तामसिक साधनाओं में उपयोग होने वाले वस्तुओं का महत्व।

तामसिक साधनाओं में उपयोग होने वाले वस्तुओं का महत्व

जय.मॉ कालका
जय मॉ काली देवी शमशान वासिनी
सिदेशवरी देवी शमशान वासिनी
मानव खोपड़ी, खप्पर, हड्डियां, बौद्ध तथा हिन्दू शक्ति साधनाओं तथा तांत्रिक पद्धतियों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। वीर-साधना नमक तंत्र में मृत देह से प्राप्त वस्तुओं, शव के तांत्रिक उपयोग तथा साधना पद्धति पर विशेष प्रकाश डाला गया हैं। इस प्रकार की तामसी साधनाएँ अत्यंत ही भयंकर और डरावनी होती हैं तथा एकांत में ही की जाती हैं; इस प्रकार की साधना करने वाले साधक कपाली, अघोरी इत्यादि नाम से जाने जाते हैं। अघोर पंथ एक व्रत हैं, जो सर्वाधिक सरल हैं तथा वीर पद की प्राप्ति हेतु एक साधना मात्र हैं; जिसके अंतर्गत, ब्रह्माण्ड में व्याप्त समस्त तत्वों में भगवत भाव रखना अत्यंत आवश्यक हैं। मृत मानव एवं पशु-पक्षी देह, हड्डी, सड़ी-गली प्रत्येक वस्तु इनके लिए समान हैं, ब्रह्माण्ड में व्याप्त समस्त तत्वों में सम भाव रखना, निर्मल तथा घृणित सभी वस्तुओं में ब्रह्म की अनुभूति करना ही इनके साधन पद्धति का मुख्य उद्देश्य हैं। घृणा, इच्छा या कामना, भय का सर्व-प्रकार से त्याग ही इस प्रकार के साधनाओं का मुख्य उद्देश्य होता हैं। इस चराचर जगत में व्याप्त प्रत्येक वास्तु फिर वह जीवित हो या मृत, पवित्र हो या अपवित्र, सड़ा हो या पुष्ट सभी में ब्रह्म तत्व या ईश्वर का अनुभव करना पड़ता हैं, प्रत्येक वास्तु ईश्वर द्वारा ही निर्मित हैं।

बहुत से तांत्रिक पुस्तकों या आगम ग्रंथों में शव-साधना का वर्णन पाया गया हैं, मृत शरीर या बच्चों की समधी के ऊपर बैठकर साधना करना शव-साधना कहलाता हैं। नदी किनारे या श्मशान स्थित बिल्व वृक्ष के निचे, चांडाल के मृत देह के ऊपर बैठकर, उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होने वाली नदी को वीर साधना में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बताया गया हैं। बामा खेपा, तारापीठ महा-श्मशान में ही रहते थे, तामसी शक्तिओं की आराधना करने वाले साधक सामान्यतः श्मशान में ही रहते थे; अपने इष्ट देवताओं के अनुसार उन्हें भी इष्ट प्रिय स्थानों पर वास करना पड़ता हैं। तामसी शक्ति से सम्पन्न प्रायः सभी देवी-देवता, भूत, प्रेत, योगिनिया, पिसाचनियां इत्यादि श्मशान भूमि को ही अपना निवास स्थान बनती हैं तथा उनकी अरराना करने वाले साधक भी वही भय मुक्त या निर्भीक होकर रहते हैं; इस प्रकार के तत्त्वों के सामान्य रूप में उपयोग करने का केवल मात्र यह ही उद्देश्य होता हैं।
शिव जी तथा उनकी पत्नी पार्वती, श्मशान में ही वास करते हैं, उनके निवास स्थल कैलाश पर्वत भी एक दिव्य श्मशान हैं इसके अलावा काशी या वाराणसी, उज्जैन की गिनती भी दिव्य श्मशान स्थलों में की जाती हैं। कोलकाता में गंगा नदी किनारे नीम तला महा-श्मशान में शिव जी समस्त भूतों (तत्त्व) के नाथ भूत-नाथ रूप में विराजित हैं। काशी या वाराणसी जहाँ गंगा नदी उत्तर वाहिनी हैं, के मणि-कर्णिका घाट में शिव जी सर्वदा उपस्थित रहकर, वहाँ दाह होने वाले प्रत्येक शव के कान में तारक मंत्र बोलते हैं, जिससे उन्हें सहज ही मोक्ष प्राप्त होता हैं। श्मशानों के द्वारपाल शिव जी के अवतार नाना भैरव होते हैं, काशी के द्वारपाल काल भैरव हैं, इसी प्रकार उज्जैन के द्वारपाल बटुक भैरव हैं। काशी के दक्षिण ओर स्थित राजा हरिश्चंद्र घाट में शिव जी, मसान रूप में पूजे जाते हैं, जो सर्वाधिक भयंकर रूप वाले तथा श्मशान के स्वामी हैं। शिव जी कपाल तथा खप्पर धारण करते हैं, चिता-भस्म का अपने शरीर में लेप करते हैं, वास्तव में संहार तथा विघटन से सम्बंधित वस्तुओं के वे स्वामी हैं। प्रत्येक वस्तु जिसका त्याग किया जाता हैं तथा जिसका सम्बन्ध भविष्य में विघटन से हैं, उनके स्वामी शिव जी ही हैं।

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