सप्तश्लोकी दुर्गास्तोत्रम्

सप्तश्लोकी दुर्गास्तोत्रम्

Sapta Sloki Durga Stotram
सप्तश्लोकी दुर्गास्तोत्रम्

Sapta Sloki Durga Stotram – 

नवरात्रि के दौरान सामान्‍यत: मां दुर्गा की आराधना के रूप में नौ दिनों तक व्रत किया जाता है और रात्रि में मां गरबा व डांडिया रास के माध्‍यम से मां दुर्गा की उपासना की जाती है। इसके साथ ही लोग किसी विशेष कामनापूर्ति के लिए मां दुर्गा का दुर्गा-सप्‍तशती पाठ का भी अनुष्‍ठान करते हैं, जिसे चण्‍डी-पाठ व देवी-पाठ के नाम से भी जाना जाता है।

लेकिन क्‍योंकि चण्‍डी-पाठ एक बहुत ही सावधानीपूर्ण तरीके से किया जाने वाला अनुष्‍ठान है, इसलिए इसे कम ही लोग करते हैं। बल्कि देवी-पाठ के स्‍थान पर लोग नवरात्रि के दौरान दुर्गा-चालीसा का भी पाठ करते हैं, क्‍योंकि मान्‍यता ये है कि दुर्गा-चालीसा को उन्‍हीं लोगों के लिए वि‍कसित किया गया है, जो कि विधिपूर्वक चण्‍डी-पाठ करने में सक्षम नहीं होते।

लेकिन यदि कोई व्‍यक्ति प्रतिदिन दुर्गा-चालीसा का पाठ करने में भी पूरी तरह से सक्षम न हो, तो हमारे ऋषि-मुनियों ने उनके मां दुर्गा के सप्‍तश्‍लोकी-दुर्गास्‍तोत्र की रचना की है, ताकि कोई भी व्‍यक्ति नवरात्रि के दौरान मांदुर्गा के नौ रूपों की आराधना, उपासना करने से वंचित न रह जाए।

साथ ही इस सप्‍तश्‍लोकी-दुर्गास्‍तोत्र के संदर्भ में न तो कोई नियम है न ही कोई विधि है। इसलिए त्रिकाल संध्‍या करते समय सामान्‍य पूजा करने के दौरान ही बिना कोई अन्‍य नियम, विधि या व्‍यवस्‍था का पालन किए हुए इसका पाठ किया जा सकता है और इसके पाठ से भी वे ही परिणाम प्राप्‍त होते हैं, जो मां दुर्गा के चण्‍डी-पाठ करने अथवा दुर्गा-चालीसा का पाठ करने से प्राप्‍त होते हैं।

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सप्तश्लोकी दुर्गास्तोत्रम्

शिव उवाच – 

देवी त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी। कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं त्रूहि यत्नतः ।।

देव्युवाच – 

श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्। मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ।।

ॐ अस्य श्री दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र मंत्रस्यनारायण ऋषि: अनुष्टुप् छ्न्द:श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवता: श्री दुर्गा प्रीत्यर्थे सप्तश्लोकी दुर्गा पाठे विनियोग: ।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि साबलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ।।१।।

दुर्गे स्मृता हरसिभीतिमशेष जन्तो:स्वस्थै: स्मृता मति मतीव शुभां ददासि
दारिद्र्य दु:ख भय हारिणि का त्वदन्यासर्वोपकार करणाय सदार्द्र चित्ता ।।२।।

सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिकेशरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते ।।३।।

शरणागत दीनार्त परित्राण परायणेसर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ।।४।।

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्व शक्ति समन्वितेभयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ।।५।।

रोगान शेषा नपहंसि तुष्टारुष्टा तु कामान् सकलान भीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन् नराणांत्वामाश्रिता ह्या श्रयतां प्रयान्ति।।६।।

सर्वा बाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरिएकमेव त्वया कार्यमस्मद् वैरि विनाशनं ।।७।।

।। इति सप्तश्लोकी दुर्गास्तोत्र सम्पूर्णा ।।

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कुमारी पूजन

जो लोग नवरात्रि का व्रत रखते हैं, सामान्‍यत: वे लोग कुमारी पूजन करते हुए अपने व्रत की समाप्ति करते हैं, जिसके अन्‍तर्गत नवरात्रि के अन्तिम दिन दस वर्ष से कम उम्र की 9 कन्‍याओं को गरिष्‍ठ व मिष्‍ठानयुक्‍त भोजन करवाया जाता है, उन्‍हें दान-दक्षिणा दिया जाता है और ये मानते हुए उनका पूजन किया जाता है कि वे मां दुर्गा के ही नौ रूप हैं।

कुमारी पूजन में यहां मान्‍यता ये है कि दस वर्ष तक की कन्याऐं मां दुर्गा के ही विभिन्‍न रूपों को निरूपित करती हैं। जिसके अन्‍तर्गत दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष कीत्रिमूर्तिनी, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष कीशाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष वाली सुभद्रास्वरूपा होती है जो कि मां दुर्गा के ही नौ रूप हैं।

दुर्गा-सप्‍तशतीदुर्गा-चालीसाऔर सप्‍तश्‍लाेकी दुर्गास्‍तोत्र

श्री सप्‍तश्‍लाकी दुर्गास्‍तोत्र का पाठ करने से भी आपकोसम्‍पूर्ण दुर्गा-सप्‍तशती का पाठ करने जितना फल ही मिलता है। आप सोंच सकते हैं कि जब मात्र 7 श्‍लोकी दुर्गा-स्‍तोत्र का पाठ करने से भी 700 श्‍लोक वाले दुर्गा-सप्‍तशती के समान ही शुभ परिणाम प्राप्‍त होते हैं, तो फिर दुर्गा-सप्‍तशती के रूप में चण्‍डी-पाठ करने का क्‍या मतलब है?

तो आपके सवाल का जवाब ये है कि अलग-अलग वर्ग के लोग बिना किसी परेशानी के मां दुर्गा की आराधना कर सकें, इस हेतु हमारे ऋषि-मुनियों ने दुर्गा-सप्‍तशती, दुर्गा-चालीसा व सप्‍तश्‍लोगी-दुर्गा की रचना की, ताकि सभी वर्ग के लोग किसी भी परिस्थिति में मां दुर्गा की आराधना कर सकें और सभी को मिलने वाला परिणाम भी समान ही है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि यदि आप दुर्गा-सप्‍तशती का पाठ करने में सक्षम हैं, फिर भी आप सप्‍तश्‍लोगी दुर्गा-स्‍तोत्र  का पाठ करें।

यदि आप आर्थिक, मानसिक व पारिवारिक रूप से सक्षम हैं, तो आपको मां दुर्गा की आराधना के लिए चण्‍डी-पाठ का ही अनुष्‍ठान करना चाहिए। उस स्थिति में यदि आप दुर्गा-चालीसा का पाठ करेंगे, तो आपको पूर्ण फल प्राप्‍त नहीं होगा। इसी तरह से यदि आप दुर्गा-चालीसा का पाठ करने में सक्षम है, तो उस स्थिति में यदि आप केवल सप्‍तश्‍लोकी दुर्गा स्‍तोत्र का पाठ करके पूर्ण फल की आशा नहीं रख सकते।

उदाहरण के लिए किसी कारणवश आपको लम्‍बी यात्रा पर जाना पड रहा है, तो उस स्थिति में आप सप्‍तश्‍लोकी दुर्गा स्‍तोत्र का पाठ करके अपनी दिनचर्या को जारी रख सकते हैं। ल‍ेकिन यदि आप आराम से अपने घर पर ही हैं, तो उस स्थिति में आप केवल सप्‍तश्‍लोकी दुर्गा स्‍तोत्र का पाठ करके दुर्गा सप्‍तशती पाठ का पूरा लाभ प्राप्‍त नहीं कर सकते।

#भगवती #आर्यवर्त #सप्तश्लोकी दुर्गास्तोत्रम्

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