लंकापति रावण
#रावण_की_बुराई_बहुत_पढ़ी_है_उसकी_कुछ_अच्छाइया_भी_पढ़िए
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आज से वर्ष 7129 वर्ष पूर्व हुए थे भगवान राम अर्थात उनका जन्म 5,114 ईस्वी पूर्व हुआ था। उन्हीं के काल में हुआ था दशानन रावण। राम तो बहुत मिल जाएंगे, लेकिन रावण नाम का दूसरा कोई नहीं मिलेगा। रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ बहु-विद्याओं का जानकार था। उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था। उसके पास एक ऐसा विमान था, जो अन्य किसी के पास नहीं था। इन सभी के कारण सभी उससे भयभीत रहते थे।
ब्रह्माजी के पुत्र पुलस्त्य ऋषि हुए। उनका पुत्र विश्रवा हुआ। विश्रवा की पहली पत्नी भारद्वाज की पुत्री देवांगना थी जिसका पुत्र कुबेर था। विश्रवा की दूसरी पत्नी दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी थी जिसकी संतानें रावण, कुंभकर्ण और विभीषण थीं।
जैन शास्त्रों में रावण को प्रति-नारायण माना गया है। जैन धर्म के 64 शलाका पुरुषों में रावण की गिनती की जाती है।
रावण के बारे में वाल्मीकि रामायण के अलावा पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, महाभारत, आनंद रामायण, दशावतारचरित आदि हिन्दू ग्रंथों के अलावा जैन ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है। भगवान रामचंद्र का विरोधी और शत्रु होने के बावजूद रावण 'सिर्फ बुरा' ही नहीं था। वह बुरा बना तो सचमुच में ही प्रभु श्रीराम की इच्छा से। होइए वही जो राम रचि राखा...
एक बुराई आपकी सारी अच्छाइयों पर पानी फेर देती है और आप देवताओं की नजरों में भी नीचे गिर जाते हैं। विद्वान और प्रकांड पंडित होने से आप अच्छे साबित नहीं हो जाते। अच्छा होने के लिए नैतिक बल का होना जरूरी है। कर्मों का शुद्ध होना जरूरी है। शिव का परम भक्त, यम और सूर्य तक को अपना प्रताप झेलने के लिए विवश कर देने वाला, प्रकांड विद्वान, सभी जातियों को समान मानते हुए भेदभावरहित रक्ष समाज की स्थापना करने वाला रावण आज बुराई का प्रतीक माना जाता है इसलिए कि उसने दूसरे की स्त्री का हरण किया था। आओ जानते हैं कि रावण में कौन-कौन-सी अच्छाइयां थी।
महापंडित रावण : कहा जाता है कि जब राम वानरों की सेना लेकर समुद्र तट पर पहुंचे, तब राम रामेश्वरम के पास गए और वहां उन्होंने विजय यज्ञ की तैयारी की। उसकी पूर्णाहुति के लिए देवताओं के गुरु बृहस्पति को बुलावा भेजा गया, मगर उन्होंने आने में अपनी असमर्थता व्यक्त की।
अब सोच-विचार होने लगा कि किस पंडित को बुलाया जाए ताकि विजय यज्ञ पूर्ण हो सके। तब प्रभु राम ने सुग्रीव से कहा- 'तुम लंकापति रावण के पास जाओ।' सभी आश्चर्यचकित थे किंतु सुग्रीव प्रभु राम के आदेश से लंकापति रावण के पास गए। रावण यज्ञ पूर्ण करने लिए आने के लिए तैयार हो गया और कहा- 'तुम तैयारी करो, मैं समय पर आ जाऊंगा।'
रावण पुष्पक विमान में माता सीता को साथ लेकर आया और सीता को राम के पास बैठने को कहा, फिर रावण ने यज्ञ पूर्ण किया और राम को विजय का आशीर्वाद दिया। फिर रावण सीता को लेकर लंका चला गया। लोगों ने रावण से पूछा- 'आपने राम को विजय होने का आशीर्वाद क्यों दिया?' तब रावण ने कहा- 'महापंडित रावण ने यह आशीर्वाद दिया है, राजा रावण ने नहीं।'
शिवभक्त रावण : एक बार रावण जब अपने पुष्पक विमान से यात्रा कर रहा था तो रास्ते में एक वन क्षेत्र से गुजर रहा था। उस क्षेत्र के पहाड़ पर शिवजी ध्यानमग्न बैठे थे। शिव के गण नंदी ने रावण को रोकते हुए कहा कि इधर से गुजरना सभी के लिए निषिद्ध कर दिया गया है, क्योंकि भगवान तप में मग्न हैं।
रावण को यह सुनकर क्रोध उत्पन्न हुआ। उसने अपना विमान नीचे उतारकर नंदी के समक्ष खड़े होकर नंदी का अपमान किया और फिर जिस पर्वत पर शिव विराजमान थे, उसे उठाने लगा। यह देख शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबा दिया जिस कारण रावण का हाथ भी दब गया और फिर वह शिव से प्रार्थना करने लगा कि मुझे मुक्त कर दें। इस घटना के बाद वह शिव का भक्त बन गया।
रावण की रचना : रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना करने के अलावा अन्य कई तंत्र ग्रंथों की रचना की। कुछ का मानना है कि लाल किताब (ज्योतिष का प्राचीन ग्रंथ) भी रावण संहिता का अंश है। रावण ने यह विद्या भगवान सूर्य से सीखी थी।
राजनीति का ज्ञाता : जब रावण मृत्युशैया पर पड़ा था, तब राम ने लक्ष्मण को राजनीति का ज्ञान लेने रावण के पास भेजा। जब लक्ष्मण रावण के सिर की ओर बैठ गए, तब रावण ने कहा- 'सीखने के लिए सिर की तरफ नहीं, पैरों की ओर बैठना चाहिए, यह पहली सीख है।' रावण ने राजनीति के कई गूढ़ रहस्य बताए।
कई शास्त्रों का रचयिता रावण : रावण बहुत बड़ा शिवभक्त था। उसने ही शिव की स्तुति में तांडव स्तोत्र लिखा था। रावण ने ही अंक प्रकाश, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, रावणीयम, नाड़ी परीक्षा आदि पुस्तकों की रचना की थी।
शिव तांडव स्तोत्र : रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना करने के अलावा अन्य कई तंत्र ग्रंथों की रचना की। रावण ने कैलाश पर्वत ही उठा लिया था और जब पूरे पर्वत को ही लंका ले जाने लगा, तो भगवान शिव ने अपने अंगूठे से तनिक-सा जो दबाया तो कैलाश पर्वत फिर जहां था वहीं अवस्थित हो गया। इससे रावण का हाथ दब गया और वह क्षमा करते हुए कहने लगा- 'शंकर-शंकर'- अर्थात क्षमा करिए, क्षमा करिए और स्तुति करने लग गया। यह क्षमा याचना और स्तुति ही कालांतर में 'शिव तांडव स्तोत्र' कहलाया।
अरुण संहिता : संस्कृत के इस मूल ग्रंथ को अकसर ‘लाल-किताब’ के नाम से जाना जाता है। इस का अनुवाद कई भाषाओं में हो चुका है। मान्यता है कि इस का ज्ञान सूर्य के सार्थी अरुण ने लंकाधिपति रावण को दिया था। यह ग्रंथ जन्म कुण्डली, हस्त रेखा तथा सामुद्रिक शास्त्र का मिश्रण है।
रावण संहिता : रावण संहित जहां रावण के संपूर्ण जीवन के बारे में बताती है वहीं इसमें ज्योतिष की बेहतर जानकारियों का भंडार है।
रावण पर रचना : पुराणों सहित इतिहास ग्रंथ वाल्मीकि रामायण और रामचरित रामायण में तो रावण का वर्णन मिलता ही है किंतु आधुनिक काल में आचार्य चतुरसेन द्वारा रावण पर 'वयम् रक्षामः' नामक बहुचर्चित उपन्यास लिखा गया है। इसके अलावा पंडित मदनमोहन शर्मा शाही द्वारा तीन खंडों में 'लंकेश्वर' नामक उपन्यास भी पठनीय है।
मायावी था रावण : शक्तियां दो तरह की होती हैं- एक दिव्य और दूसरी मायावी। रावण मायावी शक्तियों का स्वामी था। रावण एक त्रिकालदर्शी था। उसे मालूम हुआ कि प्रभु ने राम के रूप में अवतार लिया है और वे पृथ्वी को राक्षसविहीन करना चाहते हैं, तब रावण ने राम से बैर लेने की सोची।
परिजनों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध : भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काट दी थी। पंचवटी में लक्ष्मण से अपमानित शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से अपनी व्यथा सुनाई और उसके कान भरते कहा, 'सीता अत्यंत सुंदर है और वह तुम्हारी पत्नी बनने के सर्वथा योग्य है।'
तब रावण ने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए अपने मामा मारीच के साथ मिलकर सीता अपहरण की योजना रची। इसके अनुसार मारीच का सोने के हिरण का रूप धारण करके राम व लक्ष्मण को वन में ले जाने और उनकी अनुपस्थिति में रावण द्वारा सीता का अपहरण करने की योजना थी।
इस पर जब राम हिरण के पीछे वन में चले गए, तब लक्ष्मण सीता के पास थे लेकिन बहुत देर होने के बाद भी जब राम नहीं आए तो सीता माता को चिंता होने लगी, तब उन्होंने लक्ष्मण को भेजा। राम और लक्ष्मण की अनुपस्थिति में रावण सीता का अपहरण करके ले उड़ा। अपहरण के बाद आकाश मार्ग से जाते समय पक्षीराज जटायु के रोकने पर रावण ने उसके पंख काट दिए।
रावण ने सीता को लंकानगरी के अशोक वाटिका में रखा और त्रिजटा के नेतृत्व में कुछ राक्षसियों को उनकी देख-रेख का भार दिया।
माता सीता को छुआ तक नहीं : भगवान राम की अर्धांगिनी मां सीता का पंचवटी के पास लंकाधिपति रावण ने अपहरण करके 2 वर्ष तक अपनी कैद में रखा था, लेकिन इस कैद के दौरान रावण ने माता सीता को छुआ तक नहीं था।
रावण जब सीता के पास विवाह प्रस्ताव लेकर गया तो माता ने घास के एक टुकड़े को अपने और रावण के बीच रखा और कहा, 'हे रावण! सूरज और किरण की तरह राम-सीता अभिन्न हैं। राम व लक्ष्मण की अनुपस्थिति में मेरा अपहरण कर तुमने अपनी कायरता का परिचय और राक्षस जाति के विनाश को आमंत्रित कर दिया है। तुम्हारे को श्रीरामजी की शरण में जाना इस विनाश से बचने का एकमात्र उपाय है अन्यथा लंका का विनाश निश्चित है।'
सीता माता की इस बात से निराश रावण ने राम को लंका आकर सीता को मुक्त करने को 2 माह की अवधि दी। इसके बाद रावण या तो सीता से विवाह करेगा या उनका अंत।
रावण ने सीता को हर तरह के प्रलोभन दिए कि वह उसकी पत्नी बन जाए। यदि वह ऐसा करती है तो वह अपनी सभी पत्नियों को उसकी दासी बना देगा और उसे लंका की राजरानी। लेकिन सीता माता रावण के किसी भी तरह के प्रलोभन में नहीं आईं। तब रावण ने सीता को जान से मारने की धमकी दी लेकिन यह धमकी भी काम नहीं कर पाई। रावण चाहता तो सीता के साथ जोर-जबरदस्ती कर सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
अच्छा शासक : रावण ने असंगठित राक्षस समाज को एकत्रित कर उनके कल्याण के लिए कई कार्य किए। रावण के शासनकाल में जनता सुखी और समृद्ध थी। सभी नियमों से चलते थे और किसी में भी किसी भी प्रकार का अपराध करने की हिम्मत नहीं होती थी।
रावण ने सुंबा और बाली द्वीप को जीतकर अपने शासन का विस्तार करते हुए अंगद्वीप, मलय द्वीप, वराह द्वीप, शंख द्वीप, कुश द्वीप, यव द्वीप और आंध्रालय पर विजय प्राप्त की थी। इसके बाद रावण ने लंका को अपना लक्ष्य बनाया। आज के युग के अनुसार रावण का राज्य विस्तार इंडोनेशिया, मलेशिया, बर्मा, दक्षिण भारत के कुछ राज्य और संपूर्ण श्रीलंका तक था।
लंका पर कुबेर का राज्य था, परंतु पिता ने लंका के लिए रावण को दिलासा दी तथा कुबेर को कैलाश पर्वत के आसपास के त्रिविष्टप (तिब्बत) क्षेत्र में रहने के लिए कह दिया। इसी तारतम्य में रावण ने कुबेर का पुष्पक विमान भी छीन लिया। दरअसल, माली, सुमाली, माल्यवान नामक तीन दैत्यों द्वारा त्रिकुट सुबेल पर्वत पर बसाई लंकापुरी को देवों ने जीतकर कुबेर को लंकापति बना दिया था। रावण की माता कैकसी सुमाली की पुत्री थी।
रावण ने रचा था नया संप्रदाय : आचार्य चतुरसेन द्वारा रचित बहुचर्चित उपन्यास 'वयम् रक्षाम:' तथा पंडित मदन मोहन शर्मा शाही द्वारा तीन खंडों में रचित उपन्यास 'लंकेश्वर' के अनुसार रावण शिव का परम भक्त, यम और सूर्य तक को अपना प्रताप झेलने के लिए विवश कर देने वाला, प्रकांड विद्वान, सभी जातियों को समान मानते हुए भेदभावरहित समाज की स्थापना करने वाला था।
सुरों के खिलाफ असुरों की ओर था रावण। रावण ने आर्यों की भोग-विलास वाली 'यक्ष' संस्कृति से अलग सभी की रक्षा करने के लिए 'रक्ष' संस्कृति की स्थापना की थी। यही राक्षस थे।
लक्ष्मण को बचाया था रावण ने? : रावण के राज्य में सुषेण नामक प्रसिद्ध वैद्य था। जब लक्ष्मण सहित कई वानर मूर्छित हो गए तब जामवंतजी ने सलाह दी की अब इन्हें सुषेण ही बचा सकते हैं। रावण की आज्ञा के बगैर उसके राज्य का कोई भी व्यक्ति कोई कार्य नहीं कर सकता। माना जाता है कि रावण की मौन स्वीकृति के बाद ही सुषेण ने लक्ष्मण को देखा था और हनुमानजी से संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था।
आयुर्वेद, तंत्र और ज्योतिष का ज्ञाता : रावण अपने युग का प्रकांड पंडित ही नहीं, वैज्ञानिक भी था। आयुर्वेद, तंत्र और ज्योतिष के क्षेत्र में उसका योगदान महत्वपूर्ण है। इंद्रजाल जैसी अथर्ववेदमूलक विद्या का रावण ने ही अनुसंधान किया। उसके पास सुषेण जैसे वैद्य थे, जो देश-विदेश में पाई जाने वाली जीवनरक्षक औषधियों की जानकारी स्थान, गुण-धर्म आदि के अनुसार जानते थे। रावण की आज्ञा से ही सुषेण वैद्य ने मूर्छित लक्ष्मण की जान बचाई थी।
चिकित्सा और तंत्र के क्षेत्र में रावण के ये ग्रंथ चर्चित हैं- 1. दस शतकात्मक अर्कप्रकाश, 2. दस पटलात्मक उड्डीशतंत्र, 3. कुमारतंत्र और 4. नाड़ी परीक्षा।
रावण के ये चारों ग्रंथ अद्भुत जानकारी से भरे हैं। रावण ने अंगूठे के मूल में चलने वाली धमनी को जीवन नाड़ी बताया है, जो सर्वांग-स्थिति व सुख-दु:ख को बताती है। रावण के अनुसार औरतों में वाम हाथ एवं पांव तथा पुरुषों में दक्षिण हाथ एवं पांव की नाड़ियों का परीक्षण करना चाहिए।
इसी प्रकार शिशु-स्वास्थ्य योजना का विचारक ‘अर्कप्रकाश’ को रावण ने मंदोदरी के प्रश्नों के उत्तर के रूप में लिखा है। इसमें गर्भस्थ शिशु को कष्ट, रोग, काल, राक्षस आदि व्याधियों से मुक्त रखने के उपाय बताए गए हैं।
इसी प्रकार ‘कुमारतंत्र’ में मातृकाओं को पूजा आदि देकर घर-परिवार को स्वस्थ रखने का वर्णन है। इसमें चेचक, छोटी माता, बड़ी माता जैसी मातृ व्याधियों के लक्षण व बचाव के उपाय बताए गए हैं।
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