सृष्टि की उत्पत्ति
सृष्टि की उत्पत्ति
आदेश आदेश गुरूजी अघोरी जी को अलख आदेश
वाम मार्ग के अनुसार जब सृष्टि नहीं थी , तो वह परमात्मा ही सर्वत्र व्याप्त था (यह एक अभौतिक तत्व है)
वह शांत-समाधि में था|
वह सर्व चैतन्य तत्व ( सदाशिव) निर्लिप्त समाधि में था|
पर एकाएक उसने चाहा कि एक से दो हो जाऊं और उसमें एक विस्फोट हुआ|
इस विस्फोट से एक परानाद की उत्पत्ति हुई और उस स्थान पर अत्यंत तीव्रता से नाचती हुई एक उसी के लहरों से बनी आकृति प्रकट हुई
जो तस्तरी की तरह थी और उसके मध्य में भँवर ऊपर उठ रहा था|
इस पर इसके घूमने और घर्षण करने से अत्यंत तीव्र बड़ी मात्रा में आवेश उत्पन्न हो गया
और यह उस तत्व का भक्षण (खींचती) करती विकराल रूप धारण करने लगी|
इसी में आगे क्रियाएं हुई और सृष्टि की उत्पत्ति हुई|
इस संरचना को वाम मार्ग में ‘योनि’ कहा गया है|
इसे आदियोनि, आदि माता , आदि शक्ति, आद्या आदि कहा जाता है|
मार्ग भेद से इसे अनेक भिन्न – भिन्न नाम से पुकारा जाता है|
महाकाल को जन्म देने वाली यह शक्ति आद्या माहाकाली भी कही जाती है|
अगली समस्त क्रियाएं इसी की प्रतिक्रिया में होती है|
इसके ऊपर इसी की प्रतिकृति उत्पन्न होती है, जिसके घनत्व में अंतर और विपरीत आवेश उत्पन्न होता है|
यह आवेशीय आकर्षण के कारण एक-दूसरे में समा जाते है| यही भैरवी चक्र है|
चूँकि सृष्टि में सर्वत्र एक प्रकार के नियम कायम है; इसलिए प्रत्येक उत्पत्ति सभी प्रकार की होती है|
नेगेटिव-पॉजिटिव के विस्फोट से हर जगह भैरवी चक्र बनता है|
हमारा शरीर भी यही है और नारी का भी| सापेक्ष अन्तर हो सकता है; पर संरचना वही होती है|
सापेक्षता के कारण हममें भी ‘योनि’, ‘लिंग’ की उत्पत्ति होती है|
अलख आदेश
#अघोर
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