कौन किसकी साधना करे???
कौन किसकी उपासना करे
आदेश आदेश गुरूजी अघोरी जी को अलख आदेश
शुभ सन्ध्या सभी को
अज्ञानी को जीव तथा ब्रह्म में भिन्नता ज्ञात होती है।
अज्ञानी ही ईश्वर को जीवात्मा से भिन्न मानकर उसकी उपासना साधना प्रार्थना पूजा आदि करता है।
अज्ञानी ही उसे प्रसन्न करके उससे इच्छित फल प्राप्ति के लिए कामनाएँ करता है।
किन्तु जो यह जानता है कि जीव और ब्रह्म एक ही सत्ता के दो रूप मात्र हैं जो अभिन्न हैं।
इनमें किसी भी प्रकार की भिन्नता नही है।
आत्मा स्वयं ही परमात्मा स्वरूप है।
यह सारा ब्रह्माण्ड जो मनुष्य को दिखाई दे रहा है वो उस ब्रह्म से भिन्न नही बल्कि ब्रह्म से पूर्ण है, सबकुछ ब्रह्म ही है।
फिर कौन किसकी वन्दना करे, पूजा तो तब की जाती है जब अज्ञान की अवस्था में मनुष्य स्वयं को उस ब्रह्म से अलग मानता है।
यह सम्पूर्ण जगत ब्रह्म ही है जो उसका स्थूल रूप है जिसमें ब्रह्म ही सर्वत्र व्याप्त है फिर कौन किसकी वंदना करे।
ब्रह्म तथा जीव में कोई भेद ही नहीं है तथा वह निराकार है, स्वयं शिव स्वरूप है और नाश रहित है।
यह आत्मा भी इसी गुण वाली है फिर किसकी वन्दना कौन करे ?
इस अद्वैत की अनुभूति के वाद सभी साधना पूजा वन्दना आदि का कोई प्रयोजन नही रह जाता ।
यही पूर्ण ज्ञान है जिसे जानने के बाद कुछ भी शेष नही रहता।
सभी प्रकार की साधनाए सिर्फ ज्ञान प्राप्त करने के लिए ही की जाती हैं।
ज्ञान प्राप्ति के बाद समस्त साधनाएं व्यर्थ हो जाती हैं।
जिन्हें छोड़कर ज्ञानी ब्रह्म में ही लीन रहता है।
#अघोर
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