जब सरदार पटेल ने जोधपुर नरेश पर तान दी थी पिस्तौल...

जब सरदार पटेल ने जोधपुर नरेश पर तान दी थी पिस्तौल...

15 अगस्त 1947 से पहले भारत और पाकिस्तान के सीमांकन और रियासतों के विलय की घटना इतिहास में अपना स्थान रखती है। भारत की ओर से सरदार वल्लभ भाई पटेल और पाकिस्तान की ओर से मुहम्मद अली जिन्ना रियासतों को अपने पक्ष में मिलाने की पुरजोर कोशिश कर रहे थे। इस दौरान कई मौके ऐसे आए जब रियासतों का रुझान कभी भारत, तो कभी पाकिस्तान की तरफ होता रहा।
कुछ ऐसा ही राजस्थान की रियासतों के साथ भी था, लेकिन सरदार वल्लभ भाई पटेल अपने दृढ़ निश्चय से राजस्थान की ज्यादातर रियासतों का विलय भारत में कराने में सफल रहे। सरदार के प्रयासों के बूते ही वर्तमान भारत की तस्वीर उभरी..

भारतीय स्वतंत्रता रियासतों के विलय के दौरान घटा एक महत्वपूर्ण वाक्या..

जोधपुर नरेश को जिन्ना का प्रलोभन

घटना 1949 के आरंभ की है, तब तक जयपुर, जधपुर को छोड़कर बाकी रियासतें राजस्थान में या तो शामिल हो चुकी थी या हामी भर चुकी थी। बीकानेर और जैसलमेर रियासतें जोधपुर नरेश की 'हां' के इंतजार में थीं, जबकि जोधपुर नरेश महाराज हनुवंत सिंह उस समय जिन्ना के संपर्क में थे।

मोहम्मद अली जिन्ना ने हनुवंत सिंह को पाकिस्तान में शामिल होने पर पंजाब-मारवाड़ सूबे का प्रमुख बनाने का प्रलोभन दिया था। जोधपुर से थार के रास्ते लाहौर तक एक रेल लाइन हुआ करती थी, जिससे सिंध और राजस्थान की रियासतों के बीच व्यापार हुआ करता था। जिन्ना ने आजीवन उस रेल लाइन पर जोधपुर के कब्जे का प्रलोभन भी दिया। हनुवंत सिंह लगभग मान गए थे।

उस समय सरदार पटेल जूनागढ़ (तत्कालीन बंबई और वर्तमान में गुजरात) के मुस्लिम राजा को समझा रहे थे। जैसे ही उनके पास सूचना पहुंची, तत्काल सरदार पटेल हेलिकॉप्टर से जोधपुर को रवाना हुए। रास्ते में सिरोही-आबू के पास उनका हेलिकॉप्टर खराब हो गया। ऐसे में एक रात तक स्थानीय साधनों से सफर करते हुए तत्काल जोधपुर पहुंचे।

... और सरदार ने तान दी पिस्ताॅल

हनुवंत सिंह सरदार पटेल को जोधपुर के शाही उम्मेद भवन में देख भौंचक्का रह गया, जब बात टेबल तक पहुंची, तो हनुवंत सिंह ने सरदार को धमकाने के उद्देश्य से मेज पर ब्रिटिश पिस्टल रख दी। सरदार ने जोधपुर नरेश को मुस्लिम राष्ट्र में शामिल होने वाली सारी तकलीफों के बारे में बताया, पर हनुवंत सिंह नहीं माना।

उल्टे सरदार पटेल पर राठौड़ों को डराने का आरोप लगाकर आसपास बैठे सामंतों को उकसाने का काम करने लगा। स्थिति ऐसी आ गई कि आखिरकार सरदार ने टेबल पर रखी पिस्टल उठा ली और हनुवंत की तरफ तानकर कहा कि राजस्थान में विलय में हस्ताक्षर कीजिए नहीं तो आज हम दो सरदारों में से एक सरदार नहीं बचेगा।

सचिव मेनन सहित उपस्थित सभी सामंत डर गए। आखिरकार अपनी ना चलने पर हनुवंत सिंह को हस्ताक्षर करने पड़े। इस प्रकार जोधपुर सहित बीकानेर और जैसलमेर भी राजस्थान में शामिल हो गए। इस घटना के कारण सरदार पटेल ने वृहद राजस्थान के पहले महाराज का पद हनुवंत सिंह को ना देकर उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को दिया।

रियासतों के विलय के दरम्यान का यह प्रकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल के साहस और चिवटता को रेखांकित करता है। सरदार पटेल न होते, तो भारत के वर्तमान मानचित्र का स्वरुप कुछ और ही होता।

ऐसे होते है राष्ट्रपिता जो राष्ट्र का निर्माण संवर्धन करते है ।

नकली राष्ट्रपिता से बचे ।

#आर्यवर्त

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