श्रम की उपयोगिता!!

#श्रम_की_उपयोगिता
❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣
एक प्रेरक कथा.....

कृष्णा सिलाई मशीन पर बैठी कपडे काट रही थी

साथ ही बड़बडाये जा रही थी। उफ़ ये कैची तो किसी काम की नहीं रही बित्ता भर कपडा काटने में ही उँगलियाँ दुखने लगी हैं।

पता नहीं वो सोहन ग्राइंडिंग वाला कहाँ चला गया।

हर महीने आया करता था तो कालोनी भर के लोगों के चाकू कैची पर धार चढ़ा जाता था वो भी सिर्फ चंद पैसों में।

सोहन एक ग्राइंडिंग करने वाला यही कोई 20-25 साल का एक युवक था।

बहुत ही मेहनती और मृदुभाषी

चेहरे पे उसके हमेशा पसीने की बूंदे झिलमिलाती रहती लेकिन साथ ही मुस्कुराहट भी खिली रहती।

जब कभी वो कालोनी में आता किसी पेड़ के नीचे अपनी विशेष प्रकार की साईकिल को स्टैंड पे खड़ा करता जिसमे एक पत्थर की ग्राइंडिंग व्हील लगी हुई थी और सीट पे बैठ के पैडल चला के घुमते हुए पत्थर की व्हील पर रगड़ दे के चाक़ू और कैंचियों की धार तेज कर देता।

इसी बहाने कालोनी की महिलाये वहाँ इकठ्ठा हो के आपस में बाते किया करती।

जब वो नाचती हुई ग्राइंडिंग व्हील पर कोई चाकू या कैची रखता तो उससे फुलझड़ी की तरह चिंगारिया निकलती जिसे बच्चे बड़े कौतूहल से देखा करते और आनन्दित भी होते ।

फिर वो बड़े ध्यान से उलट पुलट कर चाकू को देखता और संतुष्ट हो के कहता "लो मेंम साब इतनी अच्छी धार रखी है कि बिलकुल नए जैसा हो गया।

अगर कोई उसे 10 मांगने पर 5 रूपये ही दे देता तो भी वो बिना कोई प्रतिवाद किये चुपचाप जेब में रख लेता।

मैंने अपनी पांच साल की बेटी मिनी को आवाज लगाई "मिनी जा के पड़ोस वाली सरला आंटी से कैची तो मांग लाना जरा"। पता नहीं ये सोहन कितने दिन बाद कॉलोनी में आएगा।

थोड़ी देर बाद जब मिनी पड़ोस के घर से कैची ले के लौटी तो उसने बताया कि उसने सोहन को अभी कॉलोनी में आया हुआ देखा है।

मैंने बिना समय गवाँये जल्दी से अपने बेकार पड़े सब्जी काटने वाले चाकुओ और कैंची को इकठ्ठा किया और बाहर निकल पड़ी।

बाहर जाके मैंने जो देखा वो मुझे आश्चर्य से भर देने वाला दृश्य था।

क्या देखती हूँ की सोहन अपनी ग्राइंडिंग वाली साइकिल के बजाय एक अपाहिज भिखारी की छोटी सी लकड़ी की ठेला गाडी को धकेल के ला रहा है और उस पर बैठा हुआ भिखारी "भगवान के नाम पे कुछ दे दे बाबा" की आवाज लगाता जा रहा है।

उसके आगे पैसों से भरा हुआ कटोरा रखा हुआ है। और लोग उसमे पैसे डाल देते थे।

पास आने पर मैंने बड़ी उत्सुकता से सोहन से पुछा "सोहन ये क्या ??
और तुम्हारी वो ग्राइंडिंग वाली साईकिल ??

सोहन ने थोड़ा पास आके धीमे से फुसफुसाते हुए स्वर में कहा "मेंमसाब सारे दिन चाक़ू कैची तेज करके मुझे मुश्किल से सौ रुपये मिलते थे

जबकि ये भिखारी अपना ठेला खींचने का ही मुझे डेढ़ सौ दे देता है।

इसलिए मैंने अपना पुराना वाला काम बंद कर दिया।

मैं हैरत से सोहन को दूर तक भिखारी की ठेला गाडी ले जाते देखती रही।

और सोचती रही, एक अच्छा भला इंसान जो कल तक किसी सृजनात्मक कार्य से जुड़ा हुआ समाज को अपना योगदान दे रहा था आज हमारे ही सामाजिक व्यवस्था द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया।

एक चेतावनी भरी सीख :

हम अनायास एक भिखारी को तो उसकी आवश्यकता से अधिक पैसे दे डालते हैं,लेकिन एक मेहनतकाश इन्सान को उसके श्रम का वह यथोचित मूल्य भी देने में संकोच करने लगते हैं जिससे समाज में उसके श्रम की उपयोगिता बनी रहे तथा उसकी खुद्दारी और हमारी मानवता दोनों शर्मिंदा होने से बच जाएँ।

#आर्यवर्त #प्रेरककथा

Comments

Popular posts from this blog

मुगलो का हिन्दू महिलाओं पर अमानुषी अत्याचार!!!

शुकर दन्त वशीकरण सिद्धि प्रयोग

अय्यासी मुहम्मद का सच....