँ लोटियां ।
देखि जो रत्नों ने शक्ति खरी,
देख के वो भी दंग रह गयी ॥ ८ ||
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी ।
सुना जब गोरख तेरे नाम को ,
वह आया परखने तेरे काम को।
दुःख की आके जो मांग करी ,
ओंसर के दूध से चिप्पी भरी ॥ ९ ॥
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी ।
चाहा फिर गोरख किचेला करूँ,
डारूँ कान मुंदर और आगे चलूँ ।
रही सब गोरख की सेना खड़ी
उड़े नाथ तब बन पौणाहारी ॥ १० ॥
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी ।
बिराजे गुफा में हैं, जग जानता,
ब्रम्हा और विष्णु भी हैं जानता।
जग-मग, जग-मग जोती जरी,
ऋषियों ने मिलकर उसतत करी ।।११।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
सिद्ध हो, योगी हो, नाथ हो,
भक्तों के प्यारे सदा साथ हो।
दीन-दयालु, हे नाथ ही,
मैंने भी तुझ पे आस है आस धरी।।१२।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
सुनता हूँ तेरे कई नाम हैं,
तुम्ही ने बनाये सुबह शाम है। हैं फूलों में
तुमने ही रंगत भरी,
हैं तेरे हुकुम से ही खिलती कली।।१३।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
सुन्दर सुहाना तेरा रूप है,
तू अजर-अमर है।
है तुम्ही ने साड़ी जो सृष्टि रची,
माया है तेरी यह भेद भरी।।१४।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
चाँद से मुखड़े पे क्या नूर है,
आंख भी मस्ती से मखमूर है।
सुन्दर स्य्न्हारी जाता बांवरी,
सोहती है सर पे सदा सांवरी।।१५।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
बगल बरागन और माला गले,
झोली व चिमटा भूषण आपके।
कोमल बदन पे विभूती रमी,
आकाश ऊपर और विस्त्र जमीं।।१६।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
बोढ़ तले धुना प्रगट किया,
शेर भी आके वहाँ झुक गया।
नागों ने शीश पे छाया करी,
वाह उमर वाली और जादूगरी।।१७।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
सूरज को तुमने उजाला दिया,
धरती और आकाश रोशन किया।
कहती चकोरी को यूं कामनी,
है चन्दा में तूने भरी चांदनी।।१८।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
अजब तेरी माया अजब तेते खेल,
मट्टी का दिया है मट्टी में तेल।
कण-कण में जोती है जगमग करी,
कैसे कहूँ, क्या है कुदरत तेरी।।१९।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
तेरा भेद किसी ने पाया नहीं ,
तू हाथ किसी के भी आया नहीं,
परदे में रहकर की परवरी,
लाखों की तुमने है, झोली भरी।।२०।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
दीन-दयालु, हे दीनानाथ,
आया हूँ मैं भी अब तेरे द्वार।
है तुम्ही को मेरी भी लाज हरी,
करो पार आके यह नैया मेरी।।२१।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
गिरते को थाम लो, ऐ मेरे नाथ,
बड़ी है मेरी, भंवर में घिरी,
चाहूँ मैं तेरी हरी रहबरी।।२२।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
माना कि मैं इक गुनाहगार हूँ,
पर माफ़ी का हरदम हक़दार हूँ।
बक्शो मुझे अब ऐ नाथ जी,
सुन लो पुकारें यह दर्दभरी।।२३।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
मैं दीन हूँ, दुखिया हूँ, अनजान हूँ,
मैं भुला हूँ भटका हूँ, नादान हूँ।
मिटा दो तुम्ही नाथ हस्ती मेरी,
मुझसे तो मेरी खुदी न मरी।।२४।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
चोरों ने ऐसा है पीछा किया,
चैन से अब तक न जीने दिया।
कोई बात मेरी छुपी न रही,
मैंने ही इन से जा की मुखबरी।।२५।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
ढूंढा तुझे कहीं न मिला,
यह दुई का परदा तो अब दे उठा।
यह एक आखरी ख्वाहीश मेरी,
नजर भर के देखूँ मैं नूर तेरी।।२६।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
बता दो तुम्ही अब कहाँ जाऊँ मैं,
छुटा जो मुझसे कहाँ पाऊँ मैं।
मैं बंदा हूँ तेरा, करूं बंदगी,
कटती नहीं यूं कटे जिंदगी।।२७।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
मैं जिऊँ तो जिऊँ तेरे नाम पे,
मैं पीऊँ तो पीऊँ तेरे नाम से।
उतरे न तेरी यह मस्ती कभी,
पिला दो मुझे बस हरि नाम की।।२८।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
फिर जीने या मरने की क्या बात है,
मिट जाए हस्ती अमर जात है।
करता रहूँ मैं इबाबत तेरी,
बन जाय बस यहीं आदत मेरी।।२९।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
न मरकर जिऊँ, न जीकर मरूं,
न कर्मों के चक्कर में जा कर पडूं।
यही एक बिनती हैं मेरी हरि
जो में जोत मिले लाल की।।३०।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
मैं तेरे स्त्रोत का पाठ करूँ
चरण कमल चित नाथ धरूँ
देना मुझे भी हरी सुमती,
सोचूं न किसी की बदी कभी।।३१।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
जो इस स्त्रोत का पाठ करे,
वह सूरज की नाई आगे बढ़े
बसे घर में उसके आ लक्ष्मी
दुःख-दरिद्र हो दूर सभी।।३२।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
सुने सुनाए, जो इस पाठ को
सहाई भी सदा उसका साथ हो।
महिमा है भारी मेरे नाथ की
है दुनिया भी सारी तभी मानती।।३३।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
कृपा किनी जब गोपाल ने
लिखा स्त्रोत यह तब लाल ने
त्रुटी के लिए है क्षमा माँगती,
मीरा यह दासी हरि आपकी।।३४।।
जय सिद्ध योगी जय नाथ हरि,
मेरी बार क्यों इतनी देर करी।
नौ नाथ चौरासी सिद्धां दे वाली तेरे नाम की दुहाई है
गुफा के वासी तेरे नाम की दुहाई है।
गऊओं के पाली तेरे नाम की दुहाई है।
कोटि-कोटि प्रणाम।
जोगी तेरे चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम
सुख देना शान्ति देना, भंडारे भरपूर करना
ॐ शांति, ॐ शांति, ॐ शांति ॐ ।।
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