कर्म
कर्म......!!
कलयुग में आप जो कहते है, वेसा दिखने में लगता है, मगर कर्म का चक्र अटल है, जैशा करते है वैसा ही पाते है, बबुल का पौधा बोवोगे तो बड़ा होके कांटे ही मिलेंगे, आम नही। जीवन मे किये हुए सद्गुण का फल दर्शय रूप में कई अद्रश्य रूप में अवस्य ही मिलता है,
सत्य की राह पे चलनेवाले को अपार कष्ट मिलता है, मगर आखिर में विजय उसीकी होती है,
आपको एक सामान्य दुर्ष्टान्त देता हूं.....
कोई भी इंसान कभी सुना है के पथ्थर को पूजे, मगर वही पथ्थर को कोई शिल्पकार आकार दे तो उसकी मन्दिर में पूजा होती है, वो भगवान होने के बावजूद भी शीनी हथोड़े की मार खानी पड़ती है, वो तो परमेश्वर है, विधाता है, हम तो आखिर तुच्छ मनुष्य है,इतना काफी है....
सच है कि हम जैसे कर्म करते है, हमें उसका वैसा ही फल मिलता है। हमारे द्वारा किये गए कर्म ही हमारे पाप और पुण्य तय करते है। हम अच्छे कर्म करते है तो हमें उसके अच्छे फल मिलते है और अगर हम बुरे कर्म करते है तो हमें उसके बुरे फल मिलते है। हमारे जीवन में जो भी परेशानियां आती हैं, उनका संबंध कहीं ना कहीं हमारे कर्मों से होता है।
कबीरदास जी का ये दोहा हमें हमेशा ये एहसास दिलाता है कि बुरे कर्मों का फल हमेशा बुरा ही होता है।
"करता था सो क्यों किया,"
"अब करि क्यों पछताय।"
"बोया पेड़ बबूल का,"
"आम कहाँ से खाय॥"
नमो नारायण
#आर्यवर्त
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