श्मशान तथा चिता भस्म कपाल साधना के नाना महत्व।
श्मशान तथा चिता भस्म कपाल साधना के नाना महत्व।
जय मॉ काली
सिदेशवरी देवी शमशान वासिनी
मृत देह या शव, श्मशान तथा वहाँ से सम्बंधित अन्य वस्तुएँ, जिनसे सामान्यतः! सामान्य मनुष्य डरता हैं, तामसी गुण सम्पन्न देवी-देवताओं तथा साधकों हेतु महत्त्वपूर्ण हैं। तंत्र या आगम पथ! जो अधिकतर शैव तथा शक्ति संप्रदाय एवं तामसी आराधना से सम्बद्ध हैं, उनके निमित्त श्मशान तथा वहाँ से सम्बंधित वस्तुएँ अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। शैव तथा शक्ति सम्बंधित अनेक साधन क्रियायें या साधनाएँ श्मशान में ही पूर्ण होती हैं, जैसे शव साधना! शव या मृत देह के ऊपर बैठ कर होती हैं। काली, तारा, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, इत्यादि तामसी गुण संपन्न देवियों तथा नाना शिव अवतारी भैरवों का घनिष्ठ सम्बन्ध श्मशान से हैं; भैरव! श्मशान के द्वारपाल या रक्षक हैं।
साधारणतः श्मशान वह स्थान है जहाँ मृत देह का दाह संस्कार होता हैं; सामान्य दृष्टि में श्मशान गन्दा तथा अपवित्र होता हैं, माना जाता हैं श्मशान भूत-प्रेतों का निवास स्थान हैं, चिता का दृश्य अत्यंत ही मर्मर तथा घिनौना होता हैं। जिस देह को मानव जीवन भर सर्वाधिक जतन से रखता हैं एवं मनोरम दिखाने का प्रयास करता हैं, मृत्यु पश्चात वही देह अग्नि में भस्म हो जाता हैं या सड़ कर मिट्टी में मिल जाता हैं। परन्तु, श्मशान का आध्यात्मिक, दार्शनिक या तांत्रिक महत्व और ही कुछ हैं, यहाँ इसे एक अलग ही दृष्टि से देखा जाता हैं।
संसार के समस्त जीव पंच मूल तत्वों से निर्मित हैं या पञ्च महा-भूतों से शरीर का निर्माण होता हैं; १. आकाश २. वायु ३. अग्नि ४. जल तथा ५. पृथ्वी। संसार नश्वर हैं तथा प्रत्येक वस्तुओं या भूतों का नाश, एक न एक दिन होना ही होना हैं। तंत्र के अनुसार, यह केवल वह प्रक्रिया हैं जिससे मृत देह में व्याप्त प्रत्येक तत्व, अपने-अपने तत्वों में विलीन हो जाते हैं। तंत्रों के अनुसार, श्मशान केवल मात्र वह स्थान हैं जहाँ देह में व्याप्त तत्त्व-मिश्रण अपने-अपने तत्त्व में विलीन हो जाते हैं, चिद-ब्रह्मत्व प्राप्त कर लेते हैं। चिद-ब्रह्म साक्षात प्रकृति ही हैं तथा आदि शक्ति महामाया का एक स्वरूप हैं जो समस्त ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण में व्याप्त हैं।चिता में शव दाह के पश्चात, केवल मात्र थोड़ा सा राख ही शेष रहा जाता हैं, ठोस तत्त्व भस्म में परिवर्तित हो मिट्टी में विलीन हो जाता हैं। अन्य तत्व या भूत जैसे शरीर में व्याप्त जल! जल वाष्प में बदल कर हवा में विलीन हो जाता हैं, अग्नि! ताप के संयोग से ही समस्त तत्त्व अपने-अपने तत्त्व में विलीन होते हैं, वायु! वायु में विलीन हो जाता हैं तथा आकाश तत्व सर्वप्रथम तत्व हैं, आकाश से ही अन्य तत्वों का निर्माण हुआ हैं। वायु, पृथ्वी या मृदा, अग्नि तथा जल इन सारे तत्वों का निर्माण आकाश तत्व से ही हुआ हैं तथापि ये समस्त तत्व आकाश में ही विलीन हैं। इन पञ्च महा-भूतों या तत्वों का संतुलित मात्र में जीवित देह में रहना अत्यंत आवश्यक हैं, इन तत्वों या भूतों का असंतुलित होना ही विभिन्न रोगों को जन्म देता हैं तथा शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता को कम करता हैं। चिता भस्म! जो मानव मृत देह के दाह के पश्चात या महा-भूतों में विलय होने के पश्चात शेष रह जाता हैं, पञ्च महा-भूतों का सम्मिश्रण हैं, शिव जी तथा उनके अनुयायी इस भस्म का अपने शरीर पर लेप करते हैं। माना जाता हैं कि! चिता-भस्म, पञ्च महा-भूतों का ऐसा सम्मिश्रण हैं, जो शरीर में व्याप्त समस्त भूतों को संतुलित करता हैं तथा निरोगी रखता हैं।......
जय.मॉ तारा
#अघोर #श्मशान_साधना #चिता_भष्म_कपाल_साधना
Right Mahadev ka aashirvaad hhai
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