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Showing posts from July, 2017

बाल गंगाधर तिलक  

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बाल गंगाधर तिलक   पूरा नाम  लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक  जन्म 23 जुलाई , 1856 जन्म भूमि रत्नागिरि ,  महाराष्ट्र मृत्यु 1 अगस्त ,  1920 मृत्यु स्थान बंबई  (वर्तमान  मुंबई ),  महाराष्ट् अभिभावक श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक नागरिकता भारतीय पार्टी कांग्रेस शिक्षा स्नातक, वक़ालत विद्यालय डेक्कन कॉलेज,  बंबई विश्वविद्यालय भाषा हिन्दी ,  संस्कृत ,  मराठी ,  अंग्रेज़ी जेल यात्रा राजद्रोह का मुक़दमे में कारावास पुरस्कार-उपाधि 'लोकमान्य' विशेष योगदान इंडियन होमरूल लीग  की स्थापना, डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी का गठन प्रसिद्ध वाक्य "स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।" बाल गंगाधर तिलक    Bal Gangadhar Tilak ,  जन्म-  23 जुलाई , 1856,  रत्नागिरी ,  महाराष्ट्र ;  मृत्यु-  1 अगस्त ,  1920 ,  मुंबई ) विद्वान, गणितज्ञ, दार्शनिक और उग्र राष्ट्रवादी व्यक्ति थे, जिन्होंने  भारत  की स्वतंत्रता की नींव रखने में सहायता की। उन्होंने ' इंडियन होमरूल लीग ' की स्थापना सन्  1914  ई. में की और इसके अध्यक्ष रहे तथा सन्  1916  में  मुहम्मद अली जिन्ना  के साथ  लखनऊ समझौता  किया,

मैं आरक्षण का विरोध क्यों नहीं करता?

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मैं आरक्षण का विरोध क्यों नहीं करता शायद इस छोटी-सी आत्मकथा से आप को समझा सकूं मैं एक घर के करीब से गुज़र रहा था की अचानक से मुझे उस घर के अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई। उस बच्चे की आवाज़ में इतना दर्द था कि अंदर जाकर वह बच्चा क्यों रो रहा है, यह मालूम करने से मैं खुद को रोक ना सका। अंदर जा कर मैने देखा कि एक माँ अपने दस साल के बेटे को आहिस्ता से मारती और बच्चे के साथ खुद भी रोने लगती। मैने आगे हो कर पूछा बहनजी आप इस छोटे से बच्चे को क्यों मार रही हो ? जबकि आप खुद भी रोती हो। उसने जवाब दिया भाई साहब इसके पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं और हम लोग बहुत ही गरीब हैं, उनके जाने के बाद मैं लोगों के घरों में काम करके घर और इसकी पढ़ाई का खर्च बामुश्किल उठाती हूँ और यह कमबख्त स्कूल रोज़ाना देर से जाता है और रोज़ाना घर देर से आता है। जाते हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं देता है जिसकी वजह से रोज़ाना अपनी स्कूल की वर्दी गन्दी कर लेता है। मैने बच्चे और उसकी माँ को जैसे तैसे थोड़ा समझाया और चल दिया। इस घटना को कुछ दिन ही बीते थे की एक दिन सुबह सुबह क

अखंड भारत (आर्यवर्त)

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अखंड भारत (आर्यवर्त) तीनों देशों को मिलाकर अखंड भारत कहने की जगह हम इसको सांस्कृतिक भारत और बृहत्तर भारत कहेंगे. सांस्कृतिक भारत की जब हम बात करते हैं तो तीनों देशों में जो भी सांस्कृतिक प्रतीक हैं, जो कि तीनों देशों में हमें प्राप्त हैं, जैसे- नदियों के नाम हैं, प्रमुख नगरों के नाम हैं, प्रमुख चिह्न और स्थल हैं, वे सब तीनों देशों को आपस में जोड़ते हैं. जब अखंड भारत था तो जो भी इस प्रकार के सांस्कृतिक स्थल थे, जहां हम जाते थे वे सब तीनों देशों में मौजूद हैं. इसलिए भाषा की दृष्टि से, साहित्यिक दृष्टि से, संस्कृति की दृष्टि से और भौगोलिक दृष्टि से भी, ये सब जो समानताएं हैं वे सब समानताएं वास्तव में इसको एक बृहत्तर भारत बनाती हैं. तीनों देशों में सबके अपने उत्सव हैं जो अपने-अपने ढंग से अपने-अपने यहां मनाए जाते हैं. संस्कृति का अर्थ यह है कि सम्यक करोति इति संस्कार: अर्थात जो संस्कार देती है, यानी जो बताती है कि जीने का ढंग ऐसा होना चाहिए जो सबके लिए लाभकारी हो. इस तरीके की सोच हमारे भारत की है. इस तरह की पहल भारत ही कर सकता है. कोई पाकिस्तान या बांग्लादेश यह सोच आगे नहीं बढ़ा सकता. यह स