मुर्त्यु से भय कैसा????
मुर्त्यु से भय कैसा????
आदेश आदेश गुरूजी अघोरी जी को अलख आदेश
अपने बचपन के दिनों में, बहुत सालों तक मैं श्मशान में बैठकर लोगों की मदद करता रहा क्योंकि मैं देखना चाहता था कि मौत के बाद क्या होता है।
मैं एक के बाद दूसरे दिन वहां जाकर बैठता रहा, मैं दिन-रात वहां जाकर बैठा।
लोग आते थे शवों को आग लगाकर वहां एक-डेढ़ घंटे बैठते थे, और उसके बाद अपने काम में लग जाते थे।
वे रोते थे, आंसू बहाते थे, फिर उनके आंसू खत्म हो जाते थे।
उन्हें घर जाकर बाकी चीजें करनी होती थीं, तो वे चले जाते थे।
फिर सिर्फ मैं वहां बैठकर देखता था।
आम तौर पर चिता में जो आग लगाई जाती थी, कुछ देर बाद वह आग हल्की पड़ने लगती थी।
एक चीज जो आम तौर पर हमेशा होती थी, वह यह कि सिर अलग हो जाता था।
क्योंकि गरदन जल जाती है, सिर नहीं जलता, इसलिए आग का यह गोला चारो ओर लुढकता रहता है।
मैं नहीं चाहता था कि सिर वहां पड़ा रहे इसलिए मैं ही उसे उठाकर वापस रख देता था।
और वहीं बैठता था कि शायद कोई आएगा, मगर वे कभी नहीं आए।
मुझे यह समझने में कुछ साल लगे कि इन चीज़ों के बारे में जानने का यह तरीका नहीं है।
भूत अंदर ही होता है, उस भूत को देखने की बजाय आप किसी दूसरे भूत को खोजने की कोशिश करते हैं, ऐसा कभी संभव नहीं होता।
लेकिन जिस पल आप अपने आप के भीतर देखते हैं, वे सभी चीजें असली हो जाती हैं।
आप एक शरीरी भूत हैं। है न?
आप शरीर के साथ भूत है।
कोई और शरीर के बिना भूत है।
केवल इसलिए कि उन्होंने अपना ऋण चुका दिया है, इतना भेदभाव क्यों?
मौत को इतनी गंभीर चीज मत बनाइए, वह इतनी गंभीर चीज नहीं है।
#अघोर
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